जोशीमठ संकट: 46 साल पहले गठित समिति ने भौगोलिक स्थिति, निर्माण कार्यों को लेकर चिंता जताई थी

भूस्खलन और जोशीमठ शहर के डूबने के कारणों की जांच के लिए गठित एक समिति ने 7 मई, 1976 को अपनी रिपोर्ट में भारी निर्माण कार्य, ढलानों पर कृषि और पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध लगाने के सुझाव दिए थे. अब स्थानीयों ने मौजूदा स्थिति के लिए बिजली और सड़क परियोजनाओं को ज़िम्मेदार ठहराया है.

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जोशीमठ शहर में स्थित एक मकान में दरार पड़ने के बाद प्रशासन ने उस पर लाल निशान लगाया है. (फोटो: पीटीआई)

भूस्खलन और जोशीमठ शहर के डूबने के कारणों की जांच के लिए गठित एक समिति ने 7 मई, 1976 को अपनी रिपोर्ट में भारी निर्माण कार्य, ढलानों पर कृषि और पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध लगाने के सुझाव दिए थे. अब स्थानीयों ने मौजूदा स्थिति के लिए बिजली और सड़क परियोजनाओं को ज़िम्मेदार ठहराया है.

जोशीमठ स्थित एक मकान में आई दरारें. (फोटो: पीटीआई)

जोशीमठ: उत्तराखंड के जोशीमठ में बने घर-इमारतों में आई दरारों के बाद शहर के डूबने को लेकर चिंताएं व्यक्त की जा रही हैं, शहर को भूस्खलन-धंसाव क्षेत्र घोषित कर दिया गया है, साथ ही शहर से स्थानीय लोगों को हटाने की कवायद भी जारी है.

इस बीच, इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट बताती है कि लगभग आधी सदी पहले एक 18 सदस्यीय समिति ने कई प्रतिबंध लगाने और उपचारात्मक उपायों का सुझाव देते हुए चेतावनी दी थी कि जोशीमठ शहर ‘भौगोलिक रूप से अस्थिर’ है.

भूस्खलन और जोशीमठ शहर के डूबने के कारणों की जांच के लिए तत्कालीन आयुक्त गढ़वाल मंडल, महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में समिति का गठन किया गया था. 7 मई 1976 की अपनी रिपोर्ट में समिति ने भारी निर्माण (कंस्ट्रक्शन) कार्य, ढलानों पर कृषि, पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध लगाने के सुझाव दिए थे.

साथ ही, वर्षा जल के रिसाव को रोकने के लिए पक्की जल निकासी का निर्माण, उचित सीवेज सिस्टम और नदी किनारों पर कटाव रोकने के लिए सीमेंट ब्लॉक के निर्माण के सुझाव दिए थे.

इन सालों में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही की सरकारें रहीं, लेकिन अब मौजूदा संकट के बीच दोनों पार्टियां रिपोर्ट की सिफारिशों को लागू करने में विफल रहने के लिए एक-दूसरे को दोषी ठहरा रहे हैं.

इंडियन एक्सप्रेस द्वारा उक्त रिपोर्ट की समीक्षा में पाया गया कि शहर भूगर्भीय दृष्टि से अस्थिर है, जिसके परिणामस्वरूप भूस्खलन, होते हैं, सड़कें टूट जाती हैं और स्थानीय भूमि डूब/धंस जाती है. इसमें कहा गया है कि निर्माण गतिविधि और जनसंख्या के कारण कई महत्वपूर्ण जैविक गड़बड़ियां होती रही हैं.

रिपोर्ट में बार-बार होने वाले भूस्खलनों के संभावित कारण भी बताए गए हैं. इसमें उल्लेख है कि 1962 के बाद क्षेत्र में भारी निर्माण परियोजनाएं शुरू की गईं. उनमें विनियमित जल निकासी के लिए पर्याप्त व्यवस्थित प्रावधान नहीं थे, जिसके कारण पानी का रिसाव हुआ, जो अंततः भूस्खलन का कारण बना.

पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर ध्यान आकर्षित करते हुए रिपोर्ट में कहा गया, ‘पेड़ महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे बारिश के लिए यांत्रिक अवरोध के रूप में कार्य करते हैं, जल संरक्षण क्षमता में वृद्धि करते हैं और ढीले मलबे के ढेर को थामे रखते हैं.’

आगे कहा गया, ‘जोशीमठ क्षेत्र में प्राकृतिक वन आवरण को कई एजेंसियों द्वारा निर्दयतापूर्वक नष्ट कर दिया गया है. चट्टानी ढलान खाली और वृक्षरहित हैं. वृक्षों के अभाव में मृदा अपरदन और भूस्खलन होता है. पृथक चट्टानों को थामे रखने के लिए कुछ नहीं है. भूस्खलन और फिसलन प्राकृतिक परिणाम हैं.’

रिपोर्ट में बताया गया कि जोशीमठ रेत और पत्थर के जमाव पर स्थित है और एक शहर बसाने के लिए उपयुक्त नहीं है. इसमें कहा गया है कि धमाकों और भारी ट्रैफिक के कारण होने वाले कंपन प्राकृतिक कारकों में भी असंतुलन पैदा करेंगे.

इसमें कारण सहित यह भी समझाया गया है कि उचित जल निकासी सुविधाओं की कमी भी भूस्खलन के लिए जिम्मेदार है.

उपचारात्मक उपाय सुझाते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि मिट्टी की भार वहन क्षमता की जांच के बाद ही भारी निर्माण कार्य की अनुमति दी जानी चाहिए. सड़क की मरम्मत और अन्य निर्माण कार्य के लिए यह सलाह दी जाती है कि पहाड़ी को खोदकर या विस्फोट करके पत्थरों को न हटाया जाए. इसमें कहा गया है कि भूस्खलन की आशंका वाले क्षेत्रों में पहाड़ी की तलहटी से पत्थर और शिलाखंड नहीं हटाए जाने चाहिए.

इसमें यह कहा गया है, ‘आवासीय इलाकों में लकड़ी, जलाऊ लकड़ी और लकड़ी के कोयले की आपूर्ति के लिए पेड़ों की कटाई को सख्ती से विनियमित किया जाना चाहिए और भूस्खलन क्षेत्र में कोई पेड़ नहीं काटा जाना चाहिए. ढलानों पर कृषि से बचना चाहिए. इसके बजाय, मिट्टी और जल संसाधनों के संरक्षण के लिए पेड़ और घास लगाने का व्यापक अभियान चलाया जाना चाहिए.’

रिपोर्ट में भूस्खलन को रोकने के लिए पक्की नालियों के निर्माण का सुझाव दिया गया था, ताकि वर्षा जल का रिसाव जमीन में न हो.

गौरतलब है कि कई घरों में भारी दरारें आने के कुछ दिनों बाद पिछले हफ्ते उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी इसी तरह के उपाय सुझाए थे.

जोशीमठ शहर में स्थित एक मकान में दरार पड़ने के बाद प्रशासन ने उस पर लाल निशान लगाया है. (फोटो: पीटीआई)

चमोली जिला प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराए दए आंकड़ों के अनुसार, जोशीमठ क्षेत्र में लगभग 3,900 मकान और 400 व्यावसायिक भवन हैं, जो 2.5 वर्ग किलोमीटर में फैले हुए हैं.करीब 195 घर पीएम आवास योजना के तहत बनाए गए हैं.

सोमवार शाम तक इनमें से 678 घरों और संरचनाओं में दरारें आने की सूचना मिली थी. सोमवार को 27 और परिवारों को स्थानांतरित किए जाने के साथ ही अब तक कुल 81 परिवारों को अस्थायी आश्रयों में स्थानांतरित किया जा चुका है.

इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए नगर पालिका के अधिकारियों ने कहा कि केवल 1,790 घर संपत्ति कर जमा करते हैं, क्योंकि बाकी का निर्माण बिना अनुमति के किया गया है.

जिला स्तरीय विकास प्राधिकरण के एक अधिकारी ने कहा कि आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, 2018 से क्षेत्र में लगभग 60 नए घर बनाए गए हैं. हालांकि वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक है.

स्थानीय लोगों ने एनटीपीसी को ज़िम्मेदार ठहराया

जोशीमठ के निवासियों ने वर्तमान स्थिति के लिए बिजली और सड़क परियोजनाओं को जिम्मेदार ठहराया है. एनटीपीसी लिमिटेड, जिसके संरक्षण में एक महत्वपूर्ण परियोजना चलाई जा रही है, उसने आरोपों से खुद को अलग कर लिया है.

वहीं, रविवार (8 जनवरी) को प्रधानमंत्री कार्यालय ने भू-धंसाव की स्थिति से निपटने के लिए एक ‘उच्च स्तरीय बैठक’ की. पीएमओ ने राज्य सरकार को ‘निवासियों के साथ एक स्पष्ट और निरंतर संचार चैनल स्थापित करने’ की सलाह दी.

मनोहर बाग इलाके की निवासी 60 वर्षीय उषा ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया, ‘हम अपनी पहचान खोने के कगार पर हैं.’

उषा ने बताया कि उन्हें उस घर को खाली करने के लिए मजबूर किया गया था जिसे उन्होंने और उनके परिवार ने कई सालों में कमाए पैसे से बनाया था.

इस दौरान स्थानीय निवासियों ने बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं को दोषी ठहराया है. हिंदू की खबर के मुताबिक निवासियों ने 8 जनवरी को तहसील मुख्यालय पर प्रदर्शन किया था.

वहीं, एनटीपीसी लिमिटेड की तपोवन विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना ने 5 जनवरी से काम बंद कर दिया है.

इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि कंपनी ने दावा किया है कि इसकी 12.1 किलोमीटर की सुरंग का हालिया भू-धंसाव से कोई लेना-देना नहीं है.

एनटीपीसी ने एक बयान में कहा, ‘एनटीपीसी द्वारा निर्मित सुरंग जोशीमठ शहर के नीचे से नहीं गुजरती है. यह टनल एक टनल बोरिंग मशीन द्वारा खोदी गई है और वर्तमान में कोई ब्लास्टिंग (विस्फोट) नहीं की जा रही है.’

हालांकि, इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में कहा गया है कि कंपनी का ‘उल्लंघन’ का इतिहास है. रिपोर्ट में ऐसी घटनाओं को सूचीबद्ध भी किया गया है और 2019 में ही घटी एक ऐसी घटना पर जोर दिया गया है.

द हिंदू ने जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजन अतुल सती के लिए हवाले से लिखा है कि निवासियों ने इस बारे में वर्षों पहले ही चेतावनी जारी की थी. उन्होंने कहा, ‘हमने वर्षों पहले चेतावनी दी थी कि एनटीपीसी इस शहर को डुबाने वाला है. किसी ने ध्यान नहीं दिया. अब जोशीमठ की स्थिति देखिए.’

टेलीग्राफ के अनुसार, ज्योतिर्मठ (जोशीमठ) के शंकराचार्य ने ‘प्राचीन धार्मिक शहर की रक्षा’ करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की है और राज्य सरकार पर अविश्वास जताया है.

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने संवाददाताओं से कहा, ‘केंद्र और उत्तराखंड में भाजपा की सरकारें हैं, लेकिन किसी को भी शहर और इसके लोगों की परवाह नहीं है.’

इसके अलावा, 825 किलोमीटर के विवादास्पद चारधाम राजमार्ग पर पर्यावरण संबंधी चिंताओं को विशेषज्ञों द्वारा कई बार उठाया गया है. 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए इन्हें खारिज कर दिया था.

द वायर के एक लेख में भूविज्ञानी सीपी राजेंद्रन ने कहा था, ‘चौड़ी सड़कों के लिए पहाड़ियों को काटने से वे और अस्थिर हो जाएंगी.’

अन्य निवासियों ने द हिंदू को बताया कि वे लगभग एक साल से दरारों की शिकायत कर रहे हैं. ऐसी शिकायतों को नज़रअंदाज करने वाला प्रशासन कथित तौर पर तभी सक्रिय हुआ जब उसके अपने भवन में दरारें आने लगीं.

सड़कों और ट्रेकिंग रूट्स पर भी अब दरारें नजर आने लगी हैं. ऐसी ही दरारें और डूबने की शिकायतें जोशीमठ से 80 किलोमीटर दूर कर्णप्रयाग से आई हैं.