बीते 5 वर्षों में नियुक्त हाईकोर्ट के 79% नए जज कथित उच्च जाति से, दो फीसदी एससी और अल्पसंख्यक

केंद्रीय क़ानून मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, 2018 से 19 दिसंबर, 2022 तक विभिन्न उच्च न्यायालयों में कुल 537 न्यायाधीश नियुक्त किए गए, जिनमें से 79 प्रतिशत सामान्य वर्ग, 11 फीसदी ओबीसी, 2.6 प्रतिशत अल्पसंख्यक वर्ग से थे. अनुसूचित जातियों/जनजातियों की हिस्सेदारी क्रमशः 2.8 प्रतिशत और 1.3 प्रतिशत थी.

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(इलस्ट्रेशन: द वायर)

केंद्रीय क़ानून मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, 2018 से 19 दिसंबर, 2022 तक विभिन्न उच्च न्यायालयों में कुल 537 न्यायाधीश नियुक्त किए गए, जिनमें से 79 प्रतिशत सामान्य वर्ग, 11 फीसदी ओबीसी, 2.6 प्रतिशत अल्पसंख्यक वर्ग से थे. अनुसूचित जातियों/जनजातियों की हिस्सेदारी क्रमशः 2.8 प्रतिशत और 1.3 प्रतिशत थी.

(इलस्ट्रेशन: द वायर)

नई दिल्ली: केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय ने यह रेखांकित करते हुए कि अदालत की पीठ में विविधता सुनिश्चित करने का दायित्व न्यायपालिका पर है, कानून और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति को बताया है कि पिछले पांच वर्षों में नियुक्त किए गए उच्च न्यायालय के कुल न्यायाधीशों में से 79 प्रतिशत सामान्य श्रेणी (कथित उच्च जाति) से थे.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, मंत्रालय के न्याय विभाग ने भाजपा सांसद सुशील मोदी की अध्यक्षता वाली समिति के समक्ष इस संबंध में एक प्रेजेंटेशन भी दिया था.

आंकड़े बताते हैं कि 2018 से 19 दिसंबर, 2022 तक विभिन्न उच्च न्यायालयों में कुल 537 न्यायाधीशों को नियुक्त किया गया था, जिनमें से 79 प्रतिशत सामान्य वर्ग, 11 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और 2.6 प्रतिशत अल्पसंख्यक वर्ग से थे. अनुसूचित जातियों और जनजातियों की हिस्सेदारी क्रमशः 2.8 प्रतिशत और 1.3 प्रतिशत थी. बताया गया है कि मंत्रालय 20 जजों की सामाजिक पृष्ठभूमि को लेकर निश्चित नहीं था.

2018 में मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित लोगों को उनकी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के विवरण के साथ एक फॉर्म भरने के लिए कहा था. मार्च 2022 में राज्यसभा में दिए गए एक जवाब में केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा था कि ‘सरकार उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति में सामाजिक विविधता के लिए प्रतिबद्ध है.’

उनका कहना था, ‘हम उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से अनुरोध करते रहे हैं कि जजों की नियुक्ति के लिए प्रस्ताव भेजते समय हाईकोर्ट्स में सामाजिक विविधता सुनिश्चित करने के लिए अनुसूचित जाति/जनजाति, ओबीसी, अल्पसंख्यकों और महिलाओं से संबंधित उपयुक्त उम्मीदवारों पर उचित विचार किया जाए.’

उल्लेखनीय है कि उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 217 के तहत की जाती है और कोई कोटा तय नहीं है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में 1993 के ऐतिहासिक मामले- सेकेंड जजेस केस- जिसने न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली की स्थापना की, में नियुक्तियों के लिए सिफारिशें में प्रतिनिधित्व पर जोर दिया गया है.

अदालत ने कहा था, ‘हमारी लोकतांत्रिक राजनीति न केवल किसी स्वयंभू कुलीनतंत्र के लिए है बल्कि देश के सभी लोगों के लिए है. अगर कमजोर वर्ग को पूरी तरह से उपेक्षित किया जाता है, तो हम वास्तविक साझा लोकतंत्र पा लेने का दावा नहीं कर सकते हैं.’

गौरतलब है कि बीते दिनों एक कार्यक्रम में प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि कानून के पेशे की संरचना ‘सामंती, पितृसत्तात्मक और महिलाओं को जगह नहीं देने वाली’ बनी हुई है.

उनका कहना था कि इसमें अधिक संख्या में महिलाओं एवं समाज के वंचित वर्गों के लोगों के प्रवेश की खातिर लोकतांत्रिक व प्रतिभा आधारित प्रक्रिया अपनाने की जरूरत है.