राज्यपाल आरएन रवि और राज्य सरकार के बीच टकराव की शुरुआत रवि द्वारा प्रदेश का नाम बदलने का सुझाव देने के साथ हुई थी. बीते सोमवार को विधानसभा में राज्यपाल ने सरकार द्वारा तैयार अभिभाषण के कुछ अंशों को छोड़ दिया, जिसके बाद मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इस बदलाव को ख़ारिज करने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया, जिस पर रवि सदन से वॉकआउट कर गए.
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चेन्नई: तमिलनाडु में राज्य सरकार और राजभवन आमने-सामने आ गए हैं. टकराव की शुरुआत चार जनवरी की राज्यपाल आरएन रवि द्वारा की गई उस टिप्पणी से हुई थी, जिसमें उन्होंने तमिलनाडु के लिए ‘तमिझगम’ नाम सुझाया था और टकराव अपने निचले स्तर पर सोमवार को तब पहुंचा, जब सरकार ने राज्यपाल आरएन रवि पर विधानसभा में दिए अभिभाषण में कुछ अंशों को छोड़ने का आरोप लगाया.
इसके बाद मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इस बदलाव को खारिज करने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया, जबकि रवि सदन से ‘वॉकआउट’ कर गए जो विधानसभा के इतिहास में संभवत: पहली बार हुआ.
सदन का यह नाटकीय घटनाक्रम जल्द ही सोशल मीडिया पर सत्तारूढ़ द्रमुक के समर्थकों और आलोचकों के बीच बहस में तब्दील हो गया. यहां तक कि ट्विटर पर ‘हैशटैग गेटआउट रवि (#GetOutRavi)’ ट्रेंड करने लगा और कई लोग रवि को राज्यपाल के पद से हटाने की मांग करने लगे.
हालांकि, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की तमिलनाडु इकाई ने रवि का समर्थन किया और इसे ‘अपमानजनक एवं अविवेकपूर्ण’ करार दिया. वहीं, स्टालिन ने राज्यपाल की मौजूदगी में उनके खिलाफ एक प्रस्ताव पेश किया.
इस साल के सदन के पहले सत्र की शुरुआत होने पर राज्यपाल ने विधानसभा में पारंपरिक अभिभाषण दिया जिसे मुख्य विपक्षी दल ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (एआईएडीएमके) ने ‘निराशाजनक’ बताया और स्टालिन द्वारा पेश प्रस्ताव की ओर इशारा करते हुए कहा कि राज्यपाल जब वहां मौजूद थे तब मुख्यमंत्री द्वारा ‘कुछ कहना’ ‘अशोभनीय’ था.
इससे पहले रवि ने सत्तारूढ़ द्रमुक के सहयोगी दलों के विधायकों की नारेबाजी के बीच अपना अभिभाषण पढ़ा.
रवि ने जैसे ही तमिल में अपना अभिभाषण शुरू किया और सदस्यों को नए साल की एवं फसल तैयार होने पर मनाए जाने वाले त्योहार ‘पोंगल’ की बधाई दी, वैसे ही विधायकों ने हंगामा शुरू कर दिया. उन्होंने ‘तमिलनाडु वाझगवे’ (तमिलनाडु अमर रहे) और ‘एंगल नाडु तमिलनाडु’ (तमिलनाडु हमारी भूमि है) के नारे लगाए. हालांकि, कुछ देर बाद नारेबाजी बंद हो गई.
रवि ने स्वामी विवेकानंद का संदर्भ दिया, जिससे सत्ता पक्ष नाराज हो गया. साथ ही उन्होंने अपने पारंपरिक अभिभाषण के कुछ अंशों को छोड़ दिया.
उन्होंने दिवंगत ईवी रामास्वामी ‘पेरियार’ और सीएन अन्नादुरई सहित प्रमुख द्रविड़ हस्तियों के नाम छोड़ दिए.
अभिभाषण शुरू होने पर राज्यपाल को विधायकों के विरोध का सामना करना पड़ा जो सदन के बीचों बीच आ गए और उनके खिलाफ नारेबाजी करने लगे. लेकिन इससे बिना प्रभावित हुए रवि ने अपना अभिभाषण जारी रखा लेकिन राज्य सरकार की पहलों विशेषकर शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में शुरू किए गए ‘इल्लम थेड़ी कलवी’ और ‘मक्कलई थेड़ी मरुथुवम’ के संदर्भ में लिखे गए अहम अंश को छोड़ दिए.
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उन्होंने अभिभाषण के 65वें बिंदु को भी छोड़ दिया जिसमें कहा गया था कि सरकार सामाजिक न्याय, स्वाभिमान, समावेशी विकास, समानता, महिला सशक्तिकरण, धर्मनिरपेक्षता और सभी के प्रति करुणा के आदर्शों पर स्थापित है. राज्यपाल द्वारा छोड़े गए शब्दों में ‘द्रविड़ियन मॉडल’ भी शामिल था और कुछ पहलुओं पर उन्होंने अपने विचार भी रखे. रवि ने ‘वझिया सेंथमीज. वझगा नटरामिझर. और वझिया भरत मणि थिरु नाडु’ कहकर अपना अभिभाषण समाप्त किया.
कुल 67 बिंदुओं वाले अभिभाषण में कहा गया है, ‘थंथई पेरियार (ईवी रामासामी), अन्नाल अंबेडकर, पेरुनथलाइवर कामराजार (के कामराज), पेरारिग्नर अन्ना (सीएन अन्नादुरई) और मुथमिज़ अरिगनार कलैगनार (एम करुणानिधि) जैसे दिग्गजों के सिद्धांतों और आदर्शों का पालन करते हुए, सरकार शासन के बहुप्रशंसित द्रविड़ मॉडल को अपने लोगों तक पहुंचा रही है.’
इसके अलावा, उन्होंने 12वें बिंदु के कुछ हिस्सों को भी छोड़ दिया जिसमें राज्य को यह सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक उपाय करने की बात की गई है कि यह किसी भी प्रकार की हिंसा से मुक्त और शांति का आश्रय बना रहे.
रवि के अभिभाषण के बाद स्टालिन ने राज्यपाल द्वारा अभिभाषण के कुछ हिस्सों को छोड़ दिए जाने पर खेद जताया. मुख्यमंत्री ने एक प्रस्ताव पेश किया, जिसे स्वीकृत कर लिया गया और रवि तुरंत सदन से बाहर चले गए.
विधानसभा अध्यक्ष एम. अप्पावु द्वारा राज्यपाल के अभिभाषण को तमिल में पढ़े जाने के बाद मुख्यमंत्री खड़े हुए और रवि के खिलाफ प्रस्ताव पेश किया, जिसमें उन्होंने किए गए बदलाव को खारिज करने और राज्यपाल के लिए सरकार द्वारा तैयार अभिभाषण के अंश को ही केवल सदन में वैध घोषित करने की मांग की. इससे पहले कि स्टालिन अपनी टिप्पणी समाप्त कर पाते, रवि सदन से बाहर चले गए.
बाद में विधानसभा के घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उद्योग मंत्री थंगम थेनारासु ने कहा कि रवि ने सदन की परंपरा का पालन नहीं किया. उन्होंने आरोप लगाया, ‘उनका अभिभाषण सरकार द्वारा तैयार किया गया था और मंजूरी के लिए उनके पास भेजा गया था. हम इसे राष्ट्रगान का अपमान मानते हैं क्योंकि वह राष्ट्रगान बजाए जाने से पहले ही बाहर चले गए.’
उधर, विपक्ष के नेता के. पलानीस्वामी ने दावा किया कि मुख्यमंत्री द्वारा राज्यपाल के खिलाफ प्रस्ताव पेश करना परंपरा के खिलाफ है. अन्नाद्रमुक नेता ने संवाददाताओं से कहा कि इसमें किसी भी बड़ी सरकारी परियोजना की घोषणा नहीं की गई जिससे निराशा हुई.
भाजपा राज्यपाल के समर्थन में उतरी और सत्तारूढ़ द्रमुक और विधानसभा अध्यक्ष एम. अप्पावु की आलोचना की. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के. अन्नामलाई ने द्रमुक और उसकी सहयोगी पार्टियों पर सोमवार को ‘छुटभैये तत्वों’ की तरह बर्ताव करने का आरोप लगाया.
अन्नामलाई ने कई ट्वीट कर कहा, ‘प्रस्ताव लाकर राज्यपाल के अभिभाषण में हस्तक्षेप करना, जब वह खुद सदन में मौजूद थे, ‘अपमानजनक और अविवेकपूर्ण’ बर्ताव है.’ भाजपा की विधायक वनथी श्रीनिवासन ने आरोप लगाया कि राज्यपाल द्वारा पढ़े जाने वाले अभिभाषण के लिए सरकार ने राजभवन की सहमति नहीं ली. उन्होंने रवि का बचाव किया तथा द्रमुक शासन पर निशाना साधा.
वहीं द्रमुक के कई कार्यकर्ताओं, समर्थकों ने प्रस्ताव पारित करने के लिए स्टालिन की प्रशंसा की और सोशल मीडिया पर ‘हैशटैग गेटआउट रवि’ ट्रेंड करने लगा.
पट्टाली मक्कल काची डॉ. एस रामदास ने कहा कि ‘तमिलनाडु ने ऐसा कभी नहीं देखा था कि एक राज्यपाल के मन में सदन की परंपराओं और शालीनता के प्रति कोई सम्मान नहीं हो.’
अम्मा मक्कल मुन्नेत्र कषगम (एएमएमके) नेता टीटीवी दिनाकरन ने दिन के घटनाक्रम पर खेद जताया और कहा कि यह तमिलनाडु विधानसभा के इतिहास में ‘काला दिन’ था.
राज्यपाल और सत्तारूढ़ द्रमुक एवं उसके सहयोगी दलों के बीच कई मुद्दों को लेकर विवाद रहा है. सत्तारूढ़ पार्टी के सहयोगी दलों में कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) शामिल हैं.
विधानसभा को संबोधित करने में राज्यपाल के निजी विचारों के लिए कोई जगह नहीं: तमिलनाडु सरकार
सोमवार के घटनाक्रम के बाद मंगलवार को तमिलनाडु की सरकार ने स्पष्ट रूप से कहा कि विधानसभा को संबोधित करने के दौरान राज्यपाल को राज्य सरकार द्वारा तैयार अभिभाषण को ही पढ़ना चाहिए और उसमें उनके निजी विचारों या आपत्ति के लिए कोई स्थान नहीं है.
तमिलनाडु सरकार ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद-176 के तहत साल के पहले विधानसभा सत्र के पहले दिन राज्यपाल का अभिभाषण ‘राज्य सरकार की नीतियों, योजनाओं और उपलब्धियों के बारे में बताने वाला होता है.’
बयान में कहा गया है, ‘संविधान के अनुसार, परंपरा है कि राज्यपाल (राज्य) सरकार द्वारा तैयार भाषण पढ़ते हैं. इस अभिभाषण में राज्यपाल के निजी विचारों और आपत्तियों के लिए कोई स्थान नहीं है. इतना ही नहीं, यह उनका व्यक्तिगत वक्तव्य नहीं है, बल्कि सरकार का भाषण है.’
बयान में कहा गया है कि अतीत में भी तमाम राज्यपालों ने इस परंपरा का पालन किया है.
अभिभाषण का मसौदा छह जनवरी की सुबह राजभवन भेजा गया था और फिर कुछ सुधारों के बाद उसी शाम दोबारा भेजा गया. सरकार ने बयान में कहा है कि राज्यपाल के कार्यालय ने कुछ बदलावों का सुझाव दिया था, जिसके बाद तीसरा मसौदा अगले दिन उनके कार्यालय भेजा गया. आठ जनवरी को राज्यपाल की मंजूरी के साथ उसे सरकार के पास वापस भेजा गया था.
सरकार ने जोर दिया कि इस दावे में कोई सच्चाई नहीं है कि राज्यपाल अभिभाषण से कुछ हिस्सों को हटाना चाहते थे. बयान के अनुसार, ‘ऐसा कुछ नहीं हुआ. (अभिभाषण के मसौदे की) फाइल राज्यपाल की मंजूरी के साथ आठ जनवरी को सुबह 11:30 बजे प्राप्त हुई. उसे नौ जनवरी को दोपहर 12:30 बजे छपने के लिए भेजा गया.’
कांग्रेस और एनसीपी ने भी की राज्यपाल की आलोचना
कांग्रेस ने विधानसभा में घटित घटनाक्रम के मद्देनजर आरोप लगाया है कि राज्यपाल आरएन रवि ने संवैधानिक नियमों और परंपराओं का उल्लंघन किया है तथा इस संवैधानिक पद को कलंकित किया है.
पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने ट्वीट किया, ‘आईबी के पूर्व अधिकारी व तमिलनाडु के राज्यपाल का विधानसभा में जो व्यवहार देखने को मिला वह सभी संवैधानिक नियमों और परंपराओं का खुला उल्लंघन है.’
उन्होंने आरोप लगाया, ‘वह स्पष्ट रूप से उन लोगों की तरफ से काम कर रहे हैं जिन्होंने उन्हें नियुक्त किया है. वह जिस पद पर आसीन हैं उसके लिए कलंक हैं.’
वहीं, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने भी मंगलवार को राज्यपाल रवि की आलोचना की. एनसीपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता क्लाइट क्रैस्टो ने कहा कि राज्यपाल राज्य के संरक्षक होते हैं. उनका संवैधानिक कर्तव्य तटस्थ रहना होता है.
क्रैस्टो ने एक बयान में कहा कि राज्यपाल का पद संवैधानिक होता है और इसलिए उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि नियुक्ति के बाद वे किसी भी पार्टी से संबंधित नहीं होते हैं. इसलिए, वे जिस पार्टी से संबंधित हैं, उसकी लाइन पर नहीं चल सकते.
एनसीपी नेता ने कहा, ‘राज्यपाल राज्य के संरक्षक होते हैं और तटस्थ रहना उनका संवैधानिक कर्तव्य है. तमिलनाडु विधानसभा में राज्यपाल रवि का व्यवहार उनके कद और संवैधानिक स्थिति के अनुकूल नहीं था.’
तमिलनाडु में लगे ‘गेटआउट रवि’ लिखे पोस्टर
विधानसभा में हुए विवाद के अगले ही दिन मंगलवार को शहर के कुछ हिस्सों में ‘हैशटैग गेटआउट रवि’ लिखे पोस्टर दिखाई दिए.
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इन पोस्टरों में मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की तस्वीर को प्रमुखता दी गई है. गौरतलब है कि विधानसभा में रवि के राज्य सरकार के साथ ‘गतिरोध’ के बाद सोमवार को ट्विटर पर यह हैशटैग (गेटआउट रवि) ट्रेंड कर रहा था.
पुडुकोट्टई में स्थानीय भाजपा पदाधिकारियों द्वारा रवि की प्रशंसा में पोस्टर लगाए गए थे. भाजपा के कई ट्विटर खातों ने उनका समर्थन किया और इस मामले को लेकर सत्तारूढ़ द्रमुक की आलोचना की.
वहीं, स्टालिन के बेटे और राज्य मंत्री उदयनिधि ने सोमवार को विधानसभा में जो हुआ, उसकी सराहना की और कहा कि यह सदन के इतिहास में एक अभूतपूर्व घटना थी. उन्होंने एक कार्यक्रम में चुटकी लेते हुए कहा, ‘आम तौर पर हमारे नेता (स्टालिन) विपक्ष को अपने जवाब से (विधानसभा में) मैदान छोड़ने पर मजबूर कर देते हैं, लेकिन इस बार राज्यपाल को मैदान छोड़ना पड़ा.’
उन्होंने कहा कि जब भी ‘हमारे अधिकार’ प्रभावित होंगे, स्टालिन चिंता व्यक्त करने वाले पहले मुख्यमंत्री होंगे.
इस बीच, तमिलनाडु में भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने सत्ताधारी द्रमुक के कुछ विधायकों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है.
प्रदेश सचिव ए. अश्वतथामन ने एक ट्वीट में कहा कि उन्होंने आईपीसी की धारा-124 के तहत शिकायत दर्ज कराई है जो ‘किसी भी वैध शक्ति के प्रयोग को रोकने के लिए मजबूर करने के इरादे से राष्ट्रपति, राज्यपाल आदि पर हमला करने’ से संबंधित है.
वहीं, कोयंबटूर में थंथाई पेरियार द्रविड़ कषगम द्वारा राज्यपाल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया गया जहां आंदोलनकारियों ने रवि का पुतला जलाने का प्रयास किया. अन्य जगहों पर स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं ने घटना की निंदा करते हुए प्रदर्शन किया.
पहले से ही थे विधानसभा सत्र में टकराव के आसार
गौरतलब है कि विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों के लंबित रहने तथा वैचारिक एवं नीतिगत मामलों में राज्यपाल आरएन रवि और सत्ताधारी दल तथा उसके सहयोगियों के बीच वाकयुद्ध की पृष्ठभूमि में सदन का संक्षिप्त सत्र बुलाया गया था.
रवि तमिलनाडु (राज्य का आधिकारिक नाम) के बदले ‘तमिझगम’ शब्द का कथित तौर पर समर्थन कर रहे हैं, जो राजभवन और सत्ताधारी पार्टी एवं उसके सहयोगियों के बीच वाकयुद्ध का कारण बना था.
द्रमुक और सहयोगी दलों ने रवि के रुख का कड़ा विरोध करते हुए भाजपा की विचारधारा को मानने का आरोप लगाया था. तमिझगम और तमिलनाडु दोनों का मोटे तौर पर मतलब है, ‘तमिलों की भूमि.’ तमिझगम विवाद पर भाजपा ने रवि का समर्थन किया था.
वहीं, सत्तारूढ़ द्रमुक ने नाराजगी जताते हुए रविवार को उन पर विकासात्मक पहलों पर ध्यान देने के बदले राज्य की राजनीति में अनावश्यक रूप से हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया था.
इसके विपरीत, भाजपा ने रवि की टिप्पणी को सही ठहराते हुए कहा था कि ‘तमिझगम’ शब्द राज्य में आम उपयोग में है और द्रमुक अनावश्यक रूप से उन्हें निशाना बना रही है क्योंकि उन्होंने ‘एनईईटी’ विधेयक पर सरकार से सवाल किया था.
द्रमुक के संगठन सचिव आरएस भारती ने कहा था, ‘राज्यपाल कुछ ऐसा करने की कोशिश कर रहे हैं जो उनके पद के अनुकूल नहीं है. वह द्रमुक सरकार की विकासात्मक पहलों को महत्व देने के बदले राजनीति के बारे में बात करना चाहते हैं.’
वरिष्ठ अधिवक्ता भारती ने कहा था कि राज्य की राजनीति में हस्तक्षेप करना राज्यपाल के लिए उचित नहीं है. उन्होंने कहा कि अगर रवि राजनीति के बारे में बात करना चाहते हैं तो उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए.
भारती ने दावा किया था, ‘वह (आरएन रवि) केवल किसी कॉलेज में व्याख्याता होने के लायक हैं. वह सरकारी विधेयकों पर बैठे हैं और गैर-जरूरी मामलों में हस्तक्षेप कर रहे हैं, जो एक व्यवस्थित राज्य में फूट पैदा कर रहा है. वह तमिलनाडु में सद्भाव को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं.’
काशी तमिल संगमम के आयोजकों और स्वयंसेवकों के सम्मान में राजभवन में चार जनवरी को आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए रवि ने कथित तौर पर टिप्पणी की थी कि ‘तमिझगम’ तमिलनाडु के लिए अधिक उपयुक्त नाम है.
उन्होंने कार्यक्रम में कहा था, ‘यहां तमिलनाडु में, एक अलग तरह का विमर्श बनाया गया है. पूरे देश के लिए लागू होने वाली हर चीज के लिए तमिलनाडु इनकार करेगा. यह एक आदत बन गई है. इतनी सारी थीसिस लिखी गई हैं – सभी झूठी और कल्पना. इसे तोड़ा जाना चाहिए. सत्य की जीत होनी चाहिए.’
राज्यपाल के बयान में कुछ भी गलत नहीं होने का दावा करते हुए भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष एम. चक्रवर्ती ने कहा था कि द्रमुक ने रवि को निशाना बनाया क्योंकि उन्होंने ‘एनईईटी’ विधेयक और ‘ऑनलाइन गेमिंग’ पर सरकार से सवाल किए थे.
वहीं, द्रमुक के आधिकारिक मुखपत्र ‘मुरासोली’ में भी शनिवार को राज्यपाल रवि की कथित ‘तमिझगम’ टिप्पणी के लिए आलोचना की गई थी और कहा गया था कि तमिलनाडु जितना संविधान और कानूनों का सम्मान करता है, उतना कोई नहीं करता.
‘तमिझगम’ तमिलनाडु के लिए एक अधिक उपयुक्त नाम होने संबंधी राज्यपाल के कथित सुझाव पर कड़ी आपत्ति जताते हुए ‘मुरासोली’ में एक लेख में कहा गया है कि राज्यपाल को भारत के इतिहास पर पाठ पढ़ने का समय आ गया है.
‘मुरासोली’ में कहा गया, ‘वह (रवि) कहते हैं कि तमिलनाडु शब्द एक संप्रभु राष्ट्र का सूचक है. आइए हम अन्य राज्यों के नामों पर गौर करें. राजस्थान का नाम कैसा है? क्या यह पाकिस्तान, अफगानिस्तान, उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान की तरह नहीं लगता है? महाराष्ट्र का क्या अर्थ है? क्या इसका मतलब यह नहीं है कि यह मराठा लोगों का देश है. क्या यह स्वर में अलगाववादी है?’
वरिष्ठ अधिकारियों के बीच ‘वार्तालाप’ शीर्षक वाले इस लेख में कहा गया है कि भारत कभी भी एक देश नहीं रहा, भारत केवल कई देशों का संघ है.
लेख में कहा गया ‘भारत अंग्रेजों की देन है.’ एक काल्पनिक ‘अखंड भारत’ पर गर्व महसूस करने के बजाय राज्यपाल रवि को अंग्रेजों को भारत बनाने के लिए धन्यवाद देना चाहिए.
अखबार में कहा गया यह केवल तमिलनाडु है, जिसने देश की संप्रभुता और कानून के राज का अधिक सम्मान किया और उत्तरी राज्यों की तुलना में अधिक करों का भुगतान किया तथा बदले में बहुत कम मिला है. ‘मुरासोली’ में सवाल किया गया, ‘क्या भाजपा सांसद तेजस्वी सूर्या कर्नाटक के राज्य ध्वज को हटा देंगे, क्योंकि भारत के लिए एक राष्ट्रीय ध्वज है?’
राजभवन के पोंगल समारोह के निमंत्रण पत्र को लेकर नया विवाद
इस बीच, राजभवन के पोंगल समारोह के निमंत्रण पत्र पर कथित रूप से राज्य सरकार का प्रतीक चिह्न नहीं होने पर एक और विवाद छिड़ गया है. 12 जनवरी के आयोजन के निमंत्रण में केवल राष्ट्रीय प्रतीक शामिल था, कुछ ऑनलाइन उपयोगकर्ताओं ने इसकी आलोचना की. कुछ अन्य लोगों ने इसे तमिलनाडु सरकार के अपमान के रूप में देखा.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, 12 जनवरी को चेन्नई राजभवन में पोंगल पेरुविझा उत्सव के निमंत्रण में रवि ने खुद को ‘तमिझगा आलुनार’ या ‘तमिझगम गवर्नर’ भी कहा है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि इससे पहले राजभवन के पोंगल निमंत्रण में ‘तमिलनाडु के राज्यपाल’ पढ़ा जाता था. पिछले साल तमिल नववर्ष समारोह के लिए राज्यपाल के कार्यालय द्वारा भेजे गए कार्ड में भी यही वाक्यांश था.
वहीं, इसमें पहले श्रीविल्लिपुथुर के अंडाल मंदिर के अंदल मंदिर के टावर का तमिलनाडु सरकार का प्रतीक चिह्न भी था, जिसे इस बार केंद्र सरकार के प्रतीक चिह्न से बदल दिया गया है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)