उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम निरस्त किए जाने पर कहा कि ऐसा दुनिया में कहीं नहीं हुआ. कोई भी संस्था लोगों के जनादेश को बेअसर करने के लिए शक्ति या अधिकार का इस्तेमाल नहीं कर सकती है. इससे पहले भी वह सुप्रीम कोर्ट के इस क़दम की आलोचना कर चुके हैं.
जयपुर: राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम निरस्त किए जाने के मुद्दे पर परोक्ष रूप से न्यायपालिका की आलोचना करते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बुधवार को एक बार फिर कहा कि संसद के बनाए कानून को किसी और संस्था द्वारा अमान्य किया जाना लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2015 में एनजेएसी अधिनियम को निरस्त किए जाने को लेकर उन्होंने यह भी कहा कि ‘दुनिया में ऐसा कहीं नहीं हुआ है.’
धनखड़ ने कहा कि लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए संसदीय संप्रभुता और स्वायत्तता सर्वोपरि है और कार्यपालिका या न्यायपालिका को इससे समझौता करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.
साथ ही संविधान में परिकल्पित राज्य के सभी अंगों के बीच सामंजस्यपूर्ण संबंधों की आवश्यकता पर जोर देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि लोकतंत्र तब कायम रहता है और फलता-फूलता है जब विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका लोगों की आकांक्षाओं को साकार करने के लिए मिलकर काम करती हैं.
संसद के कामकाज में कतिपय न्यायिक हस्तक्षेप को लेकर तल्ख टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा, ‘विधायिकाओं के पीठासीन अधिकारियों के रूप में न्यायपालिका-विधायिका संबंधों पर हम ‘शुतुरमुर्ग’ जैसा रवैया नहीं अपना सकते. संसदीय संप्रभुता को कार्यपालिका या न्यायपालिका द्वारा कमजोर या इससे समझौता करने की अनुमति नहीं दी जा सकती.’
धनखड़ राजस्थान विधानसभा में अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे.
संवैधानिक संस्थाओं के अपनी सीमाओं में रहकर संचालन करने की बात करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘संविधान में संशोधन का संसद का अधिकार क्या किसी और संस्था पर निर्भर कर सकता है. क्या भारत के संविधान में कोई नया ‘थियेटर’ (संस्था) है, जो कहेगा कि संसद ने जो कानून बनाया उस पर हमारी मुहर लगेगी, तभी कानून होगा. 1973 में एक बहुत गलत परंपरा पड़ी, 1973 में केशवानंद भारती के केस में सुप्रीम कोर्ट ने मूलभूत ढांचे का विचार रखा कि संसद, संविधान में संशोधन कर सकती है, लेकिन मूलभूत ढांचे में नहीं.’
उन्होंने कहा, ‘यदि संसद के बनाए गए कानून को किसी भी आधार पर कोई भी संस्था अमान्य करती है तो यह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं होगा. बल्कि यह कहना मुश्किल होगा कि क्या हम लोकतांत्रिक देश हैं.’
संसद द्वारा पारित एनजेएसी अधिनियम को सुप्रीम कोर्ट द्वारा निरस्त किए जाने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम पारित किया गया. ऐसे कानून को सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त कर दिया. दुनिया में ऐसा कहीं नहीं हुआ है.’
उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘कार्यपालिका को संसद से निकलने वाले संवैधानिक नुस्खे के अनुपालन के लिए नियुक्त किया गया है. यह एनजेएसी का पालन करने के लिए बाध्य है. न्यायिक फैसले इसे निरस्त नहीं कर सकते.’
उन्होंने आगे कहा, ‘संसदीय संप्रभुता को कार्यपालिका या न्यायपालिका द्वारा कमजोर करने की अनुमति नहीं दी जा सकती.’
उनका बयान न्यायपालिका में उच्च पदों पर नियुक्ति के मुद्दे पर जारी बहस के बीच आया है, जिसमें सरकार वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली पर सवाल उठा रही है और सुप्रीम कोर्ट इसका बचाव कर रहा है.
धनखड़ ने कहा कि कोई भी संस्था लोगों के जनादेश को बेअसर करने के लिए शक्ति या अधिकार का इस्तेमाल नहीं कर सकती है. उन्होंने सम्मेलन में पीठासीन अधिकारियों से कहा कि लोगों की संप्रभुता की रक्षा करना संसद और विधायिकाओं का दायित्व है.
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने भी कमोबेश इसी तरह की बात करते हुए सम्मेलन में कहा कि न्यायपालिका से संविधान में परिभाषित शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का पालन करने की अपेक्षा की जाती है.
विधायिका और न्यायपालिका के बीच संबंधों पर बिरला ने कहा कि हमारे देश में विधानमंडलों ने न्यायपालिका की शक्तियों और अधिकारों का सदैव सम्मान किया है.
इस संदर्भ में उन्होंने जोर देकर कहा कि न्यायपालिका से भी यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने ‘संवैधानिक जनादेश’ (संविधान प्रदत शक्तियों) का उपयोग करते समय सभी संस्थाओं के बीच संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों के पृथक्करण और संतुलन के सिद्धांत का अनुपालन करे.
उन्होंने कहा कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका, तीनों ही अपनी शक्तियां तथा क्षेत्राधिकार संविधान से प्राप्त करते हैं और तीनों को एक दूसरे का और क्षेत्राधिकार का ध्यान रखते हुए आपसी सामंजस्य, विश्वास और सौहार्द के साथ कार्य करना चाहिए. उन्होंने न्यायपालिका को संवैधानिक मर्यादा के भीतर रहने की सलाह दी.
उल्लेखनीय है कि सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में धनखड़ व बिरला के साथ-साथ राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी भी मौजूद थे.
सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ द्वारा अटॉर्नी जनरल को संवैधानिक प्राधिकारों को कॉलेजियम प्रणाली पर बयान देने से बचने का संदेश देने का कहे जाने का उल्लेख करते हुए धनखड़ ने कहा, ‘मैंने इस बिंदु पर अटॉर्नी जनरल को सुनने से इनकार कर दिया. मैं विधायिका की शक्तियों को कमजोर करने में पक्षकार नहीं बन सकता.’
उन्होंने कहा, ‘आज न्यायिक मंचों से यह एकतरफा व सार्वजनिक तेवर अच्छा नहीं है. इन संस्थानों को पता होना चाहिए कि उन्हें कैसे व्यवहार करना है.’
बीते कुछ समय से कॉलेजियम प्रणाली सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के बीच गतिरोध का विषय है. कानून मंत्री रिजिजू लगातार कॉलेजियम प्रणाली पर निशाना साधते रहे हैं.
उल्लेखनीय है कि जस्टिस एसके कौल की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने आठ दिसंबर 2022 को अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि से सरकार को इस बारे में सलाह देने के लिए कहा था.
इससे एक दिन पहले (7 दिसंबर 2022) राज्यसभा के सभापति के रूप में अपने पहले भाषण में जगदीप धनखड़ ने एनजेएसी अधिनियम निरस्त करने के लिए न्यायपालिका की आलोचना की थी.
तब उन्होंने कहा था, ‘लोकतांत्रिक इतिहास में इस तरह की घटना का कोई उदाहरण नहीं है, जहां एक विधिवत वैध संवैधानिक विधि को न्यायिक रूप से पहले की स्थिति में लाया गया हो. यह संसदीय संप्रभुता के गंभीर समझौते और लोगों के जनादेश की अवहेलना का एक ज्वलंत उदाहरण है, जिनके संरक्षक यह सदन और लोकसभा हैं.’
यह पहली बार नहीं था जब धनखड़ ने उपराष्ट्रपति बनने के बाद एनजेएसी को खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की थी.
2 दिसंबर 2022 को भी उन्होंने कहा था कि वह ‘हैरान’ थे कि शीर्ष अदालत द्वारा एनजेएसी कानून को रद्द किए जाने के बाद संसद में कोई चर्चा नहीं हुई. उससे पहले उन्होंने संविधान दिवस (26 नवंबर 2022) के अवसर पर हुए एक कार्यक्रम में भी ऐसी ही टिप्पणी की थी.
कांग्रेस ने उपराष्ट्रपति धनखड़ की टिप्पणी को न्यायपालिका पर ‘अभूतपूर्व हमला’ बताया
कांग्रेस ने गुरुवार को कहा कि राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ का केशवानंद भारती मामले से जुड़े फैसले को ‘गलत’ कहना न्यायपालिका पर अभूतपूर्व हमला है.
पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने ट्वीट किया, ‘सांसद के रूप में 18 वर्षों में मैंने कभी भी किसी को नहीं सुना कि वह सुप्रीम कोर्ट के केशवानंद भारती मामले के फैसले की आलोचना करे. वास्तव में अरुण जेटली जैसे भाजपा के कई कानूनविदों ने इस फैसले की सराहना मील के पत्थर के तौर पर की थी. अब राज्यसभा के सभापति कहते हैं कि यह फैसला गलत है. यह न्यायपालिका पर अभूतपूर्व हमला है.’
In my 18 years as a MP, I’ve never heard anyone criticise the 1973 Kesavananda Bharati judgment of Supreme Court. In fact, legal luminaries of BJP like Arun Jaitley hailed it as a milestone. Now, Chairman of Rajya Sabha says it was wrong. Extraordinary attack on the judiciary!
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) January 12, 2023
उन्होंने यह भी कहा, ‘एक के एक बाद संवैधानिक संस्थानों पर हमला किया जाना अप्रत्याशित है. मत भिन्नता होना अलग बात है, लेकिन उप राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट के साथ टकराव को एक अलग ही स्तर पर ले गए हैं.’
It also bears mention that a no holds barred assault on one Constitutional institution by another is quite unprecedented. Having different views is one thing, but the Vice President has taken the confrontation with the Supreme Court to an altogether different level! https://t.co/cZfACzoSNV
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) January 12, 2023
पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ वकील पी. चिदंबरम ने ट्वीट कर कहा, ‘राज्यसभा के सभापति जब यह कहते हैं कि संसद सर्वोच्च है तो वह गलत हैं. संविधान सर्वोच्च है. उस फैसले (केशवानंद भारती) को लेकर यह बुनियाद थी कि संविधान के आधारभूत सिद्धांतों पर बहुसंख्यकवाद आधारित हमले को रोका जा सके.’
The Hon’ble Chairman of the Rajya Sabha is wrong when he says that Parliament is supreme. It is the Constitution that is supreme.
The “basic structure” doctrine was evolved in order to prevent a majoritarian-driven assault on the foundational principles of the Constitution.
— P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) January 12, 2023
उनका यह भी कहना है, ‘एनजेएसी अधिनियम को निरस्त किए जाने के बाद सरकार को किसी ने नहीं रोका था कि वह नया विधेयक लाए. विधेयक को निरस्त करने का मतलब यह नहीं है कि आधारभूत सिद्धांत ही गलत है.’
After the NJAC Act was struck down, nothing prevented the Government from introducing a new Bill.
The striking down of one Act does not mean that the “basic structure” doctrine is wrong.
— P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) January 12, 2023
चिदंबरम ने कहा, ‘असल में सभापति के विचार सुनने के बाद हर संविधान प्रेमी नागरिक को आगे के खतरों को लेकर सजग हो जाना चाहिए.’
In fact, the Hon’ble Chairman’s views should warn every Constitution-loving citizen to be alert to the dangers ahead.
— P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) January 12, 2023
कांग्रेस के मीडिया एवं प्रचार प्रमुख पवन खेड़ा ने संवाददाताओं से कहा कि राज्यसभा के सभापति को ब्रिटिश संसद नहीं, बल्कि भारतीय पुस्तकों की तरफ लौटने की जरूरत है.
उन्होंने कहा, ‘भारत का संविधान सर्वोच्च है, विधायिका नहीं. संविधान हम सबसे बड़ा है. हमें इसी सिद्धांत का अनुसरण करने की जरूरत है.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)