राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन की रिपोर्ट बताती है कि यूपी में चल रहे 111 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में से 29 पर्यावरण मंत्रालय द्वारा निर्धारित अपशिष्ट निर्वहन मानकों का पालन नहीं कर रहे हैं. राज्य की कुल सीवेज ट्रीटमेंट क्षमता में 15 प्रतिशत का हिस्सा रखने वाले ये प्लांट गंगा और इसकी सहायक नदियों की मुख्य धारा के पास स्थित हैं.
नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी), जो केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी नमामि गंगे योजना का शीर्ष निकाय है, की एक रिपोर्ट बताती है कि उत्तर प्रदेश में चल रहे 111 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) में से 29 केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा निर्धारित अपशिष्ट निर्वहन मानकों का पालन नहीं कर रहे हैं.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, सितंबर-अक्टूबर 2022 की अवधि के लिए उत्तर प्रदेश की मासिक प्रगति रिपोर्ट से पता चलता है कि मानकों का अनुपालन न करने वाले इन 29 एसटीपी का राज्य की कुल सीवेज ट्रीटमेंट क्षमता (3,663.4 एमएलडी) में 15 प्रतिशत (532.18 मिलियन लीटर प्रतिदिन या एमएलडी) हिस्सा है और यह गंगा और उसकी सहायक नदियों की मुख्य धाराओं के किनारे स्थित हैं. राज्य की सीवेज ट्रीटमेंट क्षमता और जरूरत के बीच अंतर को देखते हुए यह महत्वपूर्ण है.
रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में 5,500 एमएलडी के अनुमानित सीवेज उत्पादन के मुकाबले 3,663.4 एमएलडी की सीवेज ट्रीटमेंट क्षमता वाले 119 एसटीपी थे- जो 1,836.6 एमएलडी की सीवेज ट्रीटमेंट क्षमता का अंतर दिखाता है.
हालांकि, राज्य में 119 एसटीपी में से केवल 111 काम कर रहे थे. रिपोर्ट से पता चलता है कि इन 111 एसटीपी में से 29 को केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा 13 अक्टूबर, 2017 को एसटीपी के लिए अधिसूचित अपशिष्ट निर्वहन मानकों के ‘गैर-अनुपालन’ में पाया गया.
पर्यावरण मंत्रालय के मानकों के अनुसार, पीएच मान, जो यह मापता है कि पानी कितना अम्लीय/क्षारीय है, 6.5-9.0 होना चाहिए; बीओडी (बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड), जो जैविक डीकंपोज़ेबल पदार्थों की पहचान करने के लिए एक टेस्ट है, 20mg/l से कम होना चाहिए; टीएसएस (टोटल सस्पेंडेड सॉलिड्स), जो जलजनित कण हैं जिनका आकार 2 माइक्रोन से अधिक है, 50mg/l से कम होना चाहिए; और फेकल कोलीफॉर्म (FC) 1000 MPN (सबसे संभावित संख्या)/100 ml से कम होना चाहिए.
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा एनएमसीजी के साथ 21 नवंबर 2022 को साझा की गई रिपोर्ट के मुताबिक, अनुपालन न करने वाले 29 एसटीपी में से सात उत्तर प्रदेश जल निगम (ग्रामीण) के अधीन थे, जबकि 22 राज्य के शहरी विकास विभाग और अन्य एजेंसियों के अधीन थे.
यूपी जल निगम -ग्रामीण के वाले सात एसटीपी की संयुक्त सीवेज ट्रीटमेंट क्षमता 188.5 एमएलडी है और ये कानपुर, हापुड़, मथुरा और बुलंदशहर सहित विभिन्न जिलों में गंगा और इसकी सहायक नदियों के मुख्य धारा के पास हैं. शेष 22 एसटीपी की क्षमता 343.68 एमएलडी थी और ये फिरोजाबाद, चित्रकूट, वाराणसी, लखनऊ, गाजियाबाद, मेरठ, मथुरा और ग्रेटर नोएडा में स्थित थे.
केंद्र सरकार के उत्तर प्रदेश पर विशेष ध्यान देने के मद्देनजर इसी प्रदेश में एसटीपी का अनुपालन न होना महत्वपूर्ण है. जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत खुद कई बार राज्य का दौरा कर चुके हैं. राष्ट्रीय गंगा परिषद की पहली बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिसंबर 2019 में कानपुर में ही की थी.
इसके अलावा नमामि गंगे योजना के तहत स्वीकृत 177 सीवरेज ट्रीटमेंट परियोजनाओं में से सर्वाधिक 59 परियोजनाएं उत्तर प्रदेश के लिए स्वीकृत की गई हैं. इसके साथ ही नमामि गंगे के तहत सीवरेज परियोजनाओं पर होने वाले कुल 11,707 करोड़ रुपये में से सबसे अधिक 4,481 करोड़ रुपये यूपी में खर्च किए गए हैं.