हिमाचल प्रदेश में पुरानी पेंशन योजना कांग्रेस के चुनावी वादों में से एक था. मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने पहली कैबिनेट बैठक में इसे मंज़ूरी देते हुए कहा कि योजना का लाभ 13 जनवरी, 2023 से दिया जाएगा और इस संबंध में जल्द ही अधिसूचना जारी की जाएगी.
शिमला: मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली हिमाचल प्रदेश सरकार ने मंत्रिमंडल की अपनी पहली बैठक में पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) की बहाली को शुक्रवार को मंजूरी दे दी.
सरकार ने वर्तमान में नई पेंशन योजना (एनपीएस) के तहत आने वाले 1.36 लाख कर्मचारियों के लिए इसे ‘लोहड़ी के उपहार’ के रूप में बताया.
कांग्रेस पार्टी ने मंत्रिमंडल की पहली बैठक में ओपीएस को बहाल करने का वादा किया था और वह इस पर कायम रही. मंत्रिमंडल ने कांग्रेस पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र को सरकार के नीति दस्तावेज के रूप में अपनाने का भी निर्णय लिया.
मंत्रिमंडल की बैठक के बाद मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने पत्रकारों से कहा, ‘अपने चुनावी दौरे के दौरान एआईसीसी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने हमें ओपीएस की बहाली का वादा करने के लिए कहा था और हमने इसे ‘प्रतिज्ञा पत्र’ में शामिल किया और मंत्रिमंडल की पहली बैठक में वादा पूरा किया.’
उन्होंने कहा कि पुरानी पेंशन योजना का लाभ 13 जनवरी, 2023 से दिया जाएगा और इस संबंध में जल्द ही अधिसूचना जारी की जाएगी.
मुख्यमंत्री ने 18 से 60 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं को 1,500 रुपये प्रति माह प्रदान करने के वादे को लागू करने पर जोर देते हुए कहा कि कृषि मंत्री चंद्र कुमार की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की एक उप समिति का गठन किया गया है जिसमें धनी राम शांडिल, अनिरुद्ध सिंह और जगत नेगी को सदस्यों के रूप में शामिल किया गया है.
उन्होंने कहा कि यह समिति 1,500 रुपये प्रति माह के वितरण के लिए 30 दिनों में एक रूपरेखा तैयार करेगी. उन्होंने कहा कि एक लाख नौकरियों की संभावना तलाशने के लिए समिति का भी गठन किया गया है.
पिछली सरकार पर वित्तीय कुप्रबंधन का आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार को न केवल 75,000 करोड़ रुपये की कर्ज देनदारी विरासत में मिली है, बल्कि कर्मचारियों और पेंशनधारियों से संबंधित 11,000 करोड़ रुपये की देनदारी भी है, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पिछली सरकार ने कर्मचारियों को 4,430 करोड़ रुपये, पेंशनधारियों को 5,226 करोड़ रुपये और छठे वेतन आयोग के तहत 1,000 करोड़ रुपये के महंगाई भत्ते का भुगतान नहीं किया है.
सुक्खू ने कहा कि एनपीएस के तहत, कर्मचारियों और सरकार ने क्रमशः दस प्रतिशत और 14 प्रतिशत का योगदान दिया और 8,000 करोड़ रुपये की राशि केंद्र सरकार के पास पड़ी है, जो यह राशि नहीं देना चाहती है लेकिन सरकार ने इसके बिना ही यह फैसला किया है और डीजल पर जीएसटी में तीन प्रतिशत की वृद्धि से अतिरिक्त धन का सृजन करने में मदद मिलेगी.
उन्होंने दोहराया कि राज्य सरकार ने ओपीएस को वोट के लिए नहीं बल्कि सामाजिक सुरक्षा देने और हिमाचल के विकास का इतिहास लिखने वाले कर्मचारियों के स्वाभिमान की रक्षा के लिए बहाल किया है.
उन्होंने कहा कि मामले का गहराई से अध्ययन किया गया है और वित्त अधिकारियों द्वारा कुछ आपत्तियों के बावजूद, इस मुद्दे को सुलझा लिया गया है और नई पेंशन योजना के तहत सभी कर्मचारियों को ओपीएस के दायरे में लाया जायेगा.
मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार ने पिछली भाजपा सरकार द्वारा बजट का आवंटन किए बगैर खोले गए 900 से अधिक संस्थानों को गैर-अधिसूचित कर दिया क्योंकि उन्हें शुरू करने के लिए 5,000 करोड़ रुपये की राशि की आवश्यकता थी.
उन्होंने कहा कि कड़े फैसले लेने होंगे क्योंकि सरकार भारी कर्ज के तले नहीं चल सकती.
एक जनवरी, 2004 से सरकारी सेवा में शामिल होने वाले कर्मचारी नई पेंशन नीति (एनपीएस) के अंतर्गत आते हैं.
नई पेंशन योजना कर्मचारी महासंघ हिमाचल के अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर ने कहा, ‘हमने सरकार को बताया था कि एनपीएस के तहत 2022-23 के लिए देनदारी 1,632 करोड़ रुपये है, जिसमें से कर्मचारी और सरकार क्रमशः 680 करोड़ रुपये और 952 करोड़ रुपये जमा करेंगे, जबकि ओपीएस के तहत देयता केवल 147 करोड़ रुपये होगी.’
विभिन्न कर्मचारी संघों ने फैसले की सराहना की है.
इस बीच, भाजपा की हिमाचल प्रदेश इकाई के प्रमुख सुरेश कश्यप ने सरकार पर ओपीएस के मुद्दे पर कर्मचारियों को गुमराह करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि कांग्रेस दस दिनों में अपने द्वारा दी गई गारंटियों को लागू करने में विफल रही है.
मालूम हो कि इससे पहले कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ और राजस्थान सरकारों ने भी पुरानी पेंशन योजना को लागू करने का फैसला लिया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)