वर्ष 2013 के मुज़फ़्फ़रनगर दंगों से जुड़े एक मामले में केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान, साध्वी प्राची, भाजपा के पूर्व सांसद भारतेंदु सिंह, पूर्व भाजपा विधायक उमेश मलिक, कट्टर हिंदुत्वावादी नेता यति नरसिंहानंद समेत कई आरोपी निषेधाज्ञा के उल्लंघन और लोक सेवकों को उनके कर्तव्यों का निर्वहन करने से रोकने के आरोपों का सामना कर रहे हैं.
मुजफ्फरनगर: उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर की एक अदालत में हिंदूवादी नेता साध्वी प्राची ने शुक्रवार को आत्मसमर्पण कर दिया. उन्होंने यह कदम वर्ष 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के एक मामले में पेश नहीं होने पर गैर जमानती वारंट जारी किए जाने के बाद उठाया.
एमपी/एमएलए अदालत के विशेष न्यायाधीश मयंक जायसवाल ने साध्वी प्राची के आत्मसमर्पण के बाद उनके खिलाफ जारी वारंट को वापस ले लिया और आगे की सुनवाई के लिए 20 जनवरी की तारीख तय की.
केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान, साध्वी प्राची, भाजपा के पूर्व सांसद भारतेंदु सिंह, पूर्व भाजपा विधायक उमेश मलिक, डासना मंदिर (गाजियाबाद) के महंत यति नरसिंहानंद, पूर्व ब्लॉक प्रमुख वीरेंदर सिंह समेत कई आरोपी निषेधाज्ञा के उल्लंघन, लोक सेवकों को उनके कर्तव्यों का निर्वहन करने से रोकने और गलत तरीके से बंधक बनाने के आरोपों का सामना कर रहे हैं.
इन आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं में मामला दर्ज है, जिसकी सुनवाई एमपी/एमएलए अदालत में चल रही है.
इनमें कई लोग अदालत में पेश होकर अपनी जमानत करा चुके हैं. इन सभी पर आरोप है कि उन्होंने नगला मंडोर की महापंचायत में भाग लिया था, जहां 31 अगस्त, 2013 का अपने भाषणों के माध्यम से निषेधाज्ञा का कथित उल्लंघन कर हिंसा के लिए भीड़ को उकसाया था.
उल्लेखनीय है कि अगस्त और सितंबर 2013 में मुजफ्फरनगर और आसपास के इलाकों में हुए सांप्रदायिक दंगों में 60 लोगों की जान गई थी और 40,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए थे.
मुजफ्फरनगर की एमपी/एमएलए अदालत के विशेष न्यायाधीश ने 2013 मुजफ्फरनगर दंगा से जुड़े एक मामले में 10 अक्टूबर, 2022 को खतौली से विधायक विक्रम सैनी और 11 अन्य लोगों को दो साल के कारावास की सजा सुनाई थी. हालांकि सजा सुनाए जाने के कुछ देर बाद ही जमानत भी दे दी थी.
साल 2019 में मुजफ्फरनगर की एक अदालत ने सचिन और गौरव की हत्या से संबंधित एक मामले में सात लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.
2013 के मुजफ्फरनगर दंगों की जांच के लिए 2016 में गठित किए गए जस्टिस विष्णु सहाय जांच आयोग ने हिंसा के लिए खुफिया विफलता और कुछ शीर्ष अधिकारियों की लापरवाही को जिम्मेदार ठहराया था.
साल 2021 में एसआईटी ने कहा था कि दंगों के दौरान हत्या, बलात्कार, डकैती एवं आगजनी से संबंधित 97 मामलों में 1,117 लोग सबूतों के अभाव में बरी हो गए. एसआईटी के अधिकारियों के मुताबिक, पुलिस ने 1,480 लोगों के खिलाफ 510 मामले दर्ज किए और 175 मामलों में आरोप-पत्र दायर किया था.
एसआईटी 20 मामलों में आरोप-पत्र दायर कर नहीं सकी, क्योंकि राज्य सरकार की ओर से उसे मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं मिली. दंगों संबंधित इन 20 मामलों में विधायक और सांसद भी आरोपियों की सूची में हैं.
उत्तर प्रदेश सरकार ने दंगों से जुड़े 77 मामलों को वापस लेने का फैसला किया था, लेकिन अदालत ने उत्तर प्रदेश के मंत्री सुरेश राणा, भाजपा विधायक संगीत सोम समेत 12 भाजपा विधायकों के खिलाफ सिर्फ एक मामला वापस लेने की अनुमति दी थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)