ओडिशा के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर में ग़ैर-हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है. तमाम परंपरावादियों और राजनीतिक दलों के नेताओं ने जगन्नाथ मंदिर में विदेशियों को प्रवेश देने के राज्यपाल गणेशी लाल के सुझाव की आलोचना करते हुए इसे सिरे से ख़ारिज कर दिया है. उनका कहना है कि मंदिर की सदियों पुरानी परंपरा के साथ छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए.
भुवनेश्वर: पुरी शहर स्थित विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर में विदेशी नागरिकों को प्रवेश देने की ओडिशा के राज्यपाल गणेशी लाल की सलाह से नया विवाद पैदा हो गया है. तमाम परंपरावादियों और राजनीतिक नेताओं ने प्रस्ताव की आलोचना करते हुए इसे सिरे से खारिज कर दिया है.
पूर्व मंत्री और भाजपा नेता बिजय महापात्रा ने कहा कि मंदिर की सदियों पुरानी परंपरा के साथ छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए.
महापात्रा ने कहा, ‘हर साल रथयात्रा के अवसर पर जब भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ मंदिर से बाहर निकलते हैं तो गैर-हिंदुओं सहित सभी लोग इन भाई-बहन का दर्शन कर सकते हैं. इन बातों को लेकर कोई विवाद नहीं होना चाहिए.’
पुरी के तमाम सेवादारों (पुजारियों/पंडों) ने भी महापात्र की बात से सहमति जताई है.
कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक सुरेश रौत्री ने कहा, ‘धार्मिक परंपराओं में छेड़छाड़ से बचना चाहिए.’
गौरतलब है कि राज्यपाल गणेशी लाल ने बीते गुरुवार (12 जनवरी) को उत्कल विश्वविद्यालय में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा था, ‘अगर विदेशी नागरिक पुरी के गजपति महाराज, सेवादारों और शंकराचार्य से मिल रहे हैं तो उन्हें मंदिर के भीतर भगवान जगन्नाथ के दर्शन से वंचित नहीं रखा जाना चाहिए. यह सिर्फ एक सलाह है.’
बता दें कि 12वीं सदी में निर्मित जगन्नाथ मंदिर में गैर-हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है. मंदिर के मुख्य द्वार पर लगी तख्ती पर स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है, ‘सिर्फ हिंदुओं को प्रवेश की अनुमति है.’
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, मंदिर प्रबंधन समिति के सदस्य माधबा चंद्र पूजापांडा ने कहा कि राज्यपाल ने भगवान के प्रति निष्ठा के कारण अपना व्यक्तिगत मत रखा होगा, लेकिन परंपरा में कोई बदलाव नहीं होना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘राज्यपाल ने कहा कि अगर विदेशी नागरिक पुरी के गजपति महाराज, सेवादारों और शंकराचार्य से मिल रहे हैं तो वे मंदिर के भीतर भगवान जगन्नाथ के दर्शन क्यों नहीं कर सकते. भगवान जगन्नाथ की तुलना गजपति, सेवकों और शंकराचार्य से नहीं की जा सकती.’
सत्तारूढ़ बीजू जनता दल (बीजद) के नेताओं ने मामले की संवेदनशीलता का हवाला देते हुए राज्यपाल के प्रस्ताव पर कोई भी टिप्पणी करने से परहेज किया है.
ओडिशा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष शरत पटनायक ने भी कहा कि मंदिर की परंपरा को नहीं तोड़ा जाना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘किसी भी तरफ से आने वाले इस तरह के सुझाव पर एक उचित मंच और मंदिर के सेवकों, शंकराचार्य और पुरी गजपति के साथ चर्चा की जानी चाहिए.’
जगन्नाथ संस्कृति के विशेषज्ञ प्रोफेसर प्रफुल्ल रथ ने भी राज्यपाल के सुझाव का विरोध करते हुए कहा कि विदेशी नागरिकों को मंदिर में प्रवेश की अनुमति देने की कोई जरूरत नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘राज्यपाल राज्य के प्रमुख हैं, लेकिन वह हमारे धर्म के प्रमुख नहीं हैं. राज्यपाल को अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए कि उन्होंने ऐसा बयान क्यों दिया. विदेशी नागरिक रथ यात्रा और स्नान पूर्णिमा के दौरान भगवान जगन्नाथ के दर्शन कर सकते.’
पुरी के शाही वंशज और शंकराचार्य ने अब तक राज्यपाल के प्रस्ताव पर कोई टिप्पणी नहीं की है.
बहरहाल, रविवार को मध्य प्रदेश के उज्जैन के लिए रवाना हुए राज्यपाल से उनकी प्रतिक्रिया के लिए संपर्क नहीं हो सका है. राजभवन के सूत्रों ने कहा है कि राज्यपाल अपने बयान पर कायम हैं.
राजभवन के एक प्रवक्ता ने संपर्क किए जाने पर कहा, ‘राज्यपाल ने सिर्फ एक सुझाव दिया है, और इससे आगे कुछ नहीं. उन्होंने कोई आदेश नहीं दिया है.’
मालूम हो कि जगन्नाथ मंदिर में गैर-हिंदुओं के प्रवेश को लेकर पहले भी कई विवाद हो चुके हैं.
1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पुजारियों ने इस आधार पर मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी थी कि उन्होंने एक गैर-हिंदू से शादी की थी. इसके बाद इंदिरा को मंदिर के पास रघुनंदन लाइब्रेरी से दर्शन के लिए मजबूर किया गया था.
2006 में मंदिर को 1.78 करोड़ रुपये का दान देने वाली एक स्विस नागरिक एलिजाबेथ जिग्लर को भी मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया गया था, क्योंकि वह एक ईसाई थीं.
2011 में मुख्यमंत्री और बीजद प्रमुख नवीन पटनायक के तत्कालीन सलाहकार प्यारीमोहन मोहपात्रा के ओडिशा में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए जगन्नाथ मंदिर में गैर-हिंदुओं के प्रवेश का समर्थन करने वाले एक प्रस्ताव ने बड़ा विवाद खड़ा कर दिया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)