सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा नेता शाहनवाज़ हुसैन की उस याचिका को ख़ारिज कर दिया, जिसमें बलात्कार का आरोप लगाने वाली एक महिला की शिकायत पर एफ़आईआर दर्ज करने के हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी. दिल्ली की एक महिला ने साल 2018 में शाहनवाज़ हुसैन के ख़िलाफ़ बलात्कार का आरोप लगाया था.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता शाहनवाज हुसैन की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें बलात्कार का आरोप लगाने वाली एक महिला की शिकायत पर एफआईआर दर्ज करने के हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी.
शीर्ष अदालत ने कहा कि वह हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप नहीं करेगा.
जस्टिस एस. रवींद्र भट और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने पूर्व केंद्रीय मंत्री हुसैन के अधिवक्ताओं से कहा, ‘पहले इस मामले में निष्पक्ष जांच होने दें. यदि कुछ नहीं है, तो आप (हुसैन) आरोप मुक्त हो जाएंगे.’
हुसैन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और सिद्धार्थ लूथरा ने पीठ से कहा कि शिकायतकर्ता महिला ने भाजपा नेता के खिलाफ एक के बाद एक कई शिकायतें दर्ज कराई हैं.
रोहतगी ने अपनी दलील में कहा, ‘एक के बाद एक कई शिकायतें दर्ज कराई गई हैं, जिनकी पुलिस द्वारा जांच की गई, लेकिन कुछ भी नहीं मिला. यह अनवरत जारी नहीं रह सकता.’ रोहतगी ने कहा कि हुसैन के खिलाफ ‘अनवरत हमले’ किए जा रहे हैं.
हालांकि, पीठ ने कहा, ‘हम हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं पाते हैं.’
सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि अपराध दंड संहिता (सीआरपीसी) की धारा 164 के तहत शिकायतकर्ता के बयान आज तक दर्ज नहीं हुए हैं. यह धारा मजिस्ट्रेट के समक्ष कुबूलनामा और बयान दर्ज कराने से जुड़ी हुई है.
लूथरा ने अपनी दलील में कहा कि शिकायतकर्ता का आरोप है कि उसका हुसैन के भाई के साथ संबंध था.
उन्होंने कहा, ‘उनकी सभी शिकायतें हुसैन के भाई से हो सकती हैं, लेकिन उन्हें (हुसैन) इस तरह की परेशानी में नहीं डाला जा सकता.’
पीठ ने कहा, ‘इसकी जांच होने दीजिए.’ उसने कहा कि इस मामले में निचली अदालत और हाईकोर्ट के फैसले हुसैन के खिलाफ हैं.
लूथरा ने कहा कि एक बार जब एफआईआर दर्ज हो जाती है, तो उसके परिणाम हो सकते हैं. इस पर पीठ ने कहा, ‘कैसे परिणाम? आपको दोषी नहीं ठहराया जा रहा है. हम कानून पर अमल कर रहे हैं. एक सामान्य मामले में पीड़ित को इन सभी प्रक्रियाओं से गुजरना होता है.’
रोहतगी ने क्रमवार घटना का जिक्र करते हुए कहा कि महिला ने शाहनवाज हुसैन के खिलाफ पटना सहित कई अदालतों में शिकायत दी है. हुसैन के अधिवक्ता ने कहा कि शिकायतकर्ता हर बार कई शिकायतें लेकर अदालत पहुंची.
पीठ ने सवाल किया कि क्या पुलिस ने शिकायतकर्ता को सूचित किया है कि इस मामले में कार्रवाई करने और एफआईआर दर्ज करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं हैं.
पीठ ने कहा, ‘आप पीड़ित हो सकते हैं और हो सकता है कि वह पीड़ित नहीं हो, लेकिन इसका ठीक उल्टा होने की भी संभावना है.’
पीठ ने हुसैन की याचिका खारिज करते हुए कहा, ‘क्षमा करें, याचिका खारिज की जाती है.’
सुनवाई के दौरान शिकायतकर्ता के वकील ने कहा कि शाहनवाज हुसैन के वकील की दलीलें सही नहीं हैं.
हाईकोर्ट ने 17 अगस्त 2022 को निचली अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली हुसैन की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि 2018 के आदेश में कुछ भी गड़बड़ी नहीं है. निचली अदालत ने दिल्ली पुलिस को भाजपा नेता के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था.
शीर्ष अदालत ने 22 अगस्त 2022 को हाईकोर्ट के आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी थी.
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष इसके पहले हुई सुनवाई के दौरान हुसैन के अधिवक्ता ने दलील दी थी कि शिकायत ‘फर्जी’ और ‘दुर्भावनापूर्ण’ है.
वर्ष 2018 में दिल्ली की एक महिला ने बलात्कार के आरोप को लेकर हुसैन के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का अनुरोध करते हुए यहां की एक अदालत का दरवाजा खटखटाया था. हालांकि, भाजपा नेता ने इन आरोपों से इनकार किया है.
मजिस्ट्रेट अदालत ने सात जुलाई 2018 को हुसैन के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था. अदालत ने कहा था कि शिकायत में हुसैन के खिलाफ संज्ञेय अपराध का मामला बनाया गया है. इस आदेश को भाजपा नेता ने एक सत्र अदालत में चुनौती दी थी, लेकिन उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी.
इस मामले में हुसैन की अपील पर हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था, ‘मौजूदा याचिका में कोई दम नहीं है. याचिका खारिज की जाती है. हुसैन के खिलाफ कार्रवाई पर रोक से जुड़े अंतरिम आदेश को वापस लिया जाता है. अविलंब एफआईआर दर्ज की जाए.’
द हिंदू के मुताबिक, दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महिला द्वारा अप्रैल 2018 में दक्षिणी दिल्ली के छतरपुर इलाके में एक फार्महाउस में बलात्कार की शिकायत करने के बाद भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था.
हुसैन के खिलाफ जून 2018 में आईपीसी की धारा 376, 328, 120बी और 506 के तहत एक शिकायत दर्ज कराई गई थी.
जस्टिस आशा मेनन ने दिल्ली पुलिस पर एफआईआर दर्ज करने और जांच जारी रखने में ‘अनिच्छा’ दिखाने पर सवाल उठाया था.
17 अगस्त 2022 को दिए आदेश में अदालत ने कहा, ‘लेकिन वर्तमान मामले में निस्संदेह 21 जून 2018 को मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज कराने तक महरौली के पुलिस थाना प्रभारी (एसएचओ) ने कुछ नहीं किया. वास्तव में इस अदालत के समक्ष दायर की गई स्थिति रिपोर्ट कमिश्नर कार्यालय से 20 जून 2018 को महरौली पुलिस थाने में प्राप्त हुई उक्त शिकायत का उल्लेख करती है. शिकायत की प्राप्ति पर एफआईआर दर्ज न करने को लेकर पुलिस को काफी-कुछ स्पष्टीकरण देना है.’
न्यायाधीश ने फैसले में पुलिस को अपनी जांच पूरी करने और तीन महीने के भीतर संबंधित ट्रायल कोर्ट के समक्ष एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)