पत्रकारों को ख़बरों के स्रोत का ख़ुलासा न करने के लिए कोई वैधानिक छूट प्राप्त नहीं है: कोर्ट

मामला वर्ष 2009 का है. सीबीआई द्वारा समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव से जुड़े आय से अधिक संपत्ति मामले में सुप्रीम कोर्ट में स्थिति रिपोर्ट पेश करने से पहले ही संबंधित दस्तावेज़ मीडिया में लीक हो गए थे. सीबीआई ने मीडिया घरानों ने उन दस्तावेज़ों को उपलब्ध कराने वाले स्रोत का खुलासा करने को कहा था, जिससे इनकार कर दिया गया था.

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मामला वर्ष 2009 का है. सीबीआई द्वारा समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव से जुड़े आय से अधिक संपत्ति मामले में सुप्रीम कोर्ट में स्थिति रिपोर्ट पेश करने से पहले ही संबंधित दस्तावेज़ मीडिया में लीक हो गए थे. सीबीआई ने मीडिया घरानों ने उन दस्तावेज़ों को उपलब्ध कराने वाले स्रोत का खुलासा करने को कहा था, जिससे इनकार कर दिया गया था.

(फोटोः पीटीआई)

नई दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने कहा है कि भारत में पत्रकारों को जांच एजेंसियों के सामने अपने स्रोत (Sources) का खुलासा करने से कोई वैधानिक छूट नहीं है.

मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट अंजनी महाजन ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की ओर से दायर एक ‘क्लोजर रिपोर्ट’ को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की.

साथ ही उन्होंने मामले में आगे की जांच का भी निर्देश दिया.

समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, अदालत ने कहा कि जांच एजेंसी हमेशा संबंधित पत्रकारों के संज्ञान में यह ला सकती है कि जांच की कार्यवाही आगे बढ़ाने के लिए स्रोत का खुलासा करना आवश्यक और महत्वपूर्ण है.

अदालत ने कहा कि जांच एजेंसी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धाराओं के तहत सार्वजनिक व्यक्ति को अनिवार्य रूप से जांच में शामिल होने के लिए कहने का अधिकार रखती है, जहां जांच एजेंसी को लगता है कि ऐसे व्यक्ति मामले से संबंधित कुछ गोपनीय जानकारी रखते हैं और सार्वजनिक व्यक्तियों का भी कानूनी कर्तव्य है कि वे जांच में शामिल हों.

क्लोजर रिपोर्ट में सीबीआई ने दावा किया था कि वह कथित जालसाजी के मामले में जांच पूरी नहीं कर सकी, क्योंकि कथित जाली दस्तावेजों को प्रकाशित और प्रसारित करने वाले पत्रकारों ने उन स्रोतों का खुलासा करने से इनकार कर दिया था, जहां से उन्होंने इसे इसे हासिल किया था.

यह मामला सीबीआई के उस केस से संबंधित है, जिसमें मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ कथित आय से अधिक संपत्ति मामले से संबंधित एक रिपोर्ट को 9 फरवरी 2009 को एक अखबार द्वारा प्रकाशित और कुछ चैनलों द्वारा प्रसारित किया गया था. यह प्रकाशन-प्रसारण इस मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से एक दिन पहले हुआ था.

तब सीबीआई द्वारा एक एफआईआर दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि कुछ अज्ञात व्यक्तियों ने एजेंसी की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए एक झूठी और मनगढ़ंत रिपोर्ट तैयार की थी.

हालांकि बाद में सीबीआई ने इस मामले में ‘क्लोजर रिपोर्ट’ दाखिल कर दी थी.

उसके बाद अदालत ने सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर दिया था. इसने कहा कि जांच को उसके तार्किक निष्कर्ष तक नहीं ले जाया गया है और इस प्रकार एजेंसी को पत्रकारों से पूछताछ करने का निर्देश दिया.

मंगलवार (17 जनवरी) को पारित आदेश में अदालत ने कहा, ‘केवल इसलिए कि संबंधित पत्रकारों ने अपने संबंधित स्रोतों का खुलासा करने से इनकार कर दिया, जैसा कि अंतिम रिपोर्ट में कहा गया है, जांच एजेंसी को पूरी जांच पर रोक नहीं लगानी चाहिए थी. भारत में पत्रकारों को जांच एजेंसियों के समक्ष अपने स्रोतों का खुलासा करने से कोई वैधानिक छूट प्राप्त नहीं है.’

सीबीआई ने यह भी कहा था कि जांच के दौरान संबंधित मीडिया घरानों से संबंधित दस्तावेज मांगे गए थे, लेकिन उन्होंने कोई दस्तावेज नहीं दिया.

दलील को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि सीबीआई को संबंधित पत्रकारों/समाचार एजेंसियों को नोटिस जारी करके आवश्यक जानकारी प्रदान करने या मामले के जरूरी तथ्य उसके संज्ञान में लाने के लिए बाध्य करने का पर्याप्त अधिकार है.

जज ने कहा, ‘अंतिम रिपोर्ट जांच के इस पहलू पर चुप्पी साध लेती है कि कि सीबीआई का आधिकारिक दस्तावेज (सील बंद स्थिति रिपोर्ट) जो अगले दिन सुप्रीम कोर्ट में पेश होनी थी, वह कैसे सीबीआई के कार्यालय से लीक होकर मीडिया में पहुंच गई.’

अदालत ने कहा, ‘अंतिम रिपोर्ट में इस पहलू पर की गई किसी भी जांच का खुलासा नहीं किया गया है कि कैसे जालसाज ने तिलोत्तमा वर्मा की मूल नोट-शीट में तक पहुंच प्राप्त की, जिससे हस्ताक्षर उठाए गए और केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (सीएफएसएल) की राय के मुताबिक जाली दस्तावेजों पर उनका इस्तेमाल किया गया.’

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2007 में सीबीआई को निर्देश दिया था कि वह मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार के सदस्यों द्वारा अर्जित संपत्ति की प्रारंभिक जांच करे.

इसके अनुपालन में 5 मार्च 2007 को एक प्रारंभिक जांच शुरू की गई, जो 26 अक्टूबर 2007 को पूरी हुई.

एकत्र किए गए सबूतों के आधार पर एक स्थिति रिपोर्ट तैयार की गई और सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दो सीलबंद लिफाफों में प्रस्तुत की गई.

9 फरवरी 2009 को मामले की सुप्रीम कोर्ट में अंतिम सुनवाई थी, लेकिन इससे एक दिन पहले ही जाली दस्तावेजों के आधार पर मीडिया घरानों द्वारा इस संबंध में खबरें चला दी गईं.

दर्ज शिकायत में यह आरोप लगाया गया कि ऐसा एक आपराधिक साजिश के तहत सीबीआई की छवि खराब करने के लिए किया गया था.

बहरहाल, अंतिम रिपोर्ट में तर्क दिया गया था कि समाचार चैनल द्वारा इस्तेमाल किए गए दस्तावेज जाली थे, लेकिन यह स्थापित नहीं किया जा सका कि किसने जाली दस्तावेज बनाए, क्योंकि इन जाली दस्तावेजों के उपयोगकर्ताओं ने स्रोत का खुलासा नही किया, इसलिए आपराधिक साजिश साबित करने के लिए कोई पर्याप्त सामग्री और सबूत नहीं हैं.