नगा समाधान के बिना विधानसभा चुनाव की तारीख़ों की घोषणा से दलों ने निराशा जताई

लंबे समय से जारी नगा राजनीतिक मुद्दे का कोई हल नहीं होने के बीच नगालैंड में नई विधानसभा के गठन के लिए 27 फरवरी को मतदान होगा, जबकि मतों की गिनती दो मार्च को होगी. इस पर निराशा जताते हुए कई संगठनों ने कहा कि केंद्र को इस मुद्दे को हल कर अपनी ईमानदारी साबित करनी चाहिए.

//
नगालैंड, त्रिपुरा और मेघालय में विधानसभा चुनाव के लिए निर्वाचन आयोग द्वारा 19 जनवरी 2023 को एक बैठक आयोजित की गई. (फोटो साभार: ट्विटर/@ECISVEEP)

लंबे समय से जारी नगा राजनीतिक मुद्दे का कोई हल नहीं होने के बीच नगालैंड में नई विधानसभा के गठन के लिए 27 फरवरी को मतदान होगा, जबकि मतों की गिनती दो मार्च को होगी. इस पर निराशा जताते हुए कई संगठनों ने कहा कि केंद्र को इस मुद्दे को हल कर अपनी ईमानदारी साबित करनी चाहिए.

(प्रतीकात्मक फोटो: ट्विटर/@nirendev1)

कोहिमा: नगालैंड में लंबे समय से जारी नगा राजनीतिक मुद्दे का कोई हल नहीं होने के बीच विधानसभा चुनावों की घोषणा के बाद इस पूर्वोत्तर राज्य के नागरिक समाज संगठनों और राजनीतिक दलों के एक वर्ग ने निराशा व्यक्त की है.

नगालैंड में 2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने ‘समाधान के लिए चुनाव’ का नारा दिया था. अब राज्य के कई दल भाजपा को इस नारे की याद दिला रहे हैं.

नगालैंड में सबसे अधिक विधायकों वाली नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की ओर से अभी तक इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है. वहीं, कांग्रेस और नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) ने कहा कि वे नाखुश हैं, लेकिन चुनावी मैदान में उतरेंगे.

निर्वाचन आयोग ने बुधवार (18 जनवरी) को पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा कर दी. इसके साथ ही आयोग ने साल 2023 में होने वाले राज्यों के चुनावों का बिगुल भी फूंक दिया है.

इस साल होने वाले चुनावों के पहले दौर के तहत त्रिपुरा में 16 फरवरी को मतदान होगा, जबकि मेघालय और नगालैंड में एक ही दिन 27 फरवरी को मत डाले जाएंगे. तीनों राज्यों में मतगणना दो मार्च को होगी.

नगालैंड विधानसभा का कार्यकाल 12 मार्च को समाप्त हो रहा है, वहीं मेघालय और त्रिपुरा की विधानसभाओं का कार्यकाल क्रमश: 15 और 22 मार्च को समाप्त हो रहा है. तीनों राज्यों की विधानसभाओं में 60-60 सीटें हैं.

त्रिपुरा में जहां भाजपा की सरकार है, वहीं नगालैंड में नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी सत्ता में है. मेघालय में नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) की सरकार है. एनपीपी पूर्वोत्तर की एकमात्र पार्टी है जिसे राष्ट्रीय दल के तौर पर मान्यता हासिल है.

त्रिपुरा में मतदाताओं की कुल संख्या 28,13,478 है. मेघालय में कुल मतदाताओं की संख्या करीब 21 लाख है, जबकि नगालैंड में कुल मतदाताओं की संख्या 13,09,651 है.

पिछले विधानसभा चुनाव में नगालैंड में किसी दल को बहुमत नहीं मिला था. पूर्व मुख्यमंत्री टीआर जेलियांग के नेतृत्व वाला एनपीएफ 26 सीटों पर जीत हासिल कर सबसे बड़े दल के रूप में उभरा. इस चुनाव में वरिष्ठ नेता नेफ्यू रियो के नेतृत्व वाले एनडीपीपी को 17 और भाजपा को 12 सीटों पर जीत हासिल हुई.

बाद में भाजपा और एनडीपीपी ने जनता दल यूनाइटेड और कुछ अन्य दलों के सहयोग से राज्य में सरकार बनाई और नेफ्यू रियो चौथी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने.

इस बार में चुनाव में भाजपा और एनडीपीपी साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे.

नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) के महासचिव ए. किकोन ने कहा, ‘हम नगा राजनीतिक समस्या के सम्मानजनक और स्वीकार्य समाधान के लिए काम करने के अलावा अच्छे और भ्रष्टाचार मुक्त शासन के अपने घोषणा-पत्र के साथ चुनाव लड़ेंगे.’

कांग्रेस ने कहा कि निर्वाचन आयोग नगालैंड में चुनाव टाल सकता था, लेकिन चुनाव की घोषणा की गई, जिसने लोगों की आकांक्षाओं के साथ विश्वासघात हुआ.

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के. थेरी ने कहा, ‘पार्टी चुनाव की घोषणा से खुश नहीं है.’

कांग्रेस की ओर से ट्वीट कर कहा गया, ‘दुख के साथ चुनाव के घोषणा की जानकारी प्राप्त की गई. बिना समाधान के चुनाव में उतरकर सरकार ने नगाओं को धोखा दिया है. अगर यदि वर्तमान सरकार ही बनी रहती है तो अनुच्छेद 371 खतरे में है. हमारा भविष्य तय करने का समय आ गया है. कांग्रेस न्याय और समानता के साथ नगालैंड के भविष्य को बचाने के लिए संघर्ष करेगी.’

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, नगालैंड के 60 सदस्यीय विधानसभा में एनडीपीपी के 41, भाजपा के 12 और एनपीएफ के चार सदस्य हैं. दो निर्दलीय हैं, जबकि एक सीट खाली है.

नागरिक समाज संगठनों ने कहा कि केंद्र को नगा राजनीतिक मुद्दे को हल करने में अपनी ईमानदारी साबित करनी चाहिए. नागरिक समाज संगठनों ने केंद्र से इस मुद्दे का समाधान खोजने के लिए कदम उठाने का आग्रह किया.

नगा राजनीतिक मुद्दे पर नगालैंड पीपुल्स एक्शन कमेटी (एनपीएसी) के संयोजक थेजा थेरेह ने कहा कि चुनाव की तारीख की घोषणा के बावजूद केंद्र सरकार के पास अब भी नगा समाधान पर निर्णय लेने का अधिकार है, क्योंकि अभी अधिसूचना जारी नहीं हुई है.

नगा मदर्स एसोसिएशन की सलाहकार रोज़मैरी जुविचू ने कहा, ‘भारत सरकार को नगा अधिकारों और इतिहास का सम्मान करने के लिए एक समझौते को लाने में अपनी ईमानदारी साबित करनी होगी.’

उन्होंने कहा कि बहुत कुछ राजनीतिक इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है और अगले कुछ हफ्ते बताएंगे कि केंद्र सरकार नगाओं के लिए शांति चाहती है या नहीं.

नगा होहो (संगठन) के महासचिव के एलु नडांग ने कहा, ‘नगा समाधान का नारा, केवल चुनाव बयानबाजी बनकर रह गया है, वे लोगों की आवाज सुनना भूल गए हैं.’

मालूम हो कि इससे पहले सितंबर 2022 में ईस्टर्न नगालैंड पीपुल्स ऑर्गनाइजेशन (ईएनपीओ), जिसमें छह पूर्वी जिलों की सात जनजातियां शामिल हैं, ने सरकार पर दबाव बनाने के लिए एक अलग ‘फ्रंटियर नगालैंड’ राज्य की मांग को पूरा करने के लिए चुनाव में भाग नहीं लेने की घोषणा की थी.

ईएनपीओ राज्य सरकार की ‘दशकों की उपेक्षा’ का दावा करते हुए लंबे समय से उन सात जनजातियों के लिए पूर्व में अलग राज्य बनाए जाने की मांग कर रहा है.

अगस्त 2022 में भी अपनी अलग राज्य की मांग की शुरुआत करते हुए ईएनपीओ ने राज्य के विभाजन की उसकी मांग पूरी न होने पर आगामी विधानसभा चुनावों का बहिष्कार करने की धमकी दी थी.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, बीते 17 जनवरी (2023) को नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने संवाददाताओं से कहा कि उनकी सरकार संवैधानिक संकट पैदा नहीं करना चाहती है. राज्य में राष्ट्रपति शासन नहीं लगने देना चाहती है.

वह इस सवाल का जवाब दे रहे थे कि अगर नगा राजनीतिक मुद्दे का समाधान नहीं होता है तो नागरिक समाज संगठन चुनावों में भाग नहीं लेने के अपने रुख पर अड़े रहेंगे तो क्या होगा.

दशकों पुरानी समस्या का समाधान खोजने के लिए केंद्र 1997 से एनएससीएन-आईएम और 2017 से कम से कम सात समूहों वाली नगा नेशनल पॉलिटिकल ग्रुप (एनएनपीजी) की कार्य समिति के साथ अलग-अलग बातचीत कर रहा है.

गौरतलब है कि उत्तर पूर्व के सभी उग्रवादी संगठनों का अगुवा माने जाने वाला एनएससीएन-आईएम अनाधिकारिक तौर पर सरकार से साल 1994 से शांति प्रक्रिया को लेकर बात कर रहा है. इन संगठनों का दावा है कि नगा कभी भारत का हिस्सा नहीं थे और अपनी संप्रभुता को लेकर उन्होंने कई दशकों तक हिंसक आंदोलन चलाए हैं.

सरकार और संगठन के बीच औपचारिक वार्ता वर्ष 1997 से शुरू हुई. नई दिल्ली और नगालैंड में बातचीत शुरू होने से पहले दुनिया के अलग-अलग देशों में दोनों के बीच बैठकें हुई थीं.

18 साल चली 80 दौर की बातचीत के बाद अगस्त 2015 में भारत सरकार ने एनएससीएन-आईएम के साथ अंतिम समाधान की तलाश के लिए रूपरेखा समझौते (फ्रेमवर्क एग्रीमेंट) पर हस्ताक्षर किए.

एनएससीएन-आईएम के महासचिव थुलिंगलेंग मुईवाह और तत्कालीन वार्ताकार आरएन रवि ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में तीन अगस्त, 2015 को इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे.

हालांकि, संगठन के अलग झंडे, संविधान और ग्रेटर नगालिम की अपनी मांग पर अड़े होने की वजह से वार्ता किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है. संगठन का कहना है कि सरकार ने एनएससीएन-आईएम की अलग झंडे और संविधान की मांग को माना था, लेकिन आरएन रवि ने इसे खारिज कर दिया था.

इसके अलावा एनएससीएन-आईएम आसपास के राज्यों असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के नगा-बहुल क्षेत्रों के एकीकरण के माध्यम से एक ग्रेटर नगालिम (नगालिम) के निर्माण पर जोर दे रहा है.

एक रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि सरकार कथित तौर पर नगाओं के लिए उनके नागरिक और सांस्कृतिक ध्वज के लिए भी सहमत हो गई है, हालांकि इसे किसी भी सरकारी समारोह में इस्तेमाल नहीं किया जाएगा.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)