केरल: जातिगत भेदभाव के आरोपों के बीच फिल्म संस्थान के निदेशक ने इस्तीफ़ा दिया

केरल सरकार द्वारा संचालित केआर नारायणन नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ विज़ुअल साइंस एंड आर्ट्स के निदेशक शंकर मोहन ने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है. विद्यार्थियों और शिक्षकों का एक वर्ग उन पर जाति आधारित भेदभाव का आरोप लगाते हुए प्रदर्शन कर रहा था. संस्थान के कुछ सफाई कर्मचारियों ने शिकायत की थी कि उनकी पत्नी उनसे अपने घर का शौचालय साफ करवाती थीं.

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शेखर मोहन. (फोटो साभार/www.krnnivsa.com)

केरल सरकार द्वारा संचालित केआर नारायणन नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ विज़ुअल साइंस एंड आर्ट्स के निदेशक शंकर मोहन ने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है. विद्यार्थियों और शिक्षकों का एक वर्ग उन पर जाति आधारित भेदभाव का आरोप लगाते हुए प्रदर्शन कर रहा था. संस्थान के कुछ सफाई कर्मचारियों ने शिकायत की थी कि उनकी पत्नी उनसे अपने घर का शौचालय साफ करवाती थीं.

शेखर मोहन. (फोटो साभार/www.krnnivsa.com)

कोट्टयम: केरल सरकार द्वारा संचालित केआर नारायणन नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ विजुअल साइंस एंड आर्ट्स के निदेशक शंकर मोहन ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है.

उन्होंने यह कदम विद्यार्थियों और शिक्षकों के एक वर्ग द्वारा उनके द्वारा कथित तौर पर जाति आधारित भेदभाव करने और अन्य आरोपों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किए जाने के बाद उठाया.

विद्यार्थियों के एक धड़े द्वारा मोहन पर आरोप लगाए जाने के बाद से संस्थान विवादों में है.

मोहन ने कहा कि उन्होंने संस्थान के अध्यक्ष अदूर गोपालकृष्णन को अपना इस्तीफा तीन सप्ताह पहले ही दे दिया था, क्योंकि उनका कार्यकाल समाप्त हो गया था.

उन्होंने शनिवार (21 जनवरी) को एक समाचार चैनल से बातचीत में कहा, ‘मैंने अपना इस्तीफा अध्यक्ष को तीन सप्ताह पहले ही भेज दिया था, क्योंकि तीन साल का मेरा कार्यकाल समाप्त हो गया था. मैंने इस विवाद में शामिल लोगों की भी जानकारी उन्हें दी थी. यहां काम करने वाले कुछ लोग और उनके कुछ जानकार इस पूरे प्रकरण के पीछे हैं.’

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, मोहन ने दावा किया कि उनके खिलाफ जातिगत भेदभाव के आरोप लगाए गए, क्योंकि उन्होंने संगठन में भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया. उन्होंने कहा, ‘जब मैंने भ्रष्ट गतिविधियों का विरोध किया तो कुछ लोगों ने मेरे खिलाफ कुछ मुद्दों को उठाया.’

निदेशक के खिलाफ छात्रों के विरोध के दौरान कानून और व्यवस्था की समस्या की आशंका को देखते हुए संस्थान को हाल ही में बंद कर दिया गया था.

निदेशक के खिलाफ शिक्षकों और छात्रों के विरोध को देखते हुए राज्य सरकार ने मामले की जांच के लिए दो सदस्यीय समिति का गठन किया था, जिसमें पूर्व मुख्य सचिव के. जयकुमार और (नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ एडवांस्ड लीगल स्टडीज) एनयूएएलएस के पूर्व कुलपति एनके जयकुमार शामिल थे.

समिति ने हाल ही में एक रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंपी थी.

समिति ने संस्थान के छात्रों और कर्मचारियों से मुलाकात की और आरोपों के संबंध में विवरण एकत्र किया, जिसमें छात्रों के प्रवेश में आरक्षण मानदंडों को कम करना भी शामिल है.

इससे पहले उच्च शिक्षा विभाग की एक कमेटी ने निदेशक को बदलने और उन पर लगे आरोपों की जांच कराने की सिफारिश की थी.

यह मामला तब सामने आया जब संस्थान के कुछ सफाई कर्मचारियों ने शिकायत की कि निदेशक की पत्नी उनसे अपने घर का शौचालय साफ करवाती थीं.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, मोहन ने आरोपों का खंडन किया है.

उन्होंने कहा, ‘मुझे यकीन है कि जांच समिति जातिगत भेदभाव को लेकर मुझमें कोई गलती नहीं निकालेगी. मेरा विवेक स्पष्ट है. मैं कार्यालय में तीन साल पूरा करने वाला पहला निदेशक हूं. मैंने संस्थान में अनुशासन लाया है और सिस्टम को साफ किया है. आर्थिक और नैतिक रूप से वे मुझे छू नहीं सकते. इसलिए उन्होंने सफाई कर्मचारियों के माध्यम से मेरी पत्नी पर आरोप लगाया है. मैं सफाई कर्मचारियों को भी दोष नहीं दूंगा, लेकिन कुछ निहित ताकतें उनका इस्तेमाल कर रही हैं.’

पीटीआई के मुताबिक, संस्थान के अध्यक्ष अदूर गोपालकृष्णन ने कथित तौर पर मोहन का समर्थन करने और छात्रों के विरोध का समर्थन करने वाले शिक्षकों में से एक के खिलाफ टिप्पणी करने के बाद पूर्व छात्रों के एक वर्ग के निशाने पर आ गए थे. पूर्व छात्रों के इस समूह ने उनकी (गोपालकृष्णन) आलोचना की थी.

इसके अलावा दादासाहेब फाल्के पुरस्कार विजेता फिल्मकार अदूर गोपालकृष्णन की इस मुद्दे पर उनके रुख के लिए सोशल मीडिया यूजर्स के एक वर्ग द्वारा व्यापक रूप से आलोचना की गई थी.

इस घटनाक्रम ने माकपा के वरिष्ठ नेता एमए बेबी को गोपालकृष्णन के समर्थन में खुलकर सामने आने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने कहा था कि फिल्मकार को एक जातिवादी व्यक्ति के रूप में चित्रित करना निंदनीय है.

बेबी ने कहा था कि गोपालकृष्णन देश की ‘मनुवाद-अर्द्ध-फासीवादी सरकार’ के घोर आलोचक और आजीवन धर्मनिरपेक्षतावादी हैं.

माकपा नेता ने कहा था कि फिल्मकार का मूल्यांकन उसके द्वारा पत्रकारों के भड़काऊ सवालों के जवाबों के आधार पर नहीं किया जाना चाहिए.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, संस्थान के निदेशक शंकर मोहन को हटाने की मांग को लेकर छात्र 5 दिसंबर 2022 से संघर्ष कर रहे थे. इसके बाद कोट्टायम जिला प्रशासन ने अगले आदेश तक संस्थान को बंद करने का आदेश दिया था.

भारत के पहले दलित राष्ट्रपति केआर नारायणन के नाम पर बने संस्थान के छात्र मोहन को हटाने की मांग को लेकर छात्र परिषद के बैनर तले प्रदर्शन कर रहे थे. उन्होंने आरोप लगाया था कि मोहन ने वर्तमान शैक्षणिक वर्ष में प्रवेश के लिए आरक्षण मानदंडों की अवहेलना की थी और जाति के आधार पर कर्मचारियों के साथ भेदभाव किया था.

छात्रों के साथ संस्थान में सफाई कर्मचारियों का एक वर्ग भी मोहन को हटाने की मांग में आंदोलन में शामिल हो गया था, जो कभी कोलकाता स्थित सत्यजीत रे फिल्म और टेलीविजन संस्थान के निदेशक के रूप में कार्यरत थे.

छात्र परिषद ने आरोप लगाया था कि संस्थान ने आरक्षण श्रेणी में छात्रों को प्रवेश देने से इनकार कर दिया था. उन्होंने कहा कि संस्थान से पिछड़े समुदायों को दूर रखने के लिए निदेशक ने एक निश्चित दृष्टिकोण का सहारा लिया. उन्होंने कथित तौर पर दलित छात्रों को सरकारी वित्तीय सहायता सुनिश्चित करने में भी ढिलाई दिखाई थी.

सफाई कर्मचारियों के एक वर्ग ने कहा था कि उन्हें अपमानजनक तरीके से उनके घर पर काम करने के लिए मजबूर किया गया और उनके परिवार से जातिवादी गालियों का सामना करना पड़ा था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)