पूर्व नौकरशाहों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर ग्रेट निकोबार द्वीप पर ‘अवांछित विकास’ रुकवाने को कहा

राष्ट्रपति ने बीते मानवाधिकार दिवस पर पूरे जीव जगत और उनके निवास स्थान का सम्मान करने की बात कही थी. कॉन्स्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप के बैनर तले 87 पूर्व सिविल सेवकों ने उन्हें इस कथन की याद दिलाते हुए लिखा है कि आपके ऐसा कहने के बाद भी सरकार देश के प्राचीनतम प्राकृतिक आवासों में से एक को नष्ट करने के लिए पूरी तरह से तैयार है.

View of rainfall over the forest and adjacent sea from a watchtower of the Great Nicobar Biosphere Reserve, Great Nicobar Island, 2016. Photo: Prasun Goswami/Wikimedia Commons CC BY-SA 4.0.

राष्ट्रपति ने बीते मानवाधिकार दिवस पर पूरे जीव जगत और उनके निवास स्थान का सम्मान करने की बात कही थी. कॉन्स्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप के बैनर तले 87 पूर्व सिविल सेवकों ने उन्हें इस कथन की याद दिलाते हुए लिखा है कि आपके ऐसा कहने के बाद भी सरकार देश के प्राचीनतम प्राकृतिक आवासों में से एक को नष्ट करने के लिए पूरी तरह से तैयार है.

ग्रेट निकोबार द्वीप की एक तस्वीर. (फोटो: विकिमीडिया कॉमंस)

नई दिल्ली: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर 87 पूर्व सिविल सेवकों के एक समूह ने उनसे कहा है कि वे ग्रेट निकोबार द्वीप में ‘विनाशकारी परियोजनाओं के शुरू होने को तुरंत रोकने’ के लिए सरकार को सलाह दें.

द्वीप पर बड़े पैमाने पर विकास परियोजनाएं शुरू करने की योजना है, जिनमें एक अंतरराष्ट्रीय कंटेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल, एक बड़ा ग्रीन फील्ड अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, एक नगर और 16,610 हेक्टेयर में स्थापित होने वाला एक सौर एवं गैस आधारित बिजली संयंत्र शामिल है.

कॉन्स्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप (सीसीजी) के बैनर तले पूर्व सिविल सेवकों ने कहा, ‘यह देश के सबसे प्राचीन आवासों में से एक, जो विभिन्न दुर्लभ और स्थानिक प्रजातियों के साथ-साथ ग्रेट निकोबार की एक बेहद ही कमजोर जनजाति शोम्पेन का घर है, को नष्ट कर देगा.’

उन्होंने आगे कहा कि ग्रेट निकोबार के अछूते जंगलों की क्षतिपूर्ति के लिए हरियाणा में जंगल लगाने का विचार हास्यास्पद है. 13075 एकड़ एकड़ समृद्ध, सदाबहार, असाधारण वनस्पतियों और जीवों की प्रजातियों से भरे वर्षा वनों की क्षतिपूर्ति हरियाणा की सूखी अरावली पहाड़ियों में नए लगाए गए पेड़ों से की जाएगी.

सिविल सेवकों ने कहा कि भारत की जलवायु में परिवर्तन साफ महसूस होता है. उन्होंने कहा, ‘गर्मियों में अविश्वसनीय रूप से गर्म तापमान, अनियमित वर्षा, बार-बार आने वाले चक्रवात, देश के अधिकांश हिस्सों में हल्की सर्दी लेकिन उत्तर के तापमान में तेज गिरावट, वो कारक हैं जिनसे सरकार को चेत जाना चाहिए था.’

उन्होंने यह भी कहा कि जोशीमठ में ज़मीन का धंसना ‘उस नुकसान का स्पष्ट संकेत है जो बिना सोचे-समझे किया गया विकास देश को पहुंचा सकता है.’ साथ ही, निकोबार में भी वहां की भौगोलिक और पारिस्थितिक स्थिति देखते हुए विकास परियोजनाओं के चलते ऐसी स्थिति खड़े होने का संदेह जताया है.

उन्होंने राष्ट्रपति से कहा, ‘हम आपसे गंभीरतापूर्वक अनुरोध करते हैं कि आप अपनी सरकार को सलाह दें कि वह ग्रेट निकोबार में विनाशकारी परियोजनाओं को तुरंत शुरू होने से रोके.’

‘ग्रेट निकोबार द्वीप का अवांछित विकास’ शीर्षक से 22 जनवरी को लिखे गए पत्र में सिविल सेवकों ने अपना परिचय देते हुए बताया है कि उनका किसी भी राजनीतिक दल से कोई संबंध नहीं है, लेकिन वे निष्पक्षता, तटस्थता और भारत के संविधान के प्रति प्रतिबद्धता में विश्वास करते हैं.

उन्होंने अपने पत्र में 10 दिसंबर 2022 को मानवाधिकार दिवस पर राष्ट्रपति द्वारा कहे गए उन शब्दों का भी उल्लेख किया है जिनमें उन्होंने न्याय की अवधारणा में पर्यावरण को शामिल करने की बात कही थी.

पत्र में उन्हें उनके शब्द याद दिलाते हुए कहा गया है, ‘आपने कहा था कि जिस तरह मानवाधिकार की अवधारणा हमें हर इंसान को खुद से अलग नहीं मानने के लिए प्रेरित करती है, उसी तरह हमें पूरे जीव जगत और उनके निवास स्थान का सम्मान करना चाहिए.’

पत्र में आगे कहा गया है, ‘हालांकि, आपके ऐसा कहने के बाद भी भारत सरकार देश में सबसे प्राचीन आवासों में से एक को नष्ट करने के लिए पूरी तरह से तैयार है.’

पत्र में कहा गया, ‘द्वीप पर बड़े पैमाने पर विकास परियोजनाएं शुरू करने की योजना है, जिनमें एक अंतरराष्ट्रीय कंटेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल, एक बड़ा ग्रीन फील्ड अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, एक नगर और 16,610 हेक्टेयर में स्थापित होने वाला एक सौर एवं गैस आधारित बिजली संयंत्र शामिल है. यह देखते हुए कि ग्रेट निकोबार का पूरा द्वीप 1,03,870 हेक्टेयर में फैला है, लगभग 16 फीसदी द्वीप परियोजना को दे दिया जाएगा.’

साथ ही कहा गया है द्वीप के कुल क्षेत्रफल में से, 75,100 हेक्टेयर को विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (पीवीटीजी) शोम्पेन जनजाति के लिए एक जनजातीय रिजर्व के रूप में वैधानिक तौर पर अधिसूचित किया गया है. इन शर्मीले और अलग-थलग आदिवासियों को अत्याधिक सावधानी और संवेदनशीलता के साथ संभालने की जरूरत है, न कि विकास परियोजना के लिए लापरवाहीपूर्वक उन्हें उनके गृह क्षेत्र से हटाकार द्वीप पर कहीं और बसा दिया जाए.

पत्र में कहा गया है, ‘शोम्पेन लोगों ने समय-समय पर अपने क्षेत्र में बाहरी लोगों द्वारा गंभीर घुसपैठ का अनुभव किया है. राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग इस मामले से अवगत है और उसने सरकार को इस तरह की घुसपैठ को रोकने के निर्देश दिए हैं. सरकार इस पर ध्यान देने के बजाय अब खुद ही बड़ी घुसपैठ करने की तैयारी में है.’

पत्र आगे कहता है, ‘मानवीय आयामों के अलावा इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि इस परियोजना का द्वीप की पारिस्थितिकी पर अत्यधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.’

पत्र कहता है, ‘हालांकि परियोजना के लिए एक पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) किया गया था, लेकिन प्रकाशित रिपोर्ट्स से स्पष्ट है कि विश्लेषण का दायरा सीमित था. यह जांचने के लिए किसी को अधिकृत नहीं किया गया था कि क्या वैकल्पिक व्यवस्था और/या परियोजना का स्थानांतरण संभव है.’

पत्र में कहा गया है कि पूरी कवायद इस अनुमान पर आधारित है कि यह परियोजना द्वीपों एवं देश के लिए अच्छी होगी और तेजी से विकास की ओर ले जाएगी, लेकिन हमारा दृढ़ विश्वास है कि यह अनुमान सही साबित नहीं होगा.

सिविल सेवकों ने पत्र में कहा है, ‘हमें यह जानकर दुख हुआ कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने न केवल कुछ शर्तों के साथ पर्यावरण और तटीय विनियमन क्षेत्र (सीआरजेड) मंजूरी दी है, बल्कि 13,075 हेक्टेयर वन भूमि के डायवर्जन के लिए ‘सैद्धांतिक’ मंजूरी भी दी है, जिसमें प्रतिपूरक वनीकरण हरियाणा में किया जाएगा.’

सिविल सेवकों ने सरकार के निर्णय पर आश्चर्य जताते हुए कहा है कि 19 दिसंबर 2022 को जैव विविधता सम्मेलन में 2030 तक जैव विविधता के नुकसान को रोकने और उलटने पर सहमति बनी थी. इस तरह की प्रतिबद्धता को देखते हुए यह चकित करने वाला है कि भारत ग्रेट निकोबार जैसे पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र के इतने बड़े नुकसान के बारे में सोच भी कैसे सकता है.

सिविल सेवकों ने राष्ट्रपति से कहा है, ‘अंडमान और निकोबार द्वीप समूह दुर्लभ ज्वालामुखी द्वीपों का एक समूह है, जिसमें दुनिया के बहुत कम जीवित वर्षा वनों में से एक हैं. इसके संरक्षण, और दुनिया में कहीं भी कुछ सबसे दुर्लभ जीवित आदिम आदिवासी समुदायों के संरक्षण ने हमारे देश और हमारी सरकार को पारिस्थितिक रूप से खतरे वाली दुनिया में पर्यावरण के विजेता के रूप में खड़ा किया है. यदि यह परियोजना आगे बढ़ती है तो सावधानीपूर्वक पोषित यह प्रतिष्ठा एक झटके में पूरी तरह से खो जाएगी.’

पत्र में लिखा है, ‘इस वर्ष राष्ट्रों के जी-20 समूह का नेतृत्व संभालने के बाद भारत को निश्चित तौर पर यह दिखाना चाहिए कि आर्थिक विकास पर्यावरण की कीमत पर नहीं होना चाहिए, और पर्यावरण की रक्षा करना आर्थिक निर्णयों में सबसे बुद्धिमानी भरा है.’

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)