गुजरात दंगा: अल्पसंख्यक समुदाय के 17 लोगों की हत्या के मामले में अदालत ने 22 आरोपियों को बरी किया

गुजरात में 2002 के गोधरा कांड के बाद हुए दंगे के एक मामले में दो बच्चों सहित अल्पसंख्यक समुदाय के 17 सदस्यों की हत्या के 22 आरोपियों में से आठ की सुनवाई के दौरान मौत हो चुकी है. अभियोजन पक्ष के अनुसार, पीड़ितों को एक मार्च, 2002 को मार दिया गया था और सबूत नष्ट करने के इरादे से उनके शव भी जला दिए गए थे.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Lawmin.gov.in)

गुजरात में 2002 के गोधरा कांड के बाद हुए दंगे के एक मामले में दो बच्चों सहित अल्पसंख्यक समुदाय के 17 सदस्यों की हत्या के 22 आरोपियों में से आठ की सुनवाई के दौरान मौत हो चुकी है. अभियोजन पक्ष के अनुसार, पीड़ितों को एक मार्च, 2002 को मार दिया गया था और सबूत नष्ट करने के इरादे से उनके शव भी जला दिए गए थे.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Lawmin.gov.in)

गोधरा: गुजरात के पंचमहल जिले के हलोल कस्बे की एक अदालत ने राज्य में 2002 के गोधरा ट्रेन अग्निकांड के बाद हुए दंगे के एक मामले में दो बच्चों सहित अल्पसंख्यक समुदाय के 17 सदस्यों की हत्या के आरोपी 22 लोगों को मंगलवार को सबूत के अभाव में बरी कर दिया.

बचाव पक्ष के वकील गोपाल सिंह सोलंकी ने कहा कि अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश हर्ष त्रिवेदी की अदालत ने सभी 22 आरोपियों को बरी कर दिया, जिनमें से आठ की मामले की सुनवाई के दौरान मौत हो गई.

सोलंकी ने कहा, ‘जिले के देलोल गांव में दो बच्चों समेत अल्पसंख्यक समुदाय के 17 लोगों की हत्या और दंगा करने के मामले में अदालत ने सबूतों के अभाव में सभी आरोपियों को बरी कर दिया.’

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने ‘कॉर्पस डेलिक्टी’ (Corpus Delicti) के नियम पर भी भरोसा किया. इस नियम के तहत किसी व्यक्ति को उस अपराध को करने के लिए दोषी ठहराए जाने से पहले अपराध साबित होना चाहिए.

यह देखते हुए कि यह ‘सामान्य नियम है कि किसी को भी दोषी नहीं ठहराया जा सकता, जब तक कि कॉर्पस डेलिक्टी को स्थापित नहीं किया जा सकता है’, अदालत ने कहा, ‘मामले में 7/1/2004 को जब एफएसएल (फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला) विशेषज्ञ ने बताया कि ‘पूरी तरह से जली हुई हड्डी के टुकड़ों (जो कथित तौर पर लापता व्यक्तियों के थे) पर कोई डीएनए प्रोफाइलिंग परिणाम प्राप्त नहीं होगा’ तब कॉर्पस डेलिक्टी के नियम पर स्वचालित रूप से विचार किया जाना आवश्यक था.’

अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन अपराध के संदिग्ध स्थान को साबित नहीं कर सका, इस स्थान से शारीरिक अवशेष बरामद नहीं किए जा सके.

अदालत ने यह भी नोट किया कि अभियोजन पक्ष संदेह से परे अपराध स्थल पर अभियुक्तों की उपस्थिति या अपराध में उनकी विशिष्ट भूमिका को स्थापित करने, अभियुक्तों से अपराध के लिए इस्तेमाल किए गए कथित हथियारों को बरामद करने में विफल रहा. अपराध स्थल से कोई ज्वलनशील पदार्थ भी नहीं मिला.

आठ मृत आरोपियों के अलावा जिन 14 लोगों को बरी किया गया, उनमें मुकेश भारवद, किलोल जानी, अशोक भाई पटेल, नीरव कुमार पटेल, योगेश कुमार पटेल, दिलीप सिंह गोहिल, दिलीप कुमार भट्ट, नसीबदार राठौड़, अल्केश कुमार व्यास, नरेंद्र कुमार कछिया, जीनाभाई राठौड़, अक्षय कुमार शाह, किरीटभाई शाह और सुरेश भाई पटेल शामिल हैं.

अभियोजन पक्ष के अनुसार, पीड़ितों को 1 मार्च, 2002 को मार दिया गया था और सबूत नष्ट करने के इरादे से उनके शव भी जला दिए गए थे. सुनवाई के दौरान 84 गवाहों से पूछताछ की गई थी.

पंचमहल जिले के गोधरा कस्बे के पास 27 फरवरी, 2002 को भीड़ द्वारा साबरमती एक्सप्रेस की एक बोगी जलाए जाने के एक दिन बाद राज्य के विभिन्न हिस्सों में सांप्रदायिक दंगे भड़क गए थे. बोगी जलाए जाने की घटना में 59 यात्रियों की मौत हो गई थी, जिनमें से अधिकांश ‘कारसेवक’ अयोध्या से लौट रहे थे.

देलोल गांव में हिंसा के बाद हत्या और दंगे से संबंधित भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं के तहत एक एफआईआर दर्ज की गई थी. एक अन्य पुलिस इंस्पेक्टर ने घटना के लगभग दो साल बाद नए सिरे से मामला दर्ज किया और दंगों में शामिल होने के आरोप में 22 लोगों को गिरफ्तार किया.

सोलंकी ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत इकट्ठा करने में असमर्थ रहा, यहां तक कि गवाह भी मुकर गए. बचाव पक्ष के वकील ने कहा कि पीड़ितों के शव कभी नहीं मिले.

पुलिस ने एक नदी के किनारे एक सुनसान जगह से हड्डियां बरामद कीं, लेकिन वे इस हद तक जली हुई थीं कि पीड़ितों की पहचान स्थापित नहीं की जा सकी.

इंडियन एक्सप्रेस ने बताया कि मूल शिकायत के अनुसार हलोल राहत शिविर में देलोल गांव से भागे कई मुस्लिमों ने आरोप लगाया कि उनके परिवार के सदस्य गायब हैं. एक अन्य राहत शिविर के निवासी ने भी शिकायत की थी कि वह 150-200 लोगों की भीड़ से खुद को बचाने के लिए अपने बेटे के साथ गांव में अपने घर से भाग गए थे और गांव के 18 मुसलमान लापता थे.

इसके बाद की जांच में जली हुई हड्डियों और अन्य निवासियों की बरामदगी हुई थी, जिन्होंने अपने परिवार के सदस्यों को खो दिया था. 20 लोगों को आरोपी के रूप में पहचाना गया था, जो भीड़ का हिस्सा थे और निवासियों ने आरोपियों को तलवार और कुल्हाड़ी जैसे हथियारों से उनके परिवार के सदस्यों की हत्या करते हुए देखा था. जांच अधिकारियों द्वारा हथियार बरामद नहीं किए गए थे. इस मामले में 2004 में चार्जशीट दायर की गई थी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)