आईटी नियम: एडिटर्स गिल्ड ने कहा- पीआईबी को नियामक शक्तियां देना अवैध और असंवैधानिक

सरकार की अधिकृत सूचना इकाई पीआईबी को सोशल मीडिया मंचों पर फ़र्ज़ी ख़बरों की निगरानी का अधिकार दिए जाने के प्रस्ताव पर विभिन्न मीडिया संगठनों ने गहरी चिंता व्यक्त की है. इससे पहले एडिटर्स गिल्ड ने कहा था कि फ़र्ज़ी ख़बरों का निर्धारण सिर्फ़ सरकार के हाथ में नहीं सौंपा जा सकता है, इसका नतीजा प्रेस को सेंसर करने के रूप में निकलेगा.

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(प्रतीकात्मक फोटो साभार: फेसबुक)

सरकार की अधिकृत सूचना इकाई पीआईबी को सोशल मीडिया मंचों पर फ़र्ज़ी ख़बरों की निगरानी का अधिकार दिए जाने के प्रस्ताव पर विभिन्न मीडिया संगठनों ने गहरी चिंता व्यक्त की है. इससे पहले एडिटर्स गिल्ड ने कहा था कि फ़र्ज़ी ख़बरों का निर्धारण सिर्फ़ सरकार के हाथ में नहीं सौंपा जा सकता है, इसका नतीजा प्रेस को सेंसर करने के रूप में निकलेगा.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: संपादकों की शीर्ष संस्था एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव को पत्र लिखकर उनसे आईटी नियमों में संशोधन को ‘हटाने’ का आग्रह किया है, जो सरकार की मीडिया शाखा ‘पत्र सूचना कार्यालय’ (पीआईबी) की फैक्ट चेकिंग इकाई द्वारा ‘फर्जी’ के रूप में पहचाने गए समाचार या सूचना को हटाने का निर्देश सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को देता है.

मंगलवार को वैष्णव को भेजे गए एक पत्र में गिल्ड ने मंत्रालय से डिजिटल मीडिया के लिए नियामक ढांचे पर प्रेस निकायों, मीडिया संगठनों और अन्य हितधारकों के साथ परामर्श शुरू करने के लिए कहा, ताकि प्रेस की स्वतंत्रता को कमजोर न किया जा सके.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, गिल्ड ने कहा कि वह प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) को व्यापक अधिकार देने वाले प्रस्तावित संशोधन से ‘बेहद चिंतित’ है.

पत्र में कहा गया है, ‘यह नई प्रक्रिया मूल रूप से स्वतंत्र प्रेस को दबाने का काम करती है और पीआईबी या तथ्य जांच के लिए केंद्र सरकार द्वारा अधिकृत किसी भी अन्य एजेंसी को व्यापक अधिकार देगी, ताकि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म को ऐसी किसी भी सामग्री को हटाने के लिए मजबूर किया जा सके, जिससे सरकार को परेशानी हो सकती है.’

गिल्ड ने नोट किया कि पीआईबी की भूमिका सरकार के मामलों पर समाचार संगठनों को सूचना प्रसारित करने तक सीमित थी.

पत्र में कहा गया है, ‘इस प्रस्तावित संशोधन से इस एजेंसी को व्यापक नियामक शक्तियां देने की मांग की गई है, जो स्पष्ट रूप से अवैध और असंवैधानिक है.’

गिल्ड ने दोहराया कि प्रक्रियाओं की अपरवाह किए बिना संशोधन अपने आप में एक अवैध कदम था, क्योंकि पीआईबी के पास किसी भी क्षमता में प्रेस का नियामक होने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है.

इससे पहले बीते 18 जनवरी को भी एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने एक बयान में इस प्रस्ताव पर गहरी चिंता जताई थी. गिल्ड ने कहा था कि फर्जी खबरों का निर्धारण सिर्फ सरकार के हाथ में नहीं सौंपा जा सकता है, क्योंकि इसका नतीजा प्रेस को सेंसर करने के रूप में निकलेगा.

दरअसल, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने बीते 17 जनवरी को सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 (आईटी नियम) के मसौदे में संशोधन जारी किया, जिसे पहले सार्वजनिक परामर्श के लिए जारी किया गया था.

इसमें सोशल मीडिया पर गलत, फर्जी या भ्रामक सामग्री की पहचान का जिम्मा पीआईबी या किसी अन्य सरकारी एजेंसी को देने का जिक्र है. इसे ऑनलाइन मीडिया के एक हिस्से ने सरकारी नियंत्रण की कोशिश बताया है.

इसमें कहा गया है कि पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) की फैक्ट-चेकिंग इकाई द्वारा ‘फर्जी (फेक)’ मानी गई किसी भी खबर को सोशल मीडिया मंचों समेत सभी मंचों से हटाना पड़ेगा.

ऐसी सामग्री जिसे ‘फैक्ट-चेकिंग के लिए सरकार द्वारा अधिकृत किसी अन्य एजेंसी’ या ‘केंद्र के किसी भी कार्य के संबंध में’ भ्रामक के रूप में चिह्नित किया गया है, उसे ऑनलाइन मंचों (Intermediaries) पर अनुमति नहीं दी जाएगी.

नए संशोधन प्रस्ताव को लेकर विभिन्न मीडिया संगठनों ने गहरी चिंता व्यक्त की है. एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के अलावा प्रेस एसोसिएशन, डिजिपब फाउंडेशन ऑफ इंडिया, न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन जैसे मीडिया संगठनों ने भी सरकार से संशोधन को वापस लेने की मांग की है.

सूचना प्रौद्योगिकी नियमों में प्रस्तावित मसौदा संशोधन को वापस लिया जाए: आईएनएस

इस बीच इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी (आईएनएस) ने मंगलवार को सरकार से अनुरोध किया कि आईटी नियमों में उस मसौदा संशोधन को वापस लिया जाए, जिसके तहत सोशल मीडिया मंचों के लिए पीआईबी की फैक्ट चैकिंग इकाई द्वारा फर्जी घोषित खबर या सूचना को हटाना जरूरी होगा.

आईएनएस ने केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय से हितधारकों के साथ विचार-विमर्श शुरू करके ऐसी प्रणाली बनाने को कहा, जिससे मीडिया साइटों पर सरकार के कामकाज के बारे में खबरों की तथ्यात्मक वास्तविकता सुनिश्चित हो और निष्पक्षता के सर्वोच्च मानकों का पालन किया जाए.

उसने कहा कि परिभाषा के अनुसार, सरकार की नोडल एजेंसी के रूप में पीआईबी की भूमिका सरकार के कार्यक्रमों, पहलों और उपलब्धियों के बारे में सूचनाएं प्रसारित करना है.

आईएनएस ने कहा कि इन संशोधनों से केंद्र सरकार से संबंधित बयानों की जांच करने की जिम्मेदारी उसकी अपनी एजेंसी की होगी, जो उसे कानून की शक्ति प्रदान करेगी.

संगठन  ने कहा, ‘अपने स्वयं के मामले में न्यायाधीश बनने के लिए कानून बनाकर, सरकार नियमों के एक सेट में प्रस्तावित संशोधन के माध्यम से, जो अन्यथा भी चिंता का कारण बनता है, प्रभावी रूप से आलोचना और यहां तक ​​कि निष्पक्ष टिप्पणी को दबाने के लिए कदम उठा रही है.’

संशोधन ने सरकार को मीडिया के अधिकारों में हस्तक्षेप का अधिकार दिया है: एनबीडीए

आईएनएस के अलावा न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन (एनबीडीए) ने सोमवार (23 जनवरी) को सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) नियमों के संशोधनों के मसौदे को वापस लेने की मांग करते हुए कहा कि इसने सरकार को मीडिया की अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकारों में हस्तक्षेप करने का बेरोकटोक अधिकार दिया है.

एसोसिएशन ने कहा कि बिना किसी नियंत्रण और संतुलन के सरकार को इस तरह की शक्तियां प्रदान करने से लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का गला घोंट दिया जाएगा और मीडिया पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा.

एनबीडीए ने एक बयान में कहा कि प्रस्तावित संशोधन सीधे समाचार मीडिया को प्रभावित करेंगे, क्योंकि पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) या किसी अन्य एजेंसी द्वारा मध्यस्थ संस्थानों को न्याय के प्राकृतिक सिद्धांतों का पालन किए बिना कथित फर्जी समाचार सामग्री को हटाने के लिए मजबूर या निर्देशित किया जा सकता है.

एनबीडीए ने इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय से संशोधन वापस लेने का आग्रह करते हुए कहा, ‘उपरोक्त नियम में संशोधन पीआईबी और केंद्र सरकार को बिना किसी जांच के डिजिटल समाचार सामग्री को विनियमित करने के लिए बेरोकटोक अधिकार देता है.’

एनबीडीए ने कहा कि समाचार मीडिया को विनियमित करने के लिए पर्याप्त कानून, विनियम और वैधानिक निकाय हैं तथा इस तरह के संशोधन से सरकार द्वारा अत्यधिक विनियमन होगा जो न तो वांछनीय और न ही स्वीकार्य है.

एनबीडीए ने कहा, ‘संविधान में इस तरह की सेंसरशिप की परिकल्पना नहीं की गई है.’

मालूम हो कि इससे पहले डिजिटल मीडिया संगठनों के एक संघ ‘डिजीपब’ ने बीते 19 जनवरी को कहा था कि आईटी नियमों में प्रस्तावित संशोधन संभावित रूप से प्रेस की स्वतंत्रता को नुकसान पहुंचाने के लिए एक सुविधाजनक संस्थागत तंत्र बन सकता है.

इसके अलावा, प्रेस एसोसिएशन ने एक बयान में कहा था, ‘प्रेस काउंसिल पहले से ही फर्जी समाचार की कई शिकायतों पर फैसला कर रही है. पीआईबी जैसी विशुद्ध रूप से सरकारी संस्था को फर्जी समाचार को निर्धारित करने और कार्रवाई करने की शक्ति मिलने से प्रेस काउंसिल का अधिकार, स्वतंत्रता कम हो जाएगी, जो 1966 से सुचारू रूप से काम कर रही है.’

गौरतलब है कि 2019 में स्थापित पीआईबी की फैक्ट-चेकिंग इकाई, जो सरकार और इसकी योजनाओं से संबंधित खबरों को सत्यापित करती है, पर वास्तविक तथ्यों पर ध्यान दिए बिना सरकारी मुखपत्र के रूप में कार्य करने का आरोप लगता रहा है.

मई 2020 में न्यूज़लॉन्ड्री ने ऐसे कई उदाहरण बताए थे, जहां पीआईबी की फैक्ट-चेकिंग इकाई वास्तव में तथ्यों के पक्ष में नहीं थी, बल्कि सरकारी लाइन पर चल रही थी.

फैक्ट-चेकिंग वेबसाइट ऑल्ट न्यूज के संस्थापक प्रतीक सिन्हा का भी कहना है कि समस्या यह भी है कि पीआईबी किन खबरों का फैक्ट-चेक करने का फैसला करता है और किनको नजरअंदाज करता है.

उन्होंने न्यूजलॉन्ड्री से कहा था, ‘मुद्दा यह है कि पीआईबी फैक्ट चेक इकाई क्या सत्यापित करने का फैसला करती है. यदि आप पीआईबी द्वारा किए गए फैक्ट-चेक देखते हैं तो कुछ अपवादों को छोड़कर वे सरकार की छवि को नुकसान पहुंचने से बचाने की कोशिश करते हैं. वे उन चुनिंदा खबरों का फैक्ट-चेक करते हैं, जो स्वभाव से राजनीतिक हैं और सत्तारूढ़ पार्टी के लिए आलोचनात्मक हैं.’

उन्होंने कहा था, ‘यह कहना कि केवल पीआईबी फैक्ट-चेकिंग इकाई ही यह तय करेगी कि क्या सच है और क्या झूठ है, बताता है कि केवल सरकार के खिलाफ गलत सूचना को हटाया जाएगा. अन्य सभी गलत सूचनाओं को ऑनलाइन बने रहने की अनुमति होगी.’

पीआईबी को ऑनलाइन सामग्री की पड़ताल का अधिकार देने पर अगले महीने चर्चा: मंत्री

इस बीच केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने मंगलवार को कहा कि सरकार की अधिकृत सूचना इकाई पीआईबी को सोशल मीडिया मंचों पर फर्जी खबरों की निगरानी का अधिकार दिए जाने के प्रस्ताव पर अगले महीने सभी हितधारकों के साथ चर्चा की जाएगी.

इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री चंद्रशेखर ने पीआईबी को सोशल मीडिया पर खबरों की तथ्यपरकता परखने के लिए सशक्त किए जाने के प्रस्ताव के बारे में पूछे जाने पर कहा, ‘हम अगले महीने की शुरुआत में इस पर अलग से चर्चा करेंगे.’

प्रस्तावित संशोधन में सोशल मीडिया कंपनियों को यह सुनिश्चित करने को कहा गया है कि इस तरह की सामग्री को अपलोड या प्रसारित न किया जाए जिसे पीआईबी की तथ्य पड़ताल इकाई ने फर्जी या गलत पाया है.

पीआईबी की इस इकाई को अपने पोर्टल पर आम लोगों से भेजी गईं शिकायतों के आधार पर या स्वत: संज्ञान लेकर संदिग्ध सामग्री की सचाई पता करनी होगी.

चंद्रशेखर ने कहा कि ऑनलाइन गेमिंग के नियमन के लिए नियम 31 जनवरी तक अधिसूचित कर दिए जाएंगे. उसके बाद इसे संसद की मंजूरी के लिए पेश किया जाएगा.

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम को लेकर विचार-विमर्श की प्रक्रिया पूरी हो गई है. अब इसे अधिसूचना जारी करने के लिहाज से तैयार किया जा रहा है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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