नहीं जानता कि विश्व भारती विश्वविद्यालय मुझे हटाने की कोशिश क्यों कर रहा है: अमर्त्य सेन

पश्चिम बंगाल स्थित विश्व भारती ने बीते मंगलवार को अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अमर्त्य सेन से शांतिनिकेतन में ज़मीन के एक हिस्से को सौंपने को कहा था और दावा किया था कि भूमि के इस हिस्से पर उन्होंने अनधिकृत तरीके से क़ब्ज़ा किया हुआ है. सेन ने कहा कि वह इस क़दम के पीछे की राजनीति को नहीं समझ पा रहे हैं.

/
अमर्त्य सेन. (फोटो: पीटीआई)

पश्चिम बंगाल स्थित विश्व भारती ने बीते मंगलवार को अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अमर्त्य सेन से शांतिनिकेतन में ज़मीन के एक हिस्से को सौंपने को कहा था और दावा किया था कि भूमि के इस हिस्से पर उन्होंने अनधिकृत तरीके से क़ब्ज़ा किया हुआ है. सेन ने कहा कि वह इस क़दम के पीछे की राजनीति को नहीं समझ पा रहे हैं.

अमर्त्य सेन. (फोटो: पीटीआई)

कोलकाता: पश्चिम बंगाल स्थित विश्व भारती विश्वविद्यालय द्वारा शांतिनिकेतन में कथित तौर पर ‘अनधिकृत रूप से’ कब्जाए गए भूखंड के एक हिस्से को लौटाने के लिए कहने के बाद नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अमर्त्य सेन बुधवार को कहा कि उन्हें समझ में नहीं आ रहा कि केंद्रीय विश्वविद्यालय उन्हें उस जगह से हटाने की कोशिश करने के लिए अचानक इतना सक्रिय क्यों हो गया है.

विश्वविद्यालय से इस बाबत एक पत्र मिलने के एक दिन बाद सेन ने कहा कि वह इस कदम के पीछे की ‘राजनीति’ को नहीं समझ पा रहे हैं.

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ने जोर देकर कहा कि शांति निकेतन में उनके पास जो जमीन है, उनमें से अधिकांश को उनके पिता ने 1940 के दशक में बाजार से खरीदा था, जबकि कुछ अन्य भूखंडों को पट्टे पर लिया था.

उन्होंने कहा, ‘मैं उनकी (विश्वविद्यालय के अधिकारियों की) सोच में कोई गहराई नहीं देख सका. मैं विश्व भारती विश्वविद्यालय के इस रवैये के पीछे की राजनीति को भी नहीं समझता हूं.’

प्रोफेसर सेन ने कहा, ‘यह मेरा आवास है, जो 1940 के दशक में विश्वभारती से पट्टे पर ली गई जमीन पर बना है. जमीन हमें 100 साल के लिए पट्टे पर दी गई थी. कुछ जमीन मेरे पिता ने बाजार से नियम-कायदों का पालन करते हुए खरीदी थी.’

अर्थशास्त्री ने कहा कि पास के सूरुल के जमींदारों से भूखंड खरीदे गए थे और सौदे से संबंधित आवश्यक दस्तावेज (सरकारी) अधिकारियों को सौंपे जा चुके हैं.

उन्होंने कहा, ‘मुझे इस मामले में अपना समय बर्बाद करने का कोई कारण नजर नहीं आता. यह समझना बहुत मुश्किल है कि विश्व भारती अचानक मुझे (यहां से) हटाने की कोशिश में सक्रिय क्यों हो गया है.’

विश्व भारती ने मंगलवार (24 जनवरी) को सेन से शांतिनिकेतन में जमीन के एक हिस्से को सौंपने को कहा था और दावा किया था कि भूमि के इस हिस्से पर उन्होंने अनधिकृत तरीके से कब्जा किया हुआ है.

केंद्रीय विश्वविद्यालय के उप-पंजीयक द्वारा हस्ताक्षरित एक पत्र में कहा गया था कि प्रसिद्ध अर्थशास्त्री का निवास एक ऐसे क्षेत्र में बनाया गया है, जिसमें अतिरिक्त 13 डिसमिल भूमि शामिल है.

विश्वविद्यालय ने यह भी कहा था कि वह अपने प्रतिनिधियों और सर्वेक्षणकर्ता या सेन द्वारा प्रतिनियुक्त सर्वेक्षणकर्ता या अधिवक्ता की निगरानी में संयुक्त सर्वेक्षण करने के लिए तैयार है, ताकि दावों को सत्यापित किया जा सके.

पत्र में कहा गया था, ‘रिकॉर्ड और भौतिक सर्वेक्षण/सीमांकन से यह पता चला है कि विश्व भारती से संबंधित 13 डिसमिल भूमि पर आपका अनधिकृत कब्जा है.’

इसमें कहा गया, ‘आपसे अनुरोध है कि उक्त 13 डिसमिल जमीन जल्द से जल्द विश्वविद्यालय को सौंप दी जाए.’

विश्वविद्यालय की प्रवक्ता महुआ बनर्जी ने कहा कि नोबेल पुरस्कार विजेता के पिता आशुतोष सेन ने 1943 में विश्वविद्यालय से 125 डिसमिल जमीन पट्टे पर ली थी.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, कुछ हलकों ने आरोप लगाया है कि विश्वविद्यालय का यह कार्य राजनीतिक रूप से प्रेरित हो सकता है, क्योंकि अमर्त्य सेन केंद्र सरकार की कई नीतियों के आलोचक रहे हैं.

मालूम हो कि जनवरी 2021 में विश्व-भारती के कुलपति बिद्युत चक्रवर्ती ने अमर्त्य सेन के परिवार पर परिसर में जमीन पर अवैध कब्जे का आरोप लगाया था.

दुनियाभर में प्रतिष्ठित नोबेल विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की नीतियों के शुरू से आलोचक रहे हैं और सरकार को लगातार समाज के वंचित तबकों के लिए काम करने को सुझाव देते रहे हैं.

इसी महीने की शुरुआत में अमर्त्य सेन ने कहा था कि भारत में वर्तमान में व्याप्त ‘असहिष्णुता का माहौल’ लंबे समय तक नहीं रहेगा और इसके खिलाफ लड़ने के लिए लोगों को एकजुट होना होगा. इनमें से कुछ मतभेदों को ‘अज्ञानता व निरक्षरता’ ने जन्म दिया है.

अमर्त्य सेन पहले भी कई मौकों पर देश के मौजूदा हालातों को लेकर चिंता जता चुके हैं. जुलाई 2022 में उन्होंने कहा था कि राजनीतिक अवसरवाद के लिए लोगों को बांटा जा रहा है.

उन्होंने कहा था, ‘भारतीयों को बांटने की कोशिश हो रही है. राजनीतिक अवसरवाद के कारण हिंदुओं और मुसलमानों के सह-अस्तित्व में दरार पैदा की जा रही है.’

सेन ने कहा था, ‘भारत केवल हिंदुओं का देश नहीं हो सकता. साथ ही अकेले मुसलमान भारत का निर्माण नहीं कर सकते. हर किसी को एक साथ मिलकर काम करना होगा.’

इससे पहले एक अवसर पर उन्होंने कहा था कि देश में मौजूदा हालात डर की वजह बन गए हैं. तब भी उन्होंने लोगों से एकता बनाए रखने की दिशा में काम करने की अपील की थी.

उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता का आह्वान करते हुए कहा था, ‘भारत में सहिष्णुता की एक अंतर्निहित संस्कृति है, लेकिन वक्त की जरूरत है कि हिंदू और मुस्लिम एक साथ काम करें.’

दिसंबर 2022 में भी उन्होंने देश के मौजूदा हालातों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि भारत में चर्चा और असहमति की गुंजाइश कम होती जा रही है. मनमाने तरीके से देशद्रोह के आरोप थोपकर लोगों को बिना मुकदमे जेल भेजा रहा है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)