हिंदी थोपे जाने के ख़िलाफ़ हमारा संघर्ष जारी रहेगा: एमके स्टालिन

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने राज्य में हिंदी विरोधी आंदोलन के दौरान जान गंवाने वालों के सम्मान में आयोजित ‘भाषा शहीद दिवस’ में केंद्र पर बेशर्मी से हिंदी थोपने का आरोप लगाते हुए कहा कि हम किसी भाषा के दुश्मन नहीं हैं. अपने हित के लिए कोई कितनी भी भाषाएं सीख सकता है, पर हम थोपे जाने के किसी भी क़दम का विरोध करेंगे.

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तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन. (फोटो साभार: फेसबुक पेज)

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने राज्य में हिंदी विरोधी आंदोलन के दौरान जान गंवाने वालों के सम्मान में आयोजित ‘भाषा शहीद दिवस’ में केंद्र पर बेशर्मी से हिंदी थोपने का आरोप लगाते हुए कहा कि हम किसी भाषा के दुश्मन नहीं हैं. अपने हित के लिए कोई कितनी भी भाषाएं सीख सकता है, पर हम थोपे जाने के किसी भी क़दम का विरोध करेंगे.

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन. (फोटो साभार: फेसबुक पेज)

तिरुवल्लुर: तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत केंद्र सरकार पर ‘निर्लज्जता’ से हिंदी थोपने का आरोप लगाया और जोर देकर कहा कि राज्य में सत्तारूढ़ उनकी पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) इस प्रकार के हर प्रयास का विरोध करना जारी रखेगी.

स्टालिन ने राज्य में अतीत में हिंदी विरोधी आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले लोगों के सम्मान में बुधवार को यहां आयोजित ‘भाषा शहीद दिवस’ जनसभा में कहा, ‘भारतीय संघ पर शासन कर रही भाजपा सरकार ने प्रशासन से लेकर शिक्षा तक हर क्षेत्र में हिंदी को थोपने की प्रथा बना ली है (और) उन्हें लगता है कि वे हिंदी थोपने के लिए सत्ता में आए हैं.’

द्रमुक अध्यक्ष स्टालिन ने कहा, ‘एक राष्ट्र, एक धर्म, एक चुनाव, एक (प्रवेश) परीक्षा, एक भोजन, एक संस्कृति की तरह, वे एक भाषा के जरिये अन्य राष्ट्रीय वर्गों की संस्कृति नष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं.’

हिंदी थोपे जाने के खिलाफ राज्य विधानसभा के अक्टूबर 2022 के प्रस्ताव का जिक्र करते हुए स्टालिन ने कहा, ‘हिंदी थोपे जाने के खिलाफ हमारा संघर्ष जारी रहेगा. तमिल की रक्षा के हमारे प्रयास हमेशा जारी रहेंगे.’

उन्होंने कहा, ‘भाजपा सरकार बेशर्मी से हिंदी थोप रही है.’ उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार हिंदी दिवस मनाती है, लेकिन अन्य राज्यों की भाषाओं के मामले में ऐसा नहीं है.

स्टालिन ने कहा, ‘हिंदी को अधिक महत्व दिए जाने से न केवल अन्य भाषाओं की उपेक्षा हो रही है, बल्कि यह उन्हें नष्ट करने समान है.’

स्टालिन ने कहा कि 2017-20 के बीच केंद्र ने संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए 643 करोड़ रुपये दिए. तमिल के लिए 23 करोड़ रुपये से भी कम राशि आवंटित की गई.

मुख्यमंत्री ने कहा, ‘हम किसी भी भाषा के दुश्मन नहीं हैं. अपने हित के लिए कोई व्यक्ति कितनी भी भाषाएं सीख सकता है, लेकिन हम कुछ थोपे जाने के किसी भी कदम का विरोध करेंगे.’

स्टालिन ने कहा कि कई हिंदी-विरोधी आंदोलनों के बाद पूर्व मुख्यमंत्री सीएन अन्नादुरई तमिल और अंग्रेजी के दो-भाषा फार्मूले को सुनिश्चित करने के लिए एक कानून लाए थे, जिसके कारण राज्य के युवा दुनिया के कई हिस्सों में सफल रहे.

द हिंदू के मुताबिक, स्टालिन ने कहा कि तमिलनाडु ने 1938-40, 1948-50, 1953-56, 1959-61 और 1986 में भाषा संघर्ष के पांच चरणों का सामना किया था और विभिन्न तमिल विद्वानों और सुधारक नेताओं और उन लोगों के योगदान को याद किया जिन्होंने अपनी जान गंवाई थी.

तमिल भाषा के लिए द्रमुक के योगदान को याद करते हुए स्टालिन ने कहा कि यह पहली द्रमुक सरकार के दौरान था जब मद्रास राज्य का नाम बदलकर तमिलनाडु कर दिया गया था.

स्टालिन ने दो-भाषा फॉर्मूले के बारे में कहा, ‘अन्ना ने ऐसा यह सुनिश्चित करने के लिए किया कि भाषा के लिए शहीद होने वालों का बलिदान व्यर्थ न जाए.’

मालूम हो बीते साल नवंबर में तमिलनाडु सरकार ने विधानसभा में केंद्र सरकार द्वारा ‘प्रदेश पर हिंदी भाषा थोपे जाने’ (Hindi Imposition) के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया था.

गौरतलब है कि इससे पहले अक्टूबर 2022 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पेश की गई अपनी 11वीं रिपोर्ट में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता वाली राजभाषा पर संसदीय समिति ने सिफारिश की थी कि हिंदी भाषी राज्यों में आईआईटी जैसे तकनीकी और गैर-तकनीकी उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षा का माध्यम हिंदी और देश के अन्य हिस्सों में शिक्षा का माध्यम स्थानीय भाषा होनी चाहिए. साथ ही, सभी राज्यों में स्थानीय भाषाओं को अंग्रेजी पर वरीयता दी जानी चाहिए.

समिति ने कहा कि हिंदी भाषी राज्यों में जानबूझकर हिंदी में काम न करने व़ाले केंद्र सरकार के अधिकारियों और कर्मचारियों को चेतावनी दी जानी चाहिए और अगर वे चेतावनी के बावजूद ऐसा नहीं करते हैं, तो इसे उनकी वार्षिक प्रदर्शन मूल्यांकन रिपोर्ट (एपीएआर) में दर्शाया जाना चाहिए.

प्रस्ताव में कहा गया था कि यह सिफारिशें ‘तमिल सहित राज्य की भाषाओं और इन भाषाओं को बोलने वाले लोगों के हित के खिलाफ भी हैं.’

सितंबर 2022 में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा था कि भाजपा को ‘इंडिया’ को ‘हिंदिया’ में बदलने की कोशिश नहीं करनी चाहिए.

स्टालिन ने कहा था कि हिंदी को विभिन्न तरीकों से थोपने की कोशिशें आगे नहीं बढ़ाई जानी चाहिए और भारत की एकता की गौरवमय ख्याति हमेशा बरकरार रखी जाए. उन्होंने सभी भाषाओं को केंद्र सरकार की आधिकारिक भाषा का दर्जा देने की मांग की थी.

ज्ञात हो कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कई मौकों पर हिंदी जोर देते रहे हैं जिसकी राजनीतिक दलों द्वारा आलोचना होती रही है. गृह मंत्री पहले कह भी चुके हैं कि हिंदी, अंग्रेजी का विकल्प हो सकती है. इसे लेकर विपक्ष, खासकर दक्षिण भारत के नेता खासा विरोध जता चुके हैं.

अप्रैल 2022 में अमित शाह ने राजधानी दिल्ली में संसदीय राजभाषा समिति की 37वीं बैठक की अध्यक्षता करते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निर्णय किया है कि सरकार चलाने का माध्यम राजभाषा है और यह निश्चित तौर पर हिंदी के महत्व को बढ़ाएगा.

गृह मंत्री ने कहा था कि अन्य भाषा वाले राज्यों के नागरिक जब आपस में संवाद करें तो वह ‘भारत की भाषा’ में हो.

उनका कहना था कि मंत्रिमंडल का 70 प्रतिशत एजेंडा अब हिंदी में तैयार किया जाता है. वक्त आ गया है कि राजभाषा हिंदी को देश की एकता का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया जाए. हिंदी की स्वीकार्यता स्थानीय भाषाओं के नहीं, बल्कि अंग्रेजी के विकल्प के रूप में होनी चाहिए.

अमित शाह द्वारा हिंदी भाषा पर जोर दिए जाने की तब विपक्षी दलों ने तीखी आलोचना की थी और इसे भारत के बहुलवाद पर हमला बताया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)