कोर्ट ने सीबीआई व गुजरात सरकार से पूछा- सीतलवाड़, उनके पति को फिर जेल क्यों भेजना चाहते हैं

सुप्रीम कोर्ट सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़, उनके पति जावेद आनंद, गुजरात पुलिस और सीबीआई द्वारा दायर याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई कर रहा था. ये याचिकाएं दंपति के ख़िलाफ़ उनके एनजीओ के माध्यम से फंड के गबन करने के आरोप को लेकर दर्ज तीन एफआईआर के संबंध में दायर की गई हैं.

तीस्ता सीतलवाड़. (फोटो साभार: यूट्यूब)

सुप्रीम कोर्ट सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़, उनके पति जावेद आनंद, गुजरात पुलिस और सीबीआई द्वारा दायर याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई कर रहा था. ये याचिकाएं दंपति के ख़िलाफ़ उनके एनजीओ के माध्यम से फंड के गबन करने के आरोप को लेकर दर्ज तीन एफआईआर के संबंध में दायर की गई हैं.

(फोटो साभार: यूट्यूब)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सीबीआई और गुजरात सरकार से सवाल किया कि वह सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ एवं उनके पति जावेद आनंद के अग्रिम जमानत पर सात साल से अधिक समय तक रहने के बाद उन्हें वापस जेल क्यों भेजना चाहती है.

जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा, ‘सवाल यह है कि कब तक आप किसी व्यक्ति को हिरासत में रखेंगे. अग्रिम जमानत दिए सात साल गुजर चुके हैं. आप उन्हें (तीस्ता को) वापस हिरासत में भेजना चाहते हैं.’

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और गुजरात सरकार की ओर से पेश हुए अधिवक्ता रजत नायर ने कहा कि मामले के सिलसिले में अदालत के समक्ष कुछ अतिरिक्त सामग्री प्रस्तुत करने की जरूरत पड़ेगी, इसलिए चार हफ्ते का वक्त दिया जा सकता है.

सीतलवाड़ और उनके पति की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अधिवक्ता अपर्णा भट ने कहा कि सीबीआई के अपील करने से जुड़ी एक कार्यवाही में अग्रिम जमानत दी गई थी. इसके बाद आरोपपत्र दाखिल किया गया था और उसके बाद सीतलवाड़ को नियमित जमानत दी गई थी.

उन्होंने कहा कि चूंकि एक नियमित जमानत दी गई है, ऐसे में अग्रिम जमानत के खिलाफ जांच एजेंसी की अपील का कोई मतलब नहीं रह जाता है.

नायर ने कहा कि यह एक मामले में हुआ था, लेकिन सीतलवाड़ के खिलाफ एक से अधिक मामले हैं और अतिरिक्त सामग्री पेश करने के लिए अदालत से चार हफ्तों का वक्त मांगा.

नायर ने कहा, ‘दो न्यायाधीशों की एक पीठ ने इस विषय को एक वृहद पीठ में भेज दिया है और कुछ सवाल उठाए हैं, जिन पर इस अदालत को निर्णय करने की जरूरत है.’

पीठ ने विषय की सुनवाई चार हफ्ते बाद के लिए निर्धारित कर दी.

शीर्ष न्यायालय सीतलवाड़, आनंद, गुजरात पुलिस और सीबीआई द्वारा दायर याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई कर रहा था. ये याचिकाएं दंपति के खिलाफ दर्ज तीन एफआईआर के संबंध में दायर की गई हैं.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, शीर्ष अदालत ने 19 मार्च 2015 को 2002 के दंगों में तबाह हुई अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसाइटी में एक संग्रहालय के लिए जारी फंड के कथित गबन के मामले में सीतलवाड़ और उनके पति की अग्रिम जमानत याचिका को एक बड़ी पीठ के पास भेज दिया था और गिरफ्तारी के खिलाफ उन्हें संरक्षण देने के अपने अंतरिम आदेश की अवधि बढ़ा दी थी.

2014 में, गुलबर्ग हाउसिंग सोसाइटी में ‘म्यूज़ियम ऑफ रेजिस्टेंस’ के निर्माण से संबंधित एक मामले में धोखाधड़ी, विश्वासघात और आईटी अधिनियम के तहत गुजरात की अपराध शाखा के डीसीपी के पास उनके खिलाफ एक एफआईआर दर्ज की गई थी.

तीस्ता सीतलवाड़ और उनके पति, जो दो ट्रस्टों- सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) और सबरंग ट्रस्ट- के ट्रस्टी थे, पर फिरोज खान सईद खान पठान नाम के शख्स ने गुलबर्ग सोसायटी के दंगा प्रभावित लोगों की दुर्दशा दिखाकर भारत और विदेश के कुछ दानदाताओं से चंदे के रूप में कुछ करोड़ रुपये जुटाने का आरोप लगाया था.

शीर्ष अदालत ने 19 मार्च 2015 के अपने आदेश में उल्लेख किया था कि पठान ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि दंपति ने साजिश रची और हाउसिंग सोसाइटी के निवासियों से वादा किया कि वे 2002 के दंगा पीड़ितों के सम्मान में एक संग्रहालय का निर्माण करेंगे. अदालत ने यह भी उल्लेख किया था कि दंपति ने निवासियों से हाउसिंग सोसाइटी में अपनी संपत्तियों को न बेचने के लिए कहा था.

पठान ने आरोप लगाया कि दंपति ने वादे के मुताबिक न तो संग्रहालय बनाया और न ही गुलबर्ग सोसाइटी के सदस्यों के हित में राशि खर्च की और न ही उन्होंने पीड़ितों को उनकी संपत्तियों की बिक्री के संबंध में किए गए आश्वासन को पूरा किया.

दूसरे मामले में, सीतलवाड़ और उनके पति को विदेशी धन के दुरुपयोग के आरोप में अग्रिम जमानत दिए जाने के खिलाफ सीबीआई ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है.

जांच एजेंसी ने आरोप लगाया कि दंपति द्वारा बनाई गई एक कंपनी- सबरंग कम्युनिकेशन एंड पब्लिशिंग प्राइवेट लिमिटेड (एससीपीपीएल)- ने कथित तौर पर केंद्र की अनिवार्य स्वीकृति के बिना अमेरिका के फोर्ड फाउंडेशन से 1.8 करोड़ रुपये प्राप्त किए थे.

एजेंसी ने उनकी अग्रिम जमानत को रद्द करने की मांग करते हुए दावा किया है कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने प्रथमदृष्टया यह पता चलने के बाद कि विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) के प्रावधानों का उल्लंघन किया गया है, उन्हें राहत देने में गलती की है.

तीसरे मामले में, अहमदाबाद पुलिस ने बॉम्बे हाई कोर्ट के 5 अप्रैल 2018 के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया था, जिसके द्वारा दंपति को 31 मार्च 2018 को दर्ज एफआईआर में गिरफ्तारी से संरक्षण दिया गया था, मामला वर्ष 2010 से 2013 के बीच उनके एनजीओ सबरंग ट्रस्ट द्वारा केंद्र सरकार के 1.4 करोड़ रुपये के फंड की कथित धोखाधड़ी से संबंधित है.

गुजरात पुलिस का दावा है कि 2002 के गोधरा दंगों के बाद दंगा पीड़ितों की मदद के लिए महाराष्ट्र और गुजरात के कुछ जिलों में शुरू की गई एक परियोजना के लिए धन प्राप्त किया गया था, लेकिन इसका गलत इस्तेमाल किया गया या अन्य उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया गया.

दंपति ने इन सभी एफआईआर में लगाए गए सभी आरोपों से इनकार किया है. इनकी जांच गुजरात पुलिस और सीबीआई कर रही है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)