गुजरात दंगों के संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका से संबंधित बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को लेकर भारत में चल रहे विवाद के बीच जर्मनी के विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा है कि भारत का संविधान मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता को स्थापित करता है. इसमें प्रेस और भाषण की स्वतंत्रता भी शामिल हैं. जर्मनी पूरी दुनिया में इन मूल्यों के लिए खड़ा है.
नई दिल्ली: जर्मनी के विदेश मंत्रालय ने शुक्रवार (27 जनवरी) को साल 2002 के गुजरात दंगों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका पर आधारित बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री पर प्रतिबंध लगाने के भारत के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि प्रेस और भाषण की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है.
भारत में डॉक्यूमेंट्री को लेकर चल रहे विवाद के बारे में बात करते हुए विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने जर्मन में एक नियमित प्रेस वार्ता के दौरान कहा, ‘(भारत का) संविधान मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता को स्थापित करता है. इसमें प्रेस और भाषण की स्वतंत्रता भी शामिल हैं. जर्मनी इन मूल्यों को हमारे भारतीय साझेदारों के साथ साझा करता है. जर्मनी पूरी दुनिया में इन मूल्यों के लिए खड़ा है और निश्चित रूप से हम नियमित रूप से भारत के साथ इस पर चर्चा करते हैं.’
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German foreign ministry speaks out on India's crackdown on BBC Modi documentary– Indian constitution enshrines fundamental rights and freedoms
– Freedom of press and speech among those
– Germany shares these values
– Discusses regularly with Indian govt pic.twitter.com/0MKQkQlqqL— Richard Walker (@rbsw) January 27, 2023
इससे पहले बीते 26 जनवरी को अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्रिंस ने भी इस विवाद पर टिप्पणी की थी. उन्होंने कहा था कि यह प्रेस की स्वतंत्रता का मामला है, जिसमें कहा गया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे लोकतांत्रिक सिद्धांतों के महत्व को उजागर करने और दुनिया भर के साथ-साथ भारत में भी इस पर ध्यान दिलाने का यह सही समय है.
समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार, जब एक रिपोर्टर द्वारा इस मुद्दे के बारे में उनसे पूछा तो ने कहा, ‘हम दुनिया भर में एक स्वतंत्र प्रेस के महत्व का समर्थन करते हैं. हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता जैसे लोकतांत्रिक सिद्धांतों के महत्व को मानव अधिकारों के रूप में उजागर करना जारी रखते हैं, जो हमारे लोकतंत्र को मजबूत करने में योगदान करते हैं. यह एक बिंदु है, जिसे हम दुनिया भर में अपने रिश्तों में बनाते हैं. यह निश्चित रूप से एक बिंदु है, जिसे हमने भारत में भी बनाया है.’
मालूम हो कि बीबीसी की ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ डॉक्यूमेंट्री में बताया गया है कि ब्रिटेन सरकार द्वारा करवाई गई गुजरात दंगों की जांच (जो अब तक अप्रकाशित रही है) में नरेंद्र मोदी को सीधे तौर पर हिंसा के लिए जिम्मेदार पाया गया था.
साथ ही इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और देश के मुसलमानों के बीच तनाव की भी बात कही गई है. यह 2002 के फरवरी और मार्च महीनों में गुजरात में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा में उनकी भूमिका के संबंध में दावों की पड़ताल भी करती है, जिसमें एक हजार से अधिक लोगों की जान चली गई थी.
दो भागों की डॉक्यूमेंट्री का दूसरा एपिसोड, केंद्र में मोदी के सत्ता में आने के बाद – विशेष तौर पर 2019 में उनके दोबारा सत्ता में आने के बाद – मुसलमानों के खिलाफ हिंसा और उनकी सरकार द्वारा लाए गए भेदभावपूर्ण कानूनों की बात करता है.
इस संबंध में नेशनल अलायंस ऑफ जर्नलिस्ट्स, दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स और आंध्र प्रदेश वर्किंग जर्नलिस्ट फेडरेशन जैसे संगठनों की ओर से कहा गया था कि वे विभिन्न विश्वविद्यालयों में बीबीसी डॉक्यूमेंट्री को प्रसारित करने की कोशिश करने के लिए छात्रों और उनकी यूनियनों पर बढ़ते हमलों से भी बहुत व्यथित हैं. इनके अनुसार, यह प्रेस के अधिकारों और स्वतंत्रता पर हमलों की निरंतरता का हिस्सा है.
केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने बीते 20 जनवरी को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर और यूट्यूब को ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ नामक डॉक्यूमेंट्री के लिंक ब्लॉक करने का निर्देश दिया था.
इससे पहले विदेश मंत्रालय ने डॉक्यूमेंट्री को ‘दुष्प्रचार का हिस्सा’ बताते हुए खारिज कर कहा था कि इसमें निष्पक्षता का अभाव है तथा यह एक औपनिवेशिक मानसिकता को दर्शाता है.
बीते 20 जनवरी को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने बीबीसी की इस डॉक्यूमेंट्री पर संवाददाताओं के सवालों का जवाब देते हुए कहा था कि यह एक ‘गलत आख्यान’ को आगे बढ़ाने के लिए दुष्प्रचार का एक हिस्सा है.
बहरहाल, बीबीसी अपनी डॉक्यूमेंट्री के साथ खड़ा हुआ है और उसका कहना है कि यह काफी शोध करने के बाद बनाई गई है, जिसमें महत्वपूर्ण मुद्दों को निष्पक्षता से उजागर करने की कोशिश की गई है. चैनल ने यह भी कहा कि उसने भारत सरकार से इस पर जवाब मांगा था, लेकिन सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया.
इस बीच देश भर में विपक्षी दल और छात्र समूह डॉक्यूमेंट्री को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे कुछ मामलों में पुलिस के साथ झड़पें भी हुई हैं.
बीते 24 जनवरी को दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्रों ने आरोप लगाया था कि जब उन्होंने परिसर में डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग करने की कोशिश की तो बिजली काट दी गई. इसके बाद जेएनयू के छात्रों ने अपने लैपटॉप और मोबाइल फोन पर डॉक्यूमेंट्री देखी.
बीते 25 जनवरी को दिल्ली के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया इस्लामिया में बीबीसी डॉक्यूमेंट्री दिखाने की योजना को लेकर एक वामपंथी समूह के सदस्यों सहित कई छात्रों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया था और कक्षाएं निलंबित कर दी गई थीं.
वाम समर्थित छात्र संगठन स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) ने दावा किया था कि दिल्ली पुलिस ने 70 से अधिक ऐसे छात्रों को हिरासत में लिया है, जो डॉक्यूमेंट्री को दिखाने की घोषणा के बाद चार छात्रों को हिरासत में लिए जाने का विरोध करने के लिए में जामिया में एकत्र हुए थे.
बीते 27 जनवरी को छात्र संगठनों के डॉक्यूमेंट्री के प्रदर्शन के आह्वान के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के नॉर्थ कैंपस में भारी पुलिस बल तैनात किया गया था. पुलिस ने नॉर्थ कैंपस में बड़ी संख्या में लोगों के जमा होने पर भी रोक लगा थी. विश्वविद्यालय में पुलिस ने 24 लोगों को हिरासत में लिया और कैंपस में धारा 144 लागू कर दी थी.
कुछ छात्रों ने आरोप लगाया था कि दिल्ली पुलिस ने आंबेडकर विश्वविद्यालय परिसर में घुसकर एसएफआई के कार्यकर्ताओं को डॉक्यूमेंट्री के प्रदर्शन से रोका. हालांकि छात्रों ने फोन और लैपटॉप पर डॉक्यूमेंट्री देखने की वैकल्पिक व्यवस्था की थी.
देश के विभिन्न राज्यों के कैंपसों में भी डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग को लेकर विवाद जारी है.
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