हाईकोर्ट जज के वेतन-भत्ते का आरटीआई के तहत खुलासा नहीं किया जा सकता: गुजरात हाईकोर्ट

याचिकाकर्ता ने सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत गुजरात हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश की नियुक्ति और वेतन-भत्तों से संबंधित जानकारी मांगी थी. गुजरात सूचना आयोग ने जानकारी को उपलब्ध कराए जाने योग्य माना था, लेकिन हाईकोर्ट ने आयोग के फैसले को रद्द कर दिया.

गुजरात हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

याचिकाकर्ता ने सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत गुजरात हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश की नियुक्ति और वेतन-भत्तों से संबंधित जानकारी मांगी थी. गुजरात सूचना आयोग ने जानकारी को उपलब्ध कराए जाने योग्य माना था, लेकिन हाईकोर्ट ने आयोग के फैसले को रद्द कर दिया.

गुजरात हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: गुजरात हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत हाईकोर्ट के न्यायाधीश के वेतन और भत्ते के बारे में जानकारी का खुलासा नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यह अधिनियम के तहत ‘व्यक्तिगत जानकारी’ की श्रेणी में आता है.

ऐसा करके हाईकोर्ट ने गुजरात सूचना आयोग के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें संबंधित अधिकारियों को याचिकाकर्ताओं को जानकारी उपलब्ध कराए जाने के निर्देश दिए गए थे.

याचिकाकर्ता चंद्रवदन ध्रुव ने 14 जून 2016 को आरटीआई अधिनियम के तहत दायर एक आवेदन में गुजरात हाईकोर्ट में एक अतिरिक्त न्यायाधीश की नियुक्ति, नियुक्ति से पहले उनके कर्तव्य और पद पर रहते हुए उनके कर्तव्यों से संबंधित अन्य पहलुओं और बाद में निलंबन के संबंध में जानकारी मांगी थी.

उनके द्वारा मांगे गए विवरण में अतिरिक्त न्यायाधीश के वेतन और भत्ते भी शामिल थे.

हालांकि, गुजरात हाईकोर्ट के जन सूचना अधिकारी (पीआईओ) ने यह कहते हुए इस सूचना को देने से इनकार कर दिया था कि यह व्यक्तिगत है और आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(जे) के तहत आती है.

गौरतलब है कि आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(जे) व्यक्तिगत जानकारी को देने से छूट प्रदान करती है.

ध्रुव ने तब अपीलीय प्राधिकारी से अपील की थी, वहां भी इसी आधार पर अपील खारिज कर दी गई थी. इसके बाद उन्होंने उक्त विवरण के लिए गुजरात सूचना आयोग के पास दूसरी अपील दायर की. आयोग ने कहा कि आरटीआई कानून की धारा 4(1)(बी)(एक्स) के तहत सूचना उपलब्ध कराई जानी चाहिए.

इस धारा के अनुसार, सार्वजनिक प्राधिकरणों – अधिकारियों और कर्मचारियों- द्वारा प्राप्त मासिक पारिश्रमिक अधिनियम के दायरे में आता है.

हालांकि, गुजरात हाईकोर्ट प्रशासन ने आयोग के आदेश को यह कहते हुए चुनौती दी कि न्यायाधीशों के वेतन और भत्तों को ‘अधिकारियों और कर्मचारियों में से एक के रूप में नहीं देखा जा सकता है’ और सूचना आयोग का निर्देश गलत था.

हाईकोर्ट प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट के उन मामलों का भी हवाला दिया, जिसमें सूचना आयोग ने स्वयं ही आरटीआई अधिनियम के तहत धारा 4 के दायरे में आने के बावजूद एक कर्मचारी के वेतन का विवरण देने से इनकार कर दिया था क्योंकि सूचना – योग्यता और प्रदर्शन समेत – व्यक्तिगत थी और इसलिए सुरक्षा की हकदार थी.

गुजरात हाईकोर्ट के जस्टिस बीरेन वैष्णव ने इन मामलों पर गौर किया और फैसला सुनाया कि न्यायाधीश के वेतन और भत्ते का खुलासा करने की अनुमति देने के राज्य सूचना आयोग के आदेश को रद्द किया जाता है.

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