वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 497 को रद्द कर दिया था, जिसके बाद एडल्ट्री अपराध की श्रेणी से बाहर हो गया था. हालांकि, एक याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा है कि उक्त आदेश में सशस्त्र बल अधिनियम के प्रावधानों के प्रभाव पर विचार नहीं किया गया था. यदि कमज़ोर नैतिकता वाली सेना होगी तो सैन्य अनुशासन प्रभावित होगा.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि सशस्त्र बल एडल्ट्री (व्यभिचार) के मामले में अपने अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं और इसे (एडल्ट्री) अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाला वर्ष 2018 का फैसला, सेना में अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करने के आड़े नहीं आएगा.
शीर्ष अदालत ने कहा कि कमजोर नैतिकता वाली सेना होने पर सैन्य अनुशासन प्रभावित होगा. सुप्रीम कोर्ट के 2018 के ऐतिहासिक फैसले को स्पष्ट करते हुए जस्टिस केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा था कि वह फैसला सशस्त्र बल अधिनियमों के प्रावधानों से संबंधित नहीं था.
पीठ ने कहा कि इसके 2018 के फैसले में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 497 को रद्द करने का सशस्त्र बल अधिनियम के प्रावधानों से कोई संबंध नहीं था. पीठ ने केंद्र सरकार द्वारा दायर एक आवेदन में यह आदेश पारित किया. गौरतलब है कि 2019 में तीन जजों की पीठ ने आवेदन को संविधान पीठ के समक्ष भेज दिया था, क्योंकि 2018 के जोसेफ शाइन के फैसले को पांच न्यायाधीशों की पीठ ने सुनाया था.
शीर्ष अदालत ने 2018 में 158 साल पुराने एडल्ट्री रोधी कानून को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि यह असंवैधानिक है, क्योंकि यह महिलाओं को ‘पति की संपत्ति’ के रूप में देखता है.
पीठ में जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस सीटी रविकुमार भी शामिल थे. पीठ ने कहा था कि ऐसा नहीं है कि इस अदालत ने एडल्ट्री को मंजूरी दी है.
मंगलवार के आदेश में पीठ ने कहा, ‘इस अदालत ने सेना अधिनियम की धारा 45 व 63 और अन्य अधिनियमों के संबंधित प्रावधानों पर फैसला नहीं सुनाया था. हम केवल इस रुख को स्पष्ट कर रहे हैं और अर्जी (केंद्र द्वारा दायर) का निपटारा करते हैं.’
पीठ ने कहा, ‘यदि कमजोर नैतिकता वाली सेना होगी तो अनुशासन का क्या होगा. सैन्य अनुशासन प्रभावित होगा.’
सुनवाई शुरू होने पर केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) माधवी दीवान ने 2018 के फैसले पर स्पष्टीकरण का अनुरोध किया.
रक्षा मंत्रालय ने 27 सितंबर 2018 के फैसले से सशस्त्र बलों को छूट देने के लिए शीर्ष अदालत का रुख किया था, जिसमें कहा गया था कि यह उन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई में बाधा बन सकता है, जो इस तरह के कार्यों में लिप्त हैं और सेवाओं के भीतर ‘अस्थिरता’ पैदा कर सकते हैं.
मंत्रालय की अर्जी में कहा गया, ‘उपरोक्त (2018 के) फैसले के मद्देनजर, चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में अपने परिवारों से दूर सेवा दे रहे सैन्यकर्मियों के मन में हमेशा अप्रिय गतिविधियों में परिवार के शामिल होने के बारे में चिंता रहेगी.’
दीवान ने कहा कि वह दिखाना चाहती हैं कि यह कैसे सशस्त्र बलों की संचालन दक्षता और तैयारी को प्रभावित कर सकता है.
उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि यह संदेश गया कि सशस्त्र बलों में कर्मचारियों द्वारा विवाहेत्तर संबंध एक मान्य आचरण है. उन्होंने कहा, ‘हमारे यहां सशस्त्र बलों में कोर्ट मार्शल, स्वतंत्र आपराधिक न्याय प्रणाली क्यों है, क्योंकि हमें जल्दी से कार्य करने की आवश्यकता है. ये अनुशासन के मामले हैं. जब पूरे देश में मामले लंबित हैं, तो यह इकाइयों के सामंजस्य को भंग कर रहा है. यह अनिश्चितता पैदा करता है.’
लाइव लॉ के मुताबिक, अदालत के मंगलवार के आदेश में कहा गया है कि संविधान का अनुच्छेद 33 संसद द्वारा निर्धारित मौलिक अधिकारों के लागू होने से छूट की अनुमति देता है.
आदेश में कहा गया है, ‘(2018 में) इस अदालत का फैसला केवल आईपीसी की धारा 497 और सीआरपीसी की धारा 198(2) की वैधता से संबंधित था. इस मामले में इस अदालत के पास सशस्त्र बल अधिनियम के प्रावधानों के प्रभाव पर विचार करने का कोई प्रयोजन नहीं था. जैसा कि हम देखते हैं, ऐसा नहीं है मानो इस अदालत ने एडल्ट्री को मंजूरी दे दी है. इस अदालत ने पाया था कि एडल्ट्री एक आधुनिक समस्या हो सकती है. इस अदालत ने यह भी कहा था कि यह विवाह विच्छेद के लिए एक आधार बना रहेगा.’
सुनवाई के दौरान एएसजी दीवान ने पीठ को सूचित किया कि सशस्त्र बल न्यायाधिकरण द्वारा जोसेफ शाइन फैसले का हवाला देकर अनुचित यौन आचरण के लिए कर्मचारियों के खिलाफ शुरू की गई कुछ अनुशासनात्मक कार्यवाही को रद्द करने के बाद आवेदन दायर किया गया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)