‘इंडिया आफ्टर गांधी’ के तीसरे संस्करण के विमोचन के अवसर पर इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने कहा कि उन्हें हैरानी है कि भाजपा साथ मिलकर काम करने वाले महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल को कैसे एक-दूसरे का प्रतिद्वंद्वी दर्शाने में कामयाब रही है.
नई दिल्ली: इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने दावा किया है कि सुभाष चंद्र बोस अहिंसा को छोड़कर अधिकतर मुद्दों पर महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू से सहमत थे तथा उन्हें यह जानकर ‘शर्मिंदगी और पीड़ा’ होती कि उनका इस्तेमाल इन दोनों नेताओं को कमतर दिखाने के लिए किया जा रहा है.
‘इंडिया आफ्टर गांधी’ के तीसरे संस्करण के विमोचन के अवसर पर गुहा ने मंगलवार को अपने संबोधन में कहा कि यह बोस ही थे, जिन्होंने गांधी को ‘राष्ट्रपिता’ कहा था.
उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया कि, ‘वे (भाजपा) गांधी, बोस, नेहरू और पटेल को कैसे एक-दूसरे का प्रतिद्वंद्वी दर्शाने में कामयाब रहे, जिन्होंने साथ मिलकर काम किया था.’
गांधी के जीवनी लेखक गुहा ने कहा, ‘अहिंसा को छोड़कर ज्यादातर चीजों पर बोस, गांधी और नेहरू से सहमत थे. यह जो कुछ भी हो रहा है कि बोस का इस्तेमाल गांधी और नेहरू को कमतर दिखाने के लिए किया जा रहा है, उससे चकित, शर्मिंदा और दुखी होने वाले वह (बोस) पहले व्यक्ति होते.’
उन्होंने जिक्र किया कि बोस ने आजाद हिंद फौज की ब्रिगेड का नाम ‘गांधी, नेहरू और आजाद (मौलाना आजाद)’ रखा तथा 1945 में बोस की मृत्यु की खबर के बाद गांधी ने कोलकाता में अपने भाषण में बोस की देशभक्ति को सलाम किया था.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस अध्यक्ष पद के सवाल पर भी जब बोस ने इस्तीफा दे दिया… उन्होंने कहा कि अगर मुझे भारत के सबसे महान व्यक्ति- जो वे गांधी को मानते थे- का भरोसा नहीं मिला… मैं अध्यक्ष नहीं रहूंगा.’
बोस, जिन्हें 1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था, ने 1939 में अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.
गांधी के ‘भ्रमित’ आलोचकों और यह दावा करने वालों कि हिंसा से भारत को आज़ादी मिली के बारे में गुहा ने कहा, ‘यह जानना महत्वपूर्ण है कि एशिया और अफ्रीका का हर देश जिसने हिंसा के माध्यम से स्वतंत्रता हासिल की, वहां आज ‘तानाशाही’ है.’
उन्होने कहा, ‘मुझे लगता है कि बोस एक महान देशभक्त हैं, लेकिन यह विचार कि वह कुछ मायनों में गांधी से बड़े थे, गांधी के विकल्प थे… मुझे लगता है कि इसके लिए पहले बोस ने गांधी के बारे में जो कहा, उसे पढ़ना चाहिए.’
कश्मीर मसले पर गुहा ने कहा कि विपक्ष की ‘क्षुद्र दलगत राजनीति’ के कारण भारत इसके समाधान के करीब आने के दो ‘असाधारण अवसरों’ से चूक गया- एक अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकल में और दूसरा मनमोहन सिंह के.
उन्होंने जोड़ा कि परिपक्व लोकतंत्र में महत्वपूर्ण विदेश नीति के मामले में दो दलों को साथ आ जाना चाहिए, लेकिन 2003 में वाजपेयी सरकार के दौरान और 2007 में जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे, विपक्ष के रूप में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही ऐसा करने में विफल रहे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)