मैला ढोने की प्रथा को ख़त्म करने की दिशा में काम करने वाले संगठन ‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ की ओर से कहा गया है कि इस बार के बजट में सफाई कर्मचारियों की मुक्ति, पुनर्वास और कल्याण के लिए एक भी शब्द नहीं कहा गया और न ही इस मद में धन का आवंटन किया गया है. यह हमारे समाज के साथ धोखा है.
नई दिल्ली: केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा बुधवार को की गई बजट घोषणाओं में मशीन से सीवर सफाई करने की बात कही गई है. उन्होंने कहा था कि सफाई को ‘मैनहोल टू मशीनहोल’ मोड में लाया जाएगा. अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री ने कहा था कि सीवर में गैस से होने वाली मौतों को रोकने के लिए शहरी स्वच्छता में मशीनों के उपयोग पर ध्यान दिया जाएगा.
वित्त मंत्री की इस घोषणा पर मैला ढोने की प्रथा को खत्म करने की दिशा में काम करने वाले संगठन ‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ की ओर से कहा गया है कि सीतारमण का दावा ‘मैनहोल टू मशीनहोल’ शब्दों की कलाबाजी भर है. इस दावे के जरिये मैला ढोने की प्रथा के खात्मे और सीवर/सेप्टिक टैंक की सफाई को मशीनों से करने का जो ढिंढोरा पीटा गया है, उसमें न तो कोई जवाबदेही है और न ही कोई पारदर्शिता.
संगठन की ओर से से जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि हमारा मानना है कि यह बजट सफाई कर्मचारी और गरीब विरोधी है. इसमें सफाई कर्मचारियों की मुक्ति, पुनर्वास और कल्याण के लिए एक भी शब्द नहीं कहा गया और न ही इस मद में विशेष रूप से धन का आवंटन किया गया है.
उनके अनुसार, यह दुख और जातिगत उत्पीड़न का उदाहरण है कि जो भारतीय नागरिक पीढ़ियों से मैला ढोकर अपने पुनर्वास का इंतजार कर रहे हैं, उनके बारे में बजट में कुछ नहीं कहा गया. यह हमारे समाज के साथ धोखा है.
संगठन के राष्ट्रीय संयोजक बेजवाड़ा विल्सन ने कहा, ‘यह एक मैकेनिकल बजट है, जिसमें मानवीय दृष्टिकोण का पूरी तरह से अभाव है. देश में सीवर टैंक में हुईं हमारे समाज के लोगों की ‘हत्याओं’ के बारे में एक शब्द नहीं कहा गया है, जबकि हम पिछले 264 दिनों से लगातार सड़कों पर सीवर सफाई के दौरान हो रहीं मौतों को बंद करने के लिए #StopKillingUs अभियान चलाकर सरकार से इस पर लगाम लगाने की मांग कर रहे हैं.’
उन्होंने कहा, ‘क्या विडंबना है कि 11 मई 2022 से इन ‘हत्याओं’ के खिलाफ यह अभियान चल रहा है और इस दौरान 50 से अधिक भारतीय नागरिकों की जान गटर सफाई के दौरान चली गई. इन हत्याओं के बारे में, उनके परिजनों के बारे में सरकार क्यों चुप है?’
This budget does no good for Safai Karmacharis despite too much noise! #Budget2023 | Press release by Safai Karmachari Andolan pic.twitter.com/K9ukqD0tPi
— Bezwada Wilson (@BezwadaWilson) February 2, 2023
उनके मुताबिक, ‘हमारा मानना है कि इस बजट में मैला ढोने की प्रथा के समूल खात्मे के लिए डेडलाइन की घोषणा और इसके लिए अलग से आवंटन होना चाहिए था. सफाई कर्मचारियों के पुनर्वास, गरिमामय रोजगार और मुक्ति के लिए अलग से राष्ट्रीय पैकेज की घोषणा की जानी चाहिए.’
विज्ञप्ति के अनुसार, सरकार को इस सवाल का जवाब देना चाहिए कि कब वह हमें गटर में ‘मारना’ बंद करेगी. हम याद दिलाना चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में 11 साल पहले हमारी जनहित याचिका पर सुनवाई चलने के बाद 2014 में इन मौतों को खत्म करने और मैला ढोने की प्रथा के खात्मे का फैसला आया था. इससे पहले वर्ष 2013 में संसद ने गटर में मौतों और इस प्रथा के खात्मे के लिए नया कानून भी पारित किया था. इसके बावजूद 2014 से लेकर अभी तक सरकार ने इस दिशा में कुछ नहीं किया है. गटर में मौतें लगातार जारी हैं.
संगठन की ओर से कहा गया कि बजट के समय अमृतकाल का जिक्र हो रहा है, लेकिन आजादी के 75 साल बाद भी देश में हमारा समाज मैला ढोने के दंश और सीवर में मौतों का शिकार हो रहा है. हमें याद है कि स्वच्छ भारत अभियान के समय भी इस प्रथा के खात्मे के दावे किए गए थे. हकीकत में क्या हुआ, हम भुगत रहे हैं. हमें घोषणाएं नहीं, ठोस ब्लूप्रिंट चाहिए.
मालूम हो कि देश में पहली बार 1993 में मैला ढोने की प्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया था. इसके बाद 2013 में कानून बनाकर इस पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था. हालांकि आज भी समाज में मैला ढोने की प्रथा मौजूद है.
मैनुअल स्कैवेंजिंग एक्ट 2013 के तहत किसी भी व्यक्ति को सीवर में भेजना पूरी तरह से प्रतिबंधित है. अगर किसी विषम परिस्थिति में सफाईकर्मी को सीवर के अंदर भेजा जाता है तो इसके लिए 27 तरह के नियमों का पालन करना होता है. हालांकि इन नियमों के लगातार उल्लंघन के चलते आए दिन सीवर सफाई के दौरान श्रमिकों की जान जाती है.
27 मार्च 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने सफाई कर्मचारी आंदोलन बनाम भारत सरकार मामले में आदेश दिया था कि साल 1993 से सीवरेज कार्य (मैनहोल, सेप्टिक टैंक) में मरने वाले सभी व्यक्तियों के परिवारों की पहचान करें और उनके आधार पर परिवार के सदस्यों को 10-10 लाख रुपये का मुआवजा प्रदान किया जाए.