केंद्रीय क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्यसभा को बताया कि कुल नियुक्तियों में सामान्य श्रेणी के न्यायाधीशों की संख्या 77 प्रतिशत से अधिक है. उन्होंने बताया कि इनमें से 58 न्यायाधीश ओबीसी और 19 अनुसूचित जाति से हैं. अनुसूचित जनजाति से केवल छह और अल्पसंख्यक समुदाय से 27 न्यायाधीश हैं. नियुक्तियों में 84 महिला न्यायाधीश भी शामिल हैं.
नई दिल्ली: केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने बृहस्पतिवार को राज्यसभा को बताया कि 2018 से अब तक देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में नियुक्त कुल 554 न्यायाधीशों में से 430 सामान्य श्रेणी के हैं. उन्होंने आगे कहा कि 58 न्यायाधीश अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और 19 अनुसूचित जाति (एससी) से हैं.
उन्होंने बताया कि अनुसूचित जनजाति (एसटी) से केवल छह और अल्पसंख्यक समुदाय से 27 न्यायाधीश हैं. उन्होंने कहा कि इन नियुक्तियों में 84 महिला न्यायाधीश भी शामिल हैं. कानून मंत्री ने बताया कि कुल नियुक्तियों में सामान्य श्रेणी के न्यायाधीशों की संख्या 77 प्रतिशत से अधिक है.
रिजिजू ने भाजपा सांसद सुशील मोदी के एक सवाल का लिखित जवाब दिया.
यह उल्लेख करते हुए कि सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति को निर्देशित करने वाले संवैधानिक प्रावधान किसी भी जाति या वर्ग विशेष के लिए आरक्षण प्रदान नहीं करते हैं, रिजिजू ने कहा कि सरकार सुप्रीम कोर्ट में सामाजिक विविधता सुनिश्चित करने का प्रयास करती रही है.
उन्होंने अपने जवाब में कहा, ‘सरकार सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति में सामाजिक विविधता लाने के लिए प्रतिबद्ध है और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से अनुरोध करती रही है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए प्रस्ताव भेजते समय सामाजिक विविधता सुनिश्चित करने के वास्ते, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक समुदाय और महिलाओं में से उपयुक्त उम्मीदवारों के नाम पर उचित विचार किया जाए.’
उन्होंने बताया कि 2018 से सुप्रीम कोर्ट में कुल 30 न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई है. वर्ष 2018 में आठ, वर्ष 2019 में 10, वर्ष 2020 में एक भी नहीं, वर्ष 2021 में नौ और वर्ष 2022 में तीन न्यायाधीश नियुक्त किए गए थे.
उन्होंने कहा कि देश भर के जिला न्यायाधीशों में से 612 अनुसूचित जाति से, 204 अनुसूचित जनजाति से, 1,329 अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से हैं, जबकि 1,406 महिलाएं हैं.
उन्होंने कहा कि सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के सभी जिला और अधीनस्थ अदालतों में, 1,270 अनुसूचित जाति से संबंधित हैं, 465 अनुसूचित जनजाति से, 2,055 अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से हैं, जबकि 3,684 महिलाएं हैं.
उनके अनुसार, सिविल जज (सीनियर डिवीजन) में से 710 अनुसूचित जाति, 278 अनुसूचित जनजाति, 1,251 ओबीसी से और 1,574 महिलाएं हैं.
मालूम हो कि बीते जनवरी महीने में केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्रालय ने यह रेखांकित करते हुए कि अदालत की पीठ में विविधता सुनिश्चित करने का दायित्व न्यायपालिका पर है, कानून और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति को बताया था कि पिछले पांच वर्षों में नियुक्त किए गए उच्च न्यायालयों के कुल न्यायाधीशों में से 79 प्रतिशत सामान्य श्रेणी (कथित उच्च जाति) से थे.
मंत्रालय के न्याय विभाग ने भाजपा सांसद सुशील मोदी की अध्यक्षता वाली समिति के समक्ष इस संबंध में एक प्रेजेंटेशन भी दिया था.
आंकड़े बताते हैं कि 2018 से 19 दिसंबर, 2022 तक विभिन्न उच्च न्यायालयों में कुल 537 न्यायाधीशों को नियुक्त किया गया था, जिनमें से 79 प्रतिशत सामान्य वर्ग, 11 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और 2.6 प्रतिशत अल्पसंख्यक वर्ग से थे. अनुसूचित जातियों और जनजातियों की हिस्सेदारी क्रमश: 2.8 प्रतिशत और 1.3 प्रतिशत थी.
बताया गया है कि मंत्रालय 20 जजों की सामाजिक पृष्ठभूमि को लेकर निश्चित नहीं था.
2018 में मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित लोगों को उनकी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के विवरण के साथ एक फॉर्म भरने के लिए कहा था. मार्च 2022 में राज्यसभा में दिए गए एक जवाब में केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा था कि ‘सरकार उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति में सामाजिक विविधता के लिए प्रतिबद्ध है.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)