आरएसएस से संबद्ध स्वदेशी जागरण मंच ने वित्त वर्ष 2023-24 के लिए पेश बजट में की गईं कई घोषणाओं पर असंतोष व्यक्त किया है और कहा है कि आज देश चीन से रिकॉर्ड तोड़ आयात और बढ़ते व्यापार घाटे से गुज़र रहा है, लेकिन वित्त मंत्री का ध्यान इस ओर नहीं गया.
नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध स्वदेशी जागरण मंच (एसजेएम) ने वित्त वर्ष 2023-24 के केंद्रीय बजट में की गईं कई घोषणाओं पर असंतोष व्यक्त किया है, जिनमें चीन से रिकॉर्ड तोड़ आयात और बढ़ते व्यापार घाटे के इस दौर में विनिर्माण क्षेत्र के लिए ‘अपर्याप्त’ सहयोग उपलब्ध कराने की बात भी शामिल है.
द हिंदू के मुताबिक, स्वदेशी जागरण मंच के सह-संयोजक अश्विनी महाजन ने कहा कि इस बजट में मैन्युफैक्चरिंग पर जोर देने की उम्मीद की गई थी. हमारा संगठन पर्याप्त प्रयासों की कमी पर अपना असंतोष व्यक्त करता है, जिसमें उत्पादों पर टैरिफ की बढ़ोतरी शामिल है.
उन्होंने कहा, ‘आज देश चीन से अभूतपूर्व आयात और व्यापार घाटे से गुजर रहा है, लेकिन वित्त मंत्री का ध्यान इस ओर नहीं जा सका.’
बजट में सरकारी व्यय पर टिप्पणी करते हुए महाजन ने कहा कि 2022-23 के संशोधित अनुमानों के अनुसार कुल व्यय लगभग 42 लाख करोड़ रुपये होने की उम्मीद है. इसकी तुलना में बजट अनुमानों में इस वर्ष लगभग 45 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है, जो सरकारी व्यय में केवल 7 फीसदी की वृद्धि दर्शाता है.
उन्होंने कहा, ‘शायद राजकोषीय घाटे को 5.9 फीसदी तक सीमित करने के उद्देश्य से व्यय सीमित कर दिए गए हैं.’
स्वदेशी जागरण मंच ने बजट में बुनियादी ढांचे, ग्रामीण विकास, हरित विकास, शिक्षा, पर्यटन और डिजिटलीकरण के लिए आवंटन पर प्रसन्नता व्यक्त की.
साथ ही महाजन ने कहा कि उनका संगठन चीन से आयात पर रोक लगाकर देश में विनिर्माण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पर्याप्त अतिरिक्त क्षमता वाले उत्पादों पर शुल्क बढ़ाने का आग्रह करता है.
इससे पहले स्वदेशी जागरण मंच ने कहा था कि नई आयकर व्यवस्था से रिटर्न भरने और कर का बोझ कम होने के मामले में करदाताओं को कुछ राहत जरूर मिल सकती है, लेकिन इसका प्रतिकूल असर उनकी बचत पर होगा.
महाजन ने कहा था कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी को संसद के समक्ष ‘अमृत काल’ का पहला पूर्ण बजट और मोदी 2.0 सरकार का अंतिम पूर्ण बजट पेश किया था और उम्मीद के मुताबिक आयकर का बोझ ( नई कर व्यवस्था में) मध्यम वर्ग और ‘अति-अमीर’ के लिए कम कर दिया गया है, जिसका 37,000 करोड़ रुपये के कुल राजस्व पर प्रभाव पड़ेगा.
संगठन ने केंद्र से अनुरोध किया था कि नई कर व्यवस्था में कुछ इस तरह का बदलाव किया जाए, जिससे मध्य वर्ग बचत करने को प्रेरित हो.
मालूम हो कि आरएसएस से ही जुड़े भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने भी बजट के कुछ बिंदुओं पर निराशा व्यक्त की थी.
बीएमएस ने गुरुवार (2 फरवरी) को एक बयान में कहा था, ‘बजट ने ईपीएस (कर्मचारी पेंशन योजना) पेंशनरों के लिए निराशा ला दी है, जिन्हें न्यूनतम पेंशन के रूप में केवल 1,000 रुपये मिल रहे हैं, क्योंकि पिछले तीन वर्षों से देश भर में वे आंदोलन किए जा रहे हैं और पेंशनभोगी बजट से अधिक अनुकूल कार्यों की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन बजट उन्हें प्रतिबिंबित नहीं कर सका. कम से कम उन्हें आयुष्मान भारत योजना में शामिल किया जा सकता था.’
इसने यह भी कहा था कि बजट आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए निराशाजनक है. बीएमएस ने कहा था, ‘आशा जैसी योजना कार्यकर्ता और लंबे समय तक काम करने के बावजूद आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को मामूली मासिक मानदेय मिल रहा है, वे भी बजट से निराश हैं.’