गुजरात: हाईकोर्ट ने आरटीआई कार्यकर्ता की हत्या के दोषी की उम्रक़ैद की सज़ा रद्द कर ज़मानत दी

आरटीआई के ज़रिये पूर्व भाजपा सांसद दीनू सोलंकी से जुड़ी अवैध खनन गतिविधियों को सामने लाने की कोशिश कर रहे कार्यकर्ता अमित जेठवा को जुलाई 2010 में गुजरात हाईकोर्ट के बाहर गोली मारी गई थी. सीबीआई अदालत ने सात आरोपियों, जिनमें दीनू और उनके भतीजे शिव भी शामिल थे, को दोषी ठहराया था.

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गुजरात हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

आरटीआई के ज़रिये पूर्व भाजपा सांसद दीनू सोलंकी से जुड़ी अवैध खनन गतिविधियों को सामने लाने की कोशिश कर रहे कार्यकर्ता अमित जेठवा को जुलाई 2010 में गुजरात हाईकोर्ट के बाहर गोली मारी गई थी. सीबीआई अदालत ने सात आरोपियों, जिनमें दीनू और उनके भतीजे शिव भी शामिल थे, को दोषी ठहराया था.

गुजरात हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

अहमदाबाद: गुजरात उच्च न्यायालय ने 2010 में सूचना का अधिकार (आरटीआई) कार्यकर्ता अमित जेठवा की हत्या के आरोपी शिव सोलंकी की उम्रकैद की सजा निलंबित कर दी और उन्हें केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के खिलाफ अपील पर सुनवाई लंबित रहने तक जमानत दे दी.

जस्टिस एसएच वोरा और जस्टिस मौना भट्ट की पीठ ने सोमवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पूर्व सांसद दीनू सोलंकी के भतीजे शिव सोलंकी की सजा को निलंबित कर दिया.

दीनू मामले में सात आरोपियों में से एक हैं जिन्हें जुलाई 2010 उच्च न्यायालय परिसर के बाहर जेठवा को गोली मारने के लिए जून 2019 में सीबीआई की अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.

अदालत ने शिव सोलंकी को इस शर्त पर जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया कि वह अपील की सुनवाई के दौरान गुजरात नहीं छोड़ेंगे, अपना पासपोर्ट जमा करेंगे, हर महीने थाने में अपनी उपस्थिति दर्ज कराएंगे और अदालत में अपनी अपील की सुनवाई में शामिल होंगे.

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि प्रथमदृष्टया सीबीआई अदालत द्वारा सोलंकी की दोषसिद्धि ‘त्रुटिपूर्ण है, क्योंकि परिस्थितिजन्य साक्ष्य और दोषसिद्धि की आवश्यकता के संबंध में उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित सभी सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है.’

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ परिस्थितियों को मुकम्मल रूप से देखने पर ऐसी कोई कड़ी नजर नहीं आती जिससे इस निष्कर्ष पर पहुंचा जाए कि अपराध याचिकाकर्ता ने किया था.

अदालत ने कहा कि इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि याचिकाकर्ता को ‘फर्जी तरीके से फंसाया’ गया.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, अदालत ने इस बात पर भी विचार किया कि मामले में इसी तरह के एक अन्य आरोपी (दीनू सोलंकी) पहले से ही सितंबर 2021 में गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा दी गई जमानत पर बाहर हैं और शिव को पहले अस्थायी जमानत/पैरोल/फरलो छुट्टी पर रिहा किया गया था और उनके द्वारा ‘स्वतंत्रता के दुरुपयोग’ की कोई शिकायत किसी पक्ष से नहीं मिली।

अदालत ने यह भी कहा कि अभियोजन का मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर टिका है और दोषसिद्धि का फैसला मुख्य रूप से चार गवाहों के बयान पर टिका है. विशेष रूप से चार गवाहों में से एक राम हाजा नाम के शख्स के बयान में खामियों को ढूंढते हुए पीठ ने दर्ज किया कि विसंगतियां दोष को कमजोर बनाती हैं क्योंकि यह आवेदक (शिव) के खिलाफ परिस्थितियों की श्रृंखला के आधार पर संदेह पैदा करती है, विशेष रूप से साजिश रचने की सिद्धांत को लेकर.

उच्च न्यायालय ने सितंबर 2021 में मुख्य आरोपी और भाजपा के पूर्व सांसद दीनू सोलंकी की 7 जून, 2019 को सीबीआई अदालत द्वारा दोषसिद्धि के खिलाफ उनकी अपील लंबित रहने तक सजा को निलंबित कर दिया था. उच्चतम न्यायालय ने बाद में जमानत के आदेश की पुष्टि की थी.

वहीं, शिव सोलंकी ने उच्च न्यायालय में सुनवाई और अपील के अंतिम निस्तारण तक सजा को निलंबित करने और जमानत पर रिहा करने का अनुरोध किया था.

जेठवा की 20 जुलाई, 2010 को गुजरात उच्च न्यायालय के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, जब उन्होंने कथित रूप से आरटीआई आवेदनों के माध्यम से दीनू सोलंकी से जुड़ी अवैध खनन गतिविधियों का पर्दाफाश करने की कोशिश की थी.

दो अज्ञात हमलावरों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई और जांच को आपराधिक जांच विभाग (सीआईडी) को स्थानांतरित कर दिया गया, जिसने आरोप पत्र दाखिल किया. सितंबर 2012 में, उच्च न्यायालय ने सीबीआई को जांच सौंपी और न्यायाधीश ने सात जून, 2019 को सात लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, अहमदाबाद की एक विशेष सीबीआई अदालत ने जुलाई 2019 में दीनू और शिव सहित सात लोगों को आईपीसी की धारा 302 (हत्या), 201 (अपराध के सबूत मिटाने) और 120बी (आपराधिक साजिश) के तहत दोषी पाते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.

अदालत ने शिव सोलंकी जमानत पर रिहा करते हुए कहा है कि वह एक साल की अवधि के लिए ऊना तालुका की स्थानीय सीमा में प्रवेश नहीं करेंगे.

बताया गया है कि मुकदमे में गवाहों में से एक – धर्मेंद्रगिरी गोस्वामी पर कथित तौर पर दबाव बनाने और एक भूमि विवाद के संबंध में मामले को सुलझाने के लिए 1 फरवरी को हमला किया गया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)