जम्मू कश्मीर के प्रशासन ने तहसीलदारों को जारी एक आदेश में कहा है कि लापता लोगों की संपत्तियों का इस्तेमाल आतंकवाद को वित्तपोषित करने के लिए किया जा रहा है.
नई दिल्ली: केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर के प्रशासन ने एक नया आदेश जारी करते हुए तहसीलदारों से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि लापता लोगों की कृषि भूमि उनके परिवार के सदस्यों द्वारा न बेची जाए या फसल की आय का इस्तेमाल किसी तीसरे पक्ष द्वारा न किया जाए.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, प्रशासन ने तहसीलदारों से इन लापता लोगों को ‘मृत मान लिया’ घोषित करने और ऐसी भूमि का कोई राजस्व दस्तावेज जारी नहीं करने को कहा है.
कश्मीर के संभागीय आयुक्त कार्यालय द्वारा 31 जनवरी को जारी आदेश में कहा गया है कि ऐसा संदेह है कि इस तरह की संपत्तियों का इस्तेमाल आतंकवाद को वित्तपोषित करने के लिए किया जा रहा है.
सूत्रों ने बताया कि ये संपत्तियां अधिकांश उन लोगों से संबंधित हैं जो आतंकवाद के चरम के दौरान पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर चले गए थे और तब से वापस नहीं लौटे हैं. इनमें से कुछ संपत्तिया उन लोगों से भी संबंधित हैं जिन पर आतंकवाद में शामिल होने का संदेह है और वर्षों से वे लापता हैं.
आदेश के अनुसार, हाल ही में जांच के दौरान यह सामने आया कि बारामूला जिले के तंगमर्ग में कुछ भूखंड ऐसे लोगों के हैं, जिनका पता नहीं चल पाया है और उन्हें इन भूमि पर उत्पादित फसलों का कोई हिस्सा नहीं मिल रहा है.
सूत्रों ने बताया कि आगे की जांच में घाटी की सभी तहसीलों में ऐसे भूखंडों की मौजूदगी पाई गई.
जम्मू कश्मीर प्रशासन के एक अधिकारी ने कहा कि पुलिस ने उन्हें सूचित किया है कि इस तरह की संपत्तियों का इस्तेमाल आतंकवाद के वित्तपोषण के लिए किया जा रहा है.
अधिकारी ने कहा, ‘इसी लिए केंद्र शासित प्रदेश में सभी तहसीलदारों को जांच करने, ऐसे भूखंडों को चिह्नित करने और उनका दुरुपयोग न हो, यह सुनिश्चित करने का आदेश जारी किया गया है.’
आदेश में कहा गया है, ‘नियम कहते हैं कि यदि कोई भूमिधारक गांव से अनुपस्थित है और सात साल से अधिक समय तक जमीन पर खेती नहीं करता है या उपज का हिस्सा नहीं लेता है तो उसे गैर हाजिर/गैर काबिज करार दिया जाएगा.’
इसमें कहा गया है, ‘ऐसी स्थिति में उचित प्रयास/जांच करने के बाद (संबंधित) तहसीलदार यह मान लेगा कि उक्त व्यक्ति की मौत हो चुकी है और इसी मुताबिक मामले में आदेश पारित करेगा.’
इसमें कहा गया है, ‘राजस्व रिकॉर्ड में औपचारिक प्रविष्टि करने से पहले, वह (तहसीलदार) संबंधित जिला कलेक्टर से इसकी पुष्टि/अनुमोदन भी करवाएगा.’
प्रशासन ने आदेश दिया है, ‘ऐसे ‘गैर हाजिर/गैर काबिज’ व्यक्तियों के हिस्से को परिवार के सदस्यों/अन्य सह-हिस्सेदारों (रक्त संबंध में) द्वारा उपयोग करने की अनुमति दी जा सकती है. हालांकि वे बेचने, उपहार देने या किसी भी तरीके से शेयर को हस्तांतरित करने के हकदार नहीं होंगे… या किसी भी तरीके से संपत्ति में तीसरे पक्ष का हित सृजित करेंगे. ऐसी जमीनों का कोई फर्द-ए-इंतिखाब (राजस्व दस्तावेज) जारी नहीं किया जाएगा.’
इस संबंध में तहसीलदारों को आवश्यक प्रविष्टि करने के लिए कहते हुए आदेश में कहा गया है, ‘विशेष डीजी (सीआईडी) के कार्यालय से विशिष्ट इनपुट प्राप्त हुआ है, जिसमें यह आशंका है कि इस तरह की ‘गैरहाजिर/गैर काबिज’ संपत्तियों का उपयोग आतंकवाद के वित्तपोषण के लिए किया जाता है.’
सूत्रों ने बताया कि ऐसा डर के कारण घाटी छोड़ने वाले सताए गए अल्पसंख्यकों की संपत्ति प्रभावित न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए है.
गौरतलब है कि जम्मू कश्मीर में कथित रूप से सरकारी भूमि का अतिक्रमण करने वाली संपत्तियों पर कार्रवाई जारी है. इस अतिक्रमण विरोधी अभियान ने राजनीतिक उबाल पैदा कर दिया है और नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी जैसे दलों के नेताओं ने इस कवायद को गरीब विरोधी और अन्यायपूर्ण बताया है और कहा है कि इसका उद्देश्य एक विशेष समुदाय को निशाना बनाना है.
जम्मू कश्मीर प्रशासन ने आरोपों को खारिज किया है और दावा किया है कि अभियान में गरीबों को छुआ तक नहीं गया है.
प्रशासन का तर्क है कि नेता इसकी आलोचना कर रहे हैं क्योंकि उन्हें अतिक्रमित सरकारी भूमि पर निर्मित अपनी संपत्तियों को खोना पड़ा है.