पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ह्वीलचेयर पर हैं. उनकी आवाजाही में सुगमता के लिए उन्हें राज्यसभा में आगे की पंक्ति के बजाय अंतिम पंक्ति में जगह दी गई है. इसको लेकर अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह ऐसे लोगों के साथ भेदभावपूर्ण है और सार्वजनिक स्थलों को उनके अनुकूल बनाए जाने की ज़रूरत है.
नई दिल्ली: राज्यसभा में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की निर्दिष्ट सीट को इस सत्र में ह्वीलचेयर की आवाजाही की सुगमता को देखते हुए आगे की पंक्ति से अंतिम पंक्ति में स्थानांतरित किए जाने पर शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए काम करने वाले अधिकार कार्यकर्ता ऐसे व्यक्तियों (पीडब्ल्यूडी) के अधिक राजनीतिक प्रतिनिधित्व और सार्वजनिक इमारतों को उनके लिए अधिक सुगम बनाने हेतु रचनात्मक समाधानों की मांग कर रहे हैं.
इंडियन एक्सप्रेस ने कांग्रेसी सूत्रों के हवाले से लिखा है कि मनमोहन सिंह के कार्यालय ने पार्टी से उनकी सीट बदलने के लिए कहा था, क्योंकि आगे की पंक्ति तक चलकर जाना मुश्किल था. इसके बाद पार्टी ने उन्हें गलियारे के पास पिछली पंक्ति में बैठने की व्यवस्था की.
हालांकि यह पूर्व प्रधानमंत्री के मामले में चलने-फिरने में असमर्थता का उम्र संबंधी मसला हो सकता है, लेकिन कार्यकर्ताओं का कहना है कि हर किसी के लिए सुलभ और समावेशी डिजाइन केवल शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों के लिए ही नहीं होते हैं. चोट और बीमारी के कारण कोई भी अस्थायी अक्षमता का शिकार हो सकता है और सार्वजनिक स्थलों को इसी मुताबिक बनाया जाना चाहिए.
शारीरिक रूप से अक्षम लोगों की पैरोकार और एनजीओ ‘समर्थ्यम’ की संस्थापक अंजली अग्रवाल, जो 2011 में संसद भवन के थर्ड-पार्टी एक्सेसिबिलिटी ऑडिट में शामिल थीं, ने कहा कि शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों के लिए शौचालय या रैंप का निर्माण करना पर्याप्त नहीं है, यह भी सुनिश्चित करना होगा कि वे उपयोगकर्ताओं के अनुकूल हों.
एक्सेसिबिलिटी ऑडिट के दौरान, ह्वीलचेयर इस्तेमाल करने वाली अग्रवाल ने पाया था कि शौचालयों में ह्वीलचेयर को मोड़ने के लिए पर्याप्त जगह नही थी, फर्श फिसलन भरा था और दरवाजे की कुंडी ऊंचाई पर थी.
उन्होंने कहा, ‘शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों के साथ सम्मान और प्रतिष्ठा के साथ व्यवहार नहीं किया जाता है और पीछे की सीट दी जाती है, लेकिन हमें यह स्वीकारना नहीं है. संविधान और शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम-2016, हमें गैर-भेदभाव की गारंटी देते हैं.’
उन्होंने कहा कि नए संसद भवन का निर्माण हो रहा है और यह वह समय है कि यह सुनिश्चित किया जाए कि जो डॉ. सिंह के साथ हुआ, वह किसी और के साथ न हो.
उन्होंने कहा, ‘यह वीवीआईपी या वीआईपी की बात नहीं है. यह समान व्यवहार किए जाने की बात है.’
दिल्ली के यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज के प्रोफेसर और डॉक्टर्स विद डिसएबिलिटीज ग्रुप के संस्थापक डॉ. सतेंद्र सिंह ने कहा कि निर्वाचित प्रतिनिधियों को अतीत में भी ऐसी समस्याओं का सामना करना पड़ा था, लेकिन उन्होंने अब तक शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों के लिए अपनी आवाज नहीं उठाई है.
डॉ. सतेंद्र ने कहा, ‘हमारे शारीरिक रूप से अक्षम राजनेता या लोग हमारी आवाज का प्रतिनिधित्व नहीं करके हमें विफल कर रहे हैं. संसद और विधानसभाओं को शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों की आवाजाही के लिए अनुकूल बनाने के बजाय, वे हमें अंतिम पंक्ति में भेजने में खुश हैं. हमें शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व की जरूरत है. हमारे पास इस श्रेणी में चिकित्सा, खेल, कला और अन्य सभी क्षेत्रों में असाधारण पेशेवर हैं. उन्हें राज्यसभा के लिए नामांकित क्यों नहीं किया जा रहा है.’
लैंडस्केप आर्किटेक्ट और समावेशी डिजाइन की समर्थक निधि मदान कहती हैं कि रचनात्मक समाधान उपलब्ध हैं, जैसे कि फोल्डेबल सीट्स या ह्वीलचेयर इस्तेमाल करने वालों के लिए जगह बनाने हेतु एक सीट खाली छोड़ देना.
उन्होंने कहा, ‘मांग समानता की है. अगर आप शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों को पिछली पंक्ति में स्थानांतरित कर रहे हैं तो यह समानता नहीं है.’