भारत के पहले क़ानून मंत्री डॉ. आंबेडकर का त्याग-पत्र आधिकारिक रिकॉर्ड में उपलब्ध नहीं: रिपोर्ट

सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत डॉ. बीआर आंबेडकर के क़ानून मंत्री के पद से त्याग-पत्र की प्रमाणित प्रति मांगी गई थी. याचिकाकर्ता ने प्रधानमंत्री कार्यालय, कैबिनेट सचिवालय और राष्ट्रपति सचिवालय में इस संबंध में आवेदन किया था, लेकिन इन कार्यालयों ने इस संबंध में आधिकारिक दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं होने की जानकारी दी है.

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डॉ. बीआर आंबेडकर. (फोटो साभार: विकिपीडिया)

सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत डॉ. बीआर आंबेडकर के क़ानून मंत्री के पद से त्याग-पत्र की प्रमाणित प्रति मांगी गई थी. याचिकाकर्ता ने प्रधानमंत्री कार्यालय, कैबिनेट सचिवालय और राष्ट्रपति सचिवालय में इस संबंध में आवेदन किया था, लेकिन इन कार्यालयों ने इस संबंध में आधिकारिक दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं होने की जानकारी दी है.

डॉ. बीआर आंबेडकर. (फोटो साभार: विकिपीडिया)

नई दिल्ली: स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री बीआर आंबेडकर का त्याग-पत्र आधिकारिक रिकॉर्ड से गायब हैं. राष्ट्रपति सचिवालय ने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) को लिखित रूप में पुष्टि की है कि संवैधानिक मामलों के खंड में काफी खोजबीन के बावजूद दस्तावेज का पता नहीं चल सका है.

द हिंदू अखबार ने अपनी एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी है.

इस बात की जानकारी सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत दायर एक याचिका से मिली है, जिसमें डॉ. आंबेडकर के त्याग-पत्र की प्रमाणित प्रति मांगी गई थी, जिसे तत्कालीन राष्ट्रपति ने स्वीकार कर लिया था.

याचिकाकर्ता, जिसने प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ), कैबिनेट सचिवालय और राष्ट्रपति सचिवालय को पत्र लिखा था, ने यह भी जानकारी मांगी थी कि पहले कानून मंत्री ने पद से इस्तीफा देने के क्या कारण गिनाए थे.

पीएमओ द्वारा याचिका को कैबिनेट सचिवालय में स्थानांतरित करने के बाद बताया गया था कि भारत के राष्ट्रपति ने 11 अक्टूबर, 1951 से कानून मंत्री के रूप में डॉ. आंबेडकर का इस्तीफा स्वीकार कर लिया था.

प्रधानमंत्री द्वारा इस्तीफे की स्वीकृति की तारीख पीएमओ में उपलब्ध हो सकती है. कैबिनेट सचिवालय के मुख्य लोक सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) ने कहा, ‘इस बिंदु पर कोई अन्य जानकारी इस कार्यालय के पास उपलब्ध नहीं है.’

तीन शीर्ष कार्यालयों के सीपीआईओ से आगे कोई जानकारी नहीं मिलने पर याचिकाकर्ता प्रशांत ने सीआईसी के समक्ष अपील दायर की. उन्होंने तर्क दिया कि डॉ. आंबेडकर का त्याग-पत्र पीएमओ या राष्ट्रपति सचिवालय के रिकॉर्ड में मौजूद होना चाहिए, क्योंकि ये दो कार्यालय मंत्रिपरिषद के किसी भी सदस्य के इस्तीफे को स्वीकार या अस्वीकार करने के लिए एकमात्र प्राधिकारी थे.

कैबिनेट सचिवालय के जवाब का उल्लेख करते हुए कि भारत के राष्ट्रपति ने 11 अक्टूबर, 1951 से डॉ. आंबेडकर का इस्तीफा स्वीकार कर लिया था, सीआईसी ने कहा कि इस्तीफे की प्रति राष्ट्रपति सचिवालय के पास उपलब्ध होनी चाहिए.

प्रधानमंत्री कार्यालय के सीपीआईओ ने कहा कि याचिका को राष्ट्रपति सचिवालय में स्थानांतरित कर दिया गया था, क्योंकि मंत्रियों के त्याग-पत्रों की स्वीकृति या अस्वीकृति भारत के राष्ट्रपति के संवैधानिक कामकाज के अंतर्गत आती है.

वहीं, कैबिनेट सचिवालय के सीपीआईओ ने कहा कि उनके कार्यालय ने केवल भारत सरकार (व्यवसाय का आवंटन) नियम, 1961 के अनुसार कैबिनेट और कैबिनेट समितियों और व्यापार के नियमों को सचिवीय सहायता प्रदान की, इसलिए अपील में मांगी गई कोई सूचना कैबिनेट सचिवालय के पास उपलब्ध नहीं थी.

राष्ट्रपति सचिवालय के सीपीआईओ ने कहा कि संवैधानिक मामलों के अनुभाग में व्यापक खोज के बावजूद, अपीलकर्ता द्वारा अनुरोधित दस्तावेज का पता नहीं लगाया जा सका और इसलिए रिकॉर्ड पर कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी.

बीते 10 फरवरी को मामले में आदेश पारित करते हुए मुख्य सूचना आयुक्त वाईके सिन्हा ने कहा कि केवल वही सूचनाएं उपलब्ध कराई जा सकती हैं, जो किसी सार्वजनिक प्राधिकरण के पास उपलब्ध हों और किसी रिकॉर्ड के निर्माण के लिए कोई निर्देश जारी नहीं किया जा सकता है.

सिन्हा ने याचिका का निस्तारण करते हुए कहा, ‘सभी पक्षों द्वारा दी गईं विस्तृत प्रस्तुतियों की जांच करने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि संबंधित जानकारी राष्ट्रपति सचिवालय के पास हो सकती है. हालांकि राष्ट्रपति सचिवालय की ओर से यह स्पष्ट तौर से बताया गया है कि उनके रिकॉर्ड में कोई जानकारी नहीं है, इसलिए इस स्तर पर आयोग द्वारा और कोई हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है.’

रिपोर्ट के अनुसार, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने, जब वे 2016 में बिहार के राज्यपाल थे, एक सेमिनार में छात्रों को संबोधित करते हुए कहा था कि डॉ. आंबेडकर ने जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था, जब सरकार ने सुधारवादी हिंदू कोड बिल को समर्थन देने से इनकार कर दिया था.