जम्मू कश्मीर के परिसीमन को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज की

जम्मू कश्मीर में विधानसभा और लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण के लिए परिसीमन आयोग के गठन के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं में कहा गया था कि परिसीमन की कवायद संविधान की भावनाओं के विपरीत की गई थी और इस प्रक्रिया में सीमाओं में परिवर्तन तथा विस्तारित क्षेत्रों को शामिल नहीं किया जाना चाहिए था. 

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(प्रतीकात्मक फाइल फोटो: पीटीआई)

जम्मू कश्मीर में विधानसभा और लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण के लिए परिसीमन आयोग के गठन के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं में कहा गया था कि परिसीमन की कवायद संविधान की भावनाओं के विपरीत की गई थी और इस प्रक्रिया में सीमाओं में परिवर्तन तथा विस्तारित क्षेत्रों को शामिल नहीं किया जाना चाहिए था.

Srinagar: Policemen patrolling at Lal Chowk after restrictions were lifted, in Srinagar, Tuesday, Aug. 20, 2019. Barricades around the Clock Tower in Srinagar's city centre Lal Chowk were removed after 15 days, allowing the movement of people and traffic in the commercial hub, as restrictions eased in several localities while continuing in others. (PTI Photo/S. Irfan)(PTI8_20_2019_000114B)
(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली/श्रीनगर: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में विधानसभा और लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण के लिए परिसीमन आयोग के गठन के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका सोमवार को खारिज कर दी.

जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एएस ओका की एक पीठ ने कश्मीर के दो निवासियों द्वारा दायर याचिका पर फैसला सुनाया. जस्टिस ओका ने फैसला सुनाते हुए कहा कि इस फैसले में किसी भी चीज को संविधान के अनुच्छेद 370 के खंड एक और तीन के तहत शक्ति के प्रयोग का अनुमोदन नहीं माना जाएगा.

पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 370 से संबंधित शक्ति के प्रयोग की वैधता का मुद्दा शीर्ष अदालत के समक्ष लंबित याचिकाओं का विषय है.

पांच अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शीर्ष अदालत विचार कर रही है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, पीठ  ने कहा, ‘हम जानते हैं कि उक्त शक्तियों के प्रयोग की वैधता का मुद्दा इस न्यायालय के समक्ष लंबित याचिकाओं का विषय है, इसलिए हमने वैधता के मुद्दे से निपटा नहीं है. इस फैसले में कही गई किसी भी बात को संविधान के अनुच्छेद 370 के खंड (1) और (3) के तहत शक्तियों के प्रयोग के लिए हमारी अनुमति देने के रूप में नहीं माना जाएगा.’

श्रीनगर निवासी याचिकाकर्ताओं हाजी अब्दुल गनी खान और मोहम्मद अयूब मट्टू ने तर्क दिया था कि परिसीमन 2011 की जनगणना के आधार पर नहीं हो सकता है. इसे 2001 की जनगणना के अनुसार किया जाना चाहिए या ‘वर्ष 2026 के बाद पहली जनगणना’ का इंतजार करना चाहिए.

अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों और जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में कई याचिकाएं दायर की गई हैं, जिसने तत्कालीन जम्मू कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों- जम्मू कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया था.

केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को निरस्त करके जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द कर दिया था.

शीर्ष अदालत ने परिसीमन आयोग गठित करने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर पिछले साल एक दिसंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

पिछले साल एक दिसंबर को सुनवाई के दौरान केंद्र ने शीर्ष अदालत को बताया था कि जम्मू कश्मीर में विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण के लिए गठित परिसीमन आयोग को ऐसा करने का अधिकार है.

केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने परिसीमन आयोग के गठन के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करने का अनुरोध करते हुए शीर्ष अदालत से कहा था कि जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 केंद्र सरकार को परिसीमन आयोग की स्थापना किए जाने से रोकता नहीं है.

केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय (विधायी विभाग) ने छह मार्च, 2020 को परिसीमन अधिनियम, 2002 की धारा तीन के तहत अपनी शक्ति का इस्तेमाल करते हुए एक अधिसूचना जारी की थी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में एक परिसीमन आयोग का गठन करने की बात की गई थी.

दो याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश वकील ने दलील दी कि परिसीमन की कवायद संविधान की भावनाओं के विपरीत की गई थी और इस प्रक्रिया में सीमाओं में परिवर्तन तथा विस्तारित क्षेत्रों को शामिल नहीं किया जाना चाहिए था.

याचिका में यह घोषित करने की मांग की गई थी कि जम्मू कश्मीर में सीट की संख्या 107 से बढ़ाकर 114 (पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में 24 सीट सहित) करना संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों, विशेष रूप से जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 63 के तहत अधिकारातीत है.

याचिका में कहा गया था कि 2001 की जनगणना के बाद प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल करके पूरे देश में चुनाव क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण की कवायद की गई थी और परिसीमन अधिनियम, 2002 की धारा 3 के तहत 12 जुलाई, 2002 को एक परिसीमन आयोग का गठन किया गया था.

याचिका में कहा गया था कि आयोग ने पांच जुलाई, 2004 के पत्र के जरिये विधानसभा और संसदीय क्षेत्रों के परिसीमन के लिए संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों के साथ दिशा-निर्देश और कार्यप्रणाली जारी की थी.

याचिका में कहा गया था, ‘यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और पांडिचेरी के संघ शासित प्रदेशों सहित सभी राज्यों की विधानसभाओं में मौजूदा सीटों की कुल संख्या, जैसा कि 1971 की जनगणना के आधार पर तय की गई है, वर्ष 2026 के बाद की जाने वाली पहली जनगणना तक अपरिवर्तित रहेगी.’

इसने 6 मार्च, 2020 की उस अधिसूचना को असंवैधानिक घोषित करने का अनुरोध किया था, जिसमें केंद्र द्वारा जम्मू कश्मीर और असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नगालैंड राज्यों में परिसीमन करने के लिए परिसीमन आयोग का गठन किया गया था.

मालूम हो कि 5 मई को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस (सेवानिवृत्त) रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय परिसीमन पैनल ने जम्मू कश्मीर में 90 विधानसभा क्षेत्रों को अधिसूचित किया था. अधिसूचना के अनुसार, जम्मू कश्मीर विधानसभा में सात अतिरिक्त निर्वाचन क्षेत्रों को जोड़ा गया है.

आयोग ने अंतिम आदेश में जम्मू में छह, जबकि कश्मीर में एक अतिरिक्त सीट का प्रस्ताव रखा था. वहीं, राजौरी और पुंछ के क्षेत्रों को अनंतनाग संसदीय सीट के तहत लाया गया है. 12 सीटें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित किया है.

परिसीमन प्रक्रिया संबंधी न्यायालय के फैसले का कोई मायने नहीं: महबूबा मुफ्ती

पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने सोमवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा जम्मू-कश्मीर में परिसीमन प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करने का कोई मायने नहीं है, जब अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाएं सर्वोच्च अदालत में लंबित हैं.

महबूबा ने श्रीनगर से 41 किमी दूर बिजबेहरा में मीडियाकर्मियों से कहा, ‘हमने परिसीमन आयोग को शुरू में ही खारिज कर दिया था. हमें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि क्या फैसला आया है.’

जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा ने परिसीमन संबंधी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा फैसला दिए जाने पर सवाल उठाया, क्योंकि अन्य याचिकाएं अब भी विचाराधीन हैं.

उन्होंने कहा, ‘पुनर्गठन अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिका लंबित है, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के खिलाफ याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. यदि यह सब लंबित है, तो वे (सुप्रीम कोर्ट) कैसे इस याचिका पर फैसला सुना सकते हैं?’

पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) नेता महबूबा ने आरोप लगाया, ‘परिसीमन चुनाव से पहले धांधली की एक रणनीतिक प्रक्रिया थी. उन्होंने क्या किया है? भाजपा के पक्ष में बहुमत को अल्पसंख्यक में परिवर्तित कर दिया है. हमने परिसीमन आयोग की चर्चाओं में भी भाग नहीं लिया.’

यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें अब भी न्यायपालिका पर भरोसा है, महबूबा ने कहा कि अदालतें देश में किसी की भी आखिरी उम्मीद हैं.

उन्होंने कहा, ‘जहां तक न्यायपालिका की बात है तो कोई गरीब आदमी कहां जाएगा? यहां तक कि (प्रधान न्यायाधीश) जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने भी कहा है कि निचली अदालतें जमानत देने से डरती हैं. अगर कोई अदालत जमानत देने से डरती है, तो वे किस प्रकार (निष्पक्ष) फैसला सुनाएंगी?’

उन्होंने कहा, ‘एक समय था जब अदालत के एक फैसले से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को गद्दी से हटना पड़ा था. आज लोगों को अदालतों से जमानत तक नहीं मिलती है.’

नेशनल कॉन्फ्रेंस ने कहा- निराश नहीं हैं

नेशनल कॉन्फ्रेंस ने सोमवार को कहा कि जम्मू कश्मीर में परिसीमन प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट के खारिज करने से वह ‘निराश’ नहीं है, लेकिन केंद्र द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं में जीत को लेकर आश्वस्त है.

नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रवक्ता इमरान नबी डार ने कहा, ‘इससे हमारा दिल नहीं टूटा है. हमें यकीन है, जब भी सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को लेकर हमारी याचिका पर सुनवाई करेगा, हमारे पास पर्याप्त दलीलें होंगी, जो मामले को हमारे पक्ष में झुका देगा, क्योंकि हम भारत के संविधान के बाहर कुछ भी नहीं मांग रहे हैं.’

उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 पर पार्टी द्वारा अपनाया गया रुख ‘भारत के संविधान के तहत’ था. डार ने कहा, ‘हम ऐसा कुछ नहीं मांग रहे हैं, जो संविधान के दायरे में नहीं है.’

डार ने कहा कि शीर्ष अदालत के न्यायाधीशों ने याचिका खारिज करते हुए एक शर्त रखी है.

उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि न्यायाधीश ने एक टिप्पणी की है, जहां उन्होंने फैसले पर शर्त लगा दी. शर्त यह है कि जम्मू कश्मीर पुनर्गठन कानून के संबंध में पहले से ही सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका लंबित है. उन्होंने उस याचिका का उल्लेख किया, वे पूरी बात को उस याचिका के साथ जोड़ सकते हैं, जिसमें मूल अधिनियम को चुनौती दी गई है.’

शीर्ष अदालत के फैसले पर अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस (एएनसी) के उपाध्यक्ष मुजफ्फर शाह ने कहा कि ‘इसमें कुछ भी नया नहीं है, क्योंकि हमें इसी की उम्मीद थी.’

शाह ने कहा, ‘मैं केवल इतना कह सकता हूं कि दुर्भाग्य से परिसीमन के इस मामले को यहां के प्रमुख राजनीतिक दलों ने नहीं उठाया.’ शाह ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि अनुच्छेद 370 और 35-ए के बारे में याचिकाओं पर तस्वीर अलग होगी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)