मिज़ोरम विधानसभा में समान नागरिक संहिता लागू करने के किसी भी प्रयास का विरोध करने का प्रस्ताव पेश करते हुए गृह मंत्री लालचमलियाना ने कहा कि यूसीसी देश को विघटित कर देगा क्योंकि यह मिज़ो समेत धार्मिक अल्पसंख्यकों की धार्मिक, सामाजिक प्रथाओं, संस्कृतियों व परंपराओं को ख़त्म करने की कोशिश है.
नई दिल्ली: मिजोरम विधानसभा ने मंगलवार (14 फरवरी) को समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लागू करने के किसी भी प्रयास का विरोध करते हुए एक सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया है.
द हिंदू के मुताबिक, प्रस्ताव में कहा गया है, ‘इस सदन ने सर्वसम्मति से भारत में यूसीसी को लागू करने के लिए उठाए गए या उठाए जाने वाले किसी भी कदम का विरोध करने का संकल्प लेता है.’
गृह मंत्री लालचमलियाना ने प्रस्ताव पेश करते हुए कहा, ‘समान नागरिक संहिता देश को विघटित कर देगा क्योंकि यह मिज़ो सहित धार्मिक अल्पसंख्यकों की धार्मिक या सामाजिक प्रथाओं, प्रथागत कानूनों, संस्कृतियों और परंपराओं को समाप्त करने का एक प्रयास है.’
उन्होंने कहा, ‘प्रस्तावित कानून (जो भाजपा के एक राज्यसभा सांसद द्वारा निजी विधेयक के रूप में पेश किया गया) संसद में अधिनियमन के लिए लंबित है. प्रस्तावित कानून का उद्देश्य अल्पसंख्यकों की धार्मिक या सामाजिक प्रथाओं, प्रथागत कानूनों, संस्कृतियों और परंपराओं को हाशिए पर या समाप्त करके देश में एक समान कोड लागू करना है.’
उन्होंने जोड़ा, ‘हालांकि मिजोरम में अनुच्छेद 371जी के तहत अपनी सामाजिक या धार्मिक प्रथाओं, प्रथागत कानूनों और प्रक्रियाओं की रक्षा के लिए एक विशेष प्रावधान है, पर यूसीसी का कार्यान्वयन समग्र रूप से भारत के लिए ठीक नहीं है.’
उल्लेखनीय है कि संविधान के अनुच्छेद 371जी के तहत, मिज़ो धार्मिक या सामाजिक प्रथाओं, मिज़ो प्रथागत कानून और प्रक्रिया, मिज़ो प्रथागत कानून के अनुसार निर्णय लेने वाले नागरिक और आपराधिक न्याय प्रशासन या भूमि के स्वामित्व और हस्तांतरण पर कोई संसदीय अधिनियम लागू नहीं होगा, जब तक कि मिजोरम राज्य विधानमंडल इस पर कोई प्रस्ताव पारित नहीं करता.
मुख्यमंत्री जोरमथांगा, विपक्षी दल कांग्रेस के नेता जोडिंटलुआंगा, एकमात्र भाजपा विधायक बीडी चकमा, सत्ताधारी एमएनएफ के सदस्य सी. लालमुआनपुइया और अन्य नेताओं ने प्रस्ताव पर चर्चा में हिस्सा लिया.
भाजपा विधायक बीडी चकमा ने कहा कि अभी यूसीसी की आलोचना करना जल्दबाजी होगी, क्योंकि इसे अभी तक लागू नहीं किया गया है.
इस पर ज़ोरमथांगा ने जवाब दिया कि इसे लागू करने से पहले इन सवालों और आलोचनाओं को उठाना बेहतर है. उन्होंने कहा कि यूसीसी देश के अस्तित्व को नुकसान पहुंचाएगा.
मालूम हो कि समान नागरिक संहिता का अर्थ है कि सभी लोग, चाहे वे किसी भी क्षेत्र या धर्म के हों, नागरिक कानूनों के एक समूह के तहत बंधे होंगे.
समान नागरिक संहिता को सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करने वाले कानूनों के एक समान समूह के रूप में संदर्भित किया जाता है, चाहे वह किसी भी धर्म का हो. वर्तमान में विभिन्न धर्मों के अलग-अलग व्यक्तिगत कानून (Personal Law) हैं.
इसका उल्लेख भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 में किया गया है. जिस भाग चार में इसका उल्लेख है, उसमें राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत (डीपीएसपी) शामिल हैं. ये प्रावधान लागू करने योग्य नहीं हैं, लेकिन कानून बनाने के लिए मार्गदर्शक सिद्धांतों के रूप में काम करने के लिए हैं.
अनुच्छेद 44 कहता है, ‘राज्य पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा.’
बीते तीन फरवरी को केंद्र सरकार ने संसद को बताया था कि समान नागरिक संहिता लागू करने पर अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है.
गौरतलब है कि समान नागरिक संहिता भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख मुद्दों में से एक रहा है. वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में यह भाजपा के प्रमुख चुनावी वादों में शुमार था. उत्तराखंड के अलावा मध्य प्रदेश, असम, कर्नाटक और गुजरात की भाजपा सरकारों ने इसे लागू करने की बात कही थी.
उत्तराखंड और गुजरात जैसे भाजपा शासित कुछ राज्यों ने इसे लागू करने की दिशा में कदम उठाया है. नवंबर-दिसंबर 2022 में संपन्न गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में समान नागरिक संहिता को लागू करना भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रमुख मुद्दों में शामिल था.
वहीं, उत्तराखंड और गुजरात की सरकारों ने समान नागरिक संहिता लागू करने पर विचार करने के लिए समितियों का गठन किया है.
उत्तराखंड सरकार द्वारा मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था. दिसंबर 2022 में समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने वाली विशेषज्ञों की समिति का कार्यकाल छह महीने के लिए बढ़ा दिया गया था.
देशभर में समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए अनेक याचिकाएं शीर्ष अदालत के समक्ष लंबित हैं. केंद्र ने कहा है कि समान नागरिक संहिता का मुद्दा राज्य विधायिका के दायरे में आता है.
बीते जनवरी महीने में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड और गुजरात में समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए समितियां गठित करने के उन राज्यों की सरकारों के फैसलों को चुनौती देने वाली जनहित याचिका खारिज कर दी थी.
न्यायालय ने कहा था कि याचिका में कोई आधार नहीं है और संविधान राज्यों को इस तरह की समितियों के गठन का अधिकार देता है. राज्यों द्वारा ऐसी समितियों के गठन को संविधान के दायरे से बाहर जाकर चुनौती नहीं दी जा सकती.
अदालत ने कहा था, ‘राज्यों द्वारा संविधान के अनुच्छेद 162 के तहत समितियां गठित करने में कुछ गलत नहीं है. यह अनुच्छेद कार्यपालिका को ऐसा करने की शक्ति देता है.’
इससे पहले दिसंबर 2022 में कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्यसभा में कहा था समान नागरिक संहिता बनाए रखने के प्रयास में राज्यों को उत्तराधिकार, विवाह और तलाक जैसे मुद्दों को तय करने वाले व्यक्तिगत कानून बनाने का अधिकार है.