दिसंबर 2022 में एकनाथ शिंदे सरकार ने एक प्रस्ताव में राज्य स्तर पर ‘अंतरधार्मिक विवाह- परिवार समन्वय समिति’ के गठन की बात कही थी. इस विवादास्पद प्रस्ताव को वापस लेने के लिए राज्य सरकार पर दबाव डालने हेतु राज्य के विपक्षी दलों ने एक कार्य समूह (वर्किंग ग्रुप) बनाने का फैसला किया है.
नई दिल्ली: महाराष्ट्र के विपक्षी दल राज्य में अंतरधार्मिक विवाहों पर विवादास्पद सरकारी प्रस्ताव को वापस लेने के लिए राज्य सरकार पर दबाव डालने हेतु एक कार्य समूह (वर्किंग ग्रुप) बनाने के लिए एक साथ आए हैं.
कइयों का मानना है कि यह भाजपा शासित राज्यों में लागू किए गए ‘लव जिहाद’ कानून के समान ही है.
रिपोर्ट के मुताबिक, ऑल इंडिया सेकुलर फोरम के बैनर तले सलोखा समिति द्वारा सोमवार (13 फरवरी) को मुंबई में आयोजित एक बैठक में यह फैसला लिया गया.
बैठक में शिव सेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) समाजवादी पार्टी (सपा) और अन्य की भागीदारी देखी गई. एनसीपी प्रमुख और विपक्ष के वरिष्ठ नेता शरद पवार भी प्रस्तावित कार्य समूह को अपना समर्थन देने के लिए बैठक में मौजूद थे. बैठक में वकील,लेखक, कार्यकर्ता, फिल्म निर्माता, अभिनेता समेत प्रमुख मुंबईकरों ने भी भाग लिया.
दिसंबर 2022 में एकनाथ शिंदे सरकार द्वारा पारित सरकारी प्रस्ताव के जरिये राज्य स्तर पर ‘अंतरधार्मिक विवाह- परिवार समन्वय समिति‘ का गठन हुआ था.
सरकार के अनुसार, समिति का उद्देश्य राज्य में अंतरधार्मिक विवाहों की निगरानी करना और ऐसे विवाहों में संकटग्रस्त महिलाओं को सहायता प्रदान करना है. 2022 में महाराष्ट्र की युवती श्रद्धा वाकर की दिल्ली में उनके लिव-इन पार्टनर आफताब पूनावाला द्वारा सनसनीखेज हत्या, जिसने राष्ट्रीय सुर्खियां बटोरी थीं, ने यह प्रस्ताव लाने के लिए प्रेरित किया.
शिंदे के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार में भागीदार भाजपा भी इस घटना को ‘लव जिहाद’ के रूप में देश भर में प्रस्तुत करने के अभियान में हिंदुत्ववादी समूहों के साथ शामिल थी.
राज्य में कांग्रेस पार्टी की ओर से बोलते हुए नीला लिमये ने कहा कि कार्य समूह हर जिले में सरकारी समिति का विरोध करने के तौर-तरीकों पर रणनीति बनाएगा.
लिमये के हवाले से इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा, ‘हमने दो मुख्य बिंदुओं पर फैसला किया: एक यह है कि अंतरधार्मिक विवाह समिति का गठन करने वाले सरकारी प्रस्ताव को रद्द कर दिया जाना चाहिए. पक्ष ने भी कार्य समिति बनाने और जिला स्तर पर समिति का विरोध करने की रणनीति बनाने का फैसला किया है. हम जागरूकता पैदा करेंगे और सरकार पर इसे वापस लेने का दबाव बनाएंगे.’
समाजवादी पार्टी के विधायक रईस शेख, जो सरकार के प्रस्ताव के मुखर आलोचक रहे हैं, ने अपनी पार्टी के रुख को दोहराया कि सरकार को ‘असंवैधानिक प्रस्ताव’ वापस लेने को मजबूर करने के लिए पार्टी कानूनी सहारा लेगी.
अखबार ने शेख के हवाले से लिखा, ‘किसी भी प्रस्ताव के लिए कानून की एक प्रक्रिया होती है. इस मामले में न तो कैबिनेट चर्चा हुई, न किसी से कोई बातचीत हुई, न जनता का सुझाव लिया और न ही अन्य निर्वाचित प्रतिनिधियों का. सरकारी प्रस्ताव में कोई प्रावधान (एसओपी) नहीं है कि इस पर आगे कैसे बढ़ा जाएगा. इसमें यह नहीं कहा गया है कि केवल महिला ही शिकायत कर सकती है, वास्तव में कोई- चाहे वह पड़ोसी हो या कोई संस्था, अंतरधार्मिक विवाह के बारे में समिति के पास आकर शिकायत कर सकती हैं और जानकारी मांग सकती हैं.’
उन्होंने आगे कहा, ‘हमने (सपा) भी कानूनी रुख अख्तियार करने का फैसला किया है. यह एक समुदाय विशेष की एक विशेष तरह की छवि बनाने का प्रयास है. और यह सिर्फ मुस्लिम समुदाय के बारे में नहीं है, यह एक असंवैधानिक सरकारी प्रस्ताव है और हमारे देश की भावना के खिलाफ है. ‘
पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) के वरिष्ठ वकील मिहिर देसाई ने कहा कि यह प्रस्ताव संविधान के अनुच्छेद 15 (भेदभाव को रोकना), 21 (जीवन का अधिकार जिसमें निजता का अधिकार शामिल है), और 25 (धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन है.
मिड डे के अनुसार, देसाई ने इस प्रस्ताव को भाजपा शासित राज्यों में लाए गए ‘लव-जिहाद’ कानून की शुरुआत बताते हुए कहा कि इस तरह के प्रस्ताव का उद्देश्य धर्मांतरण को रोकना है. ऐसे में जब कुछ उच्च न्यायालयों ने उन कानूनों पर रोक लगाई है, तब सरकार के इस प्रस्ताव को राजनीतिक रूप से चुनौती देना महत्वपूर्ण है.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, एनसीपी की लोकसभा सांसद सुप्रिया सुले ने लोगों से बड़े पैमाने पर सामने आकर महाराष्ट्र सरकार के ‘प्रतिगामी विचारों’ का विरोध करने की अपील की.
सुले ने कहा, ‘प्रगति के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण चाहिए होता है लेकिन वर्तमान में (नीतियों में) ठीक इसका उल्टा हो रहा है. नीतियां बनाना एक गंभीर मसला है. इसके कई ऐसे परिणाम भी होते हैं, जिनके बारे में सोचा नहीं गया होता. महाराष्ट्र पुराणपंथी सोच के खिलाफ आंदोलन में हमेशा सबसे आगे रहा है. केंद्र सरकार द्वारा हमारी कई प्रगतिशील नीतियां अपनाई गई हैं. हम इस फैसले का विरोध करेंगे.’
सुले ने जनता से हिंदुत्व समूहों द्वारा खड़े किए जा रहे ‘हिंदू-मुस्लिम मसलों’ से विचलित न होने का आग्रह करते हुए जोड़ा कि लोग देशभर में जनता को प्रभावित कर रहे बेरोजगारी और महंगाई के दो प्रमुख मुद्दों को लेकर आवाज उठाना जारी रखें.