मुरादाबाद की एक विशेष अदालत ने दो दिन पहले ही 15 साल पुराने एक मामले में सपा के राष्ट्रीय महासचिव आज़म ख़ान और उनके विधायक पुत्र अब्दुल्ला आज़म को दो साल की सज़ा सुनाई थी. जन प्रतिनिधित्व क़ानून के तहत दो साल या इससे अधिक की सज़ा पाने पर एक जनप्रतिनिधि की विधानसभा सदस्यता चली जाती है.
लखनऊ: समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान के बाद अब उनके बेटे अब्दुल्ला आजम की भी विधानसभा सदस्यता चली गई है. अब्दुल्ला रामपुर जिले की स्वार विधानसभा सीट से विधायक हैं.
हिंदुस्तान के मुताबिक विधानसभा सचिवालय ने स्वार सीट को बुधवार को रिक्त घोषित कर दिया.
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद की एक विशेष अदालत ने दो दिन पहले ही सोमवार को 15 साल पुराने एक मामले में समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय महासचिव आजम खान और उनके विधायक पुत्र अब्दुल्ला आजम को दो साल की सजा सुनाई थी, जबकि मामले में सात लोगों को दोषमुक्त कर दिया.
इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक, विधानसभा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ’15 साल पुराने एक मामले में अब्दुल्ला आजम को दो साल (जेल) की सजा सुनाए जाने के मुरादाबाद कोर्ट के आदेश के बाद उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया है.’
यह दूसरी बार है जब अब्दुल्ला की विधानसभा सदस्यता रद्द की गई है. पिछली उत्तर प्रदेश विधानसभा (2017-22) के दौरान भी एक मामले में उनकी विधानसभा की सदस्यता को रद्द किया गया था.
बता दें कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत यदि किसी जनप्रतिनिधि को दो साल या उससे अधिक की सजा सुनाई जाती है तो उसकी विधानसभा सदस्यता चली जाती है और सजा काटने के बाद छह साल और चुनाव नहीं लड़ सकता है.
मामला 2 जनवरी, 2008 का है, जब एक कार जिसमें अब्दुल्ला आजम और आजम खान यात्रा कर रहे थे, को मुरादाबाद जिले के छजलैट थाना क्षेत्र में उसकी खिड़कियों पर काली फिल्म लगी होने के कारण रोका गया था. चेकिंग के दौरान कार चला रहे अब्दुल्ला पुलिस के सामने वाहन के दस्तावेज पेश करने में विफल रहे. इसके बाद बहस शुरू हुई, जिसके बाद गाड़ी में पीछे बैठे आजम खान बाहर निकल आए, जिससे विवाद बढ़ गया था.
सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष ने बताया था कि इसके बाद सपा के कई सदस्य मौके पर पहुंचे और सड़क जाम करते हुए पुलिस के खिलाफ प्रदर्शन किया.
इस मामले को लेकर छजलैट थाना पुलिस ने अब्दुल्ला, उनके पिता आजम खान समेत नौ लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था.
दोनों नेताओं को आईपीसी की धारा 341 (गलत तरीके से रोकना) और 353 (सरकारी कर्मचारी को उसके कर्तव्य के निर्वहन से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल प्रयोग) और आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम के तहत दोषी पाया गया था.