साल 2019 में भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को समाप्त करने और और तत्कालीन जम्मू कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में पुनर्गठित करने के बाद लद्दाख क्षेत्र के लोग भारत के अन्य आदिवासी क्षेत्रों को संविधान की छठी अनुसूची के तहत प्रदान किए गए संवैधानिक सुरक्षा उपायों की मांग कर रहे हैं, जिससे उनकी जनसांख्यिकी, नौकरी और भूमि की रक्षा हो.
नई दिल्ली: अनुच्छेद 370 के तहत दिए गए विशेष दर्जे को रद्द कर लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के तीन साल से अधिक समय बाद इसे पूर्ण राज्य का दर्जा और संवैधानिक सुरक्षा उपायों की मांग करने के लिए यहां के सैकड़ों लोग बीते 15 फरवरी को दिल्ली में एकत्र हुए.
साल 2019 में भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को समाप्त करने और और तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में पुनर्गठित करने के बाद लद्दाख क्षेत्र के लोग भारत के अन्य आदिवासी क्षेत्रों को संविधान की छठी अनुसूची के तहत प्रदान किए गए संवैधानिक सुरक्षा उपायों की मांग कर रहे हैं, जिससे उनकी जनसांख्यिकी, नौकरी और भूमि की रक्षा हो.
पिछले कुछ महीनों से इन मांगों को लेकर क्षेत्र के लोग लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं.
द हिंदू के मुताबिक, लद्दाख के करगिल और लेह क्षेत्र के प्रतिनिधियों ने कहा कि सिक्किम के साथ इस क्षेत्र की तुलना करते हुए राज्य की उनकी मांग उचित है. उन्होंने कहा कि जब केवल 2.5 लाख की आबादी वाले (2011 की जनगणना के अनुसार) सिक्किम को राज्य का दर्जा दिया जा सकता है, तो वही लद्दाख के लिए किया जा सकता है, जिसकी आबादी लगभग 3 लाख है.
उन्होंने 2 जनवरी को गृह मंत्रालय द्वारा गठित उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) को खारिज करते हुए कहा कि अब से कोई भी संवाद सीधे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ होगा. उन्होंने दावा किया कि समिति उन्हें गुमराह करने के लिए सिर्फ एक बहाना है.
लद्दाख से भाजपा के पूर्व सांसद थूपस्तान छेवांग ने कहा कि गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय की अध्यक्षता वाली समिति के पास कोई वास्तविक शक्ति नहीं है और उन्होंने उनकी मांगों को स्वीकार नहीं किया.
सांसद ने दावा किया कि अक्टूबर 2019 में लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद से स्थानीय लोगों को एक भी नौकरी नहीं दी गई है.
द हिंदू के अनुसार, उन्होंने चेतावनी दी कि अगर लोगों की मांगें नहीं मानी गईं, तो वे विरोध को तेज करने के लिए तैयार हैं और इस वर्ष और अगले वर्ष के लिए एक ‘विरोध कैलेंडर’ तैयार किया गया है.
उन्होंने कहा, ‘हमारी कोई अलगाववादी मानसिकता नहीं है, इसलिए हमने लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा देने की मांग की है. करगिल और लेह के लोगों के बीच विभाजन पैदा करने का प्रयास किया गया. दिल्ली आने का मकसद देश के प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को अपनी बात सुनाना है.’
5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 को समाप्त कर तत्कालीन जम्मू कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों – जम्मू कश्मीर और लद्दाख – में विभाजित कर दिया गया था. इस कदम का शुरू में लद्दाख के लोगों ने स्वागत किया था, जिन्होंने वर्षों तक कश्मीर के ‘प्रभुत्व’ के बारे में शिकायत की थी. हालांकि बाद के वर्षों में यह धारणा निराशा में बदल गई.
वर्तमान में विरोध कर रहे नेताओं ने स्वीकार किया है कि वर्तमान परिदृश्य की तुलना में जम्मू कश्मीर का हिस्सा होने पर (लद्दाख की) व्यवस्था बेहतर थी.
सामाजिक-धार्मिक, राजनीतिक नेताओं के एकीकृत संगठन ‘लेह अपेक्स बॉडी’ और ‘करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस’ (केडीए) लद्दाख में इस आंदोलन की अगुवाई कर रहे हैं. राज्य के दर्जे और छठी अनुसूची के तहत शामिल करने की मांग के अलावा दो लोकसभा और एक राज्यसभा सीटों को भरने की भी मांग है, जो इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करती हैं.
द हिंदू के अनुसार, आंदोलन के एक प्रमुख नेता पर्यावरणविद् और कार्यकर्ता सोनम वांगचुक का बुधवार को मंच पर जोरदार स्वागत किया गया.
उन्होंने कहा, ‘लद्दाख पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील है. हम एक विधायिका (विधानसभा) वाले केंद्र शासित प्रदेश की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन बिना विधायिका वाला मिला. हमने सोचा कि यह बाद में होगा. हमने भाजपा को जीत दिलाई, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने छठी अनुसूची के बारे में बात करना बंद कर दिया.’
हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, उन्होंने कहा, ‘हमने स्वायत्तता के लिए सत्ता के लोकतांत्रिक हस्तांतरण के रूप में बिना विधानसभा के केंद्र शासित प्रदेश के गठन को स्वीकार किया, लेकिन बाद में हमें एहसास हुआ कि यह केंद्रीकरण था.’
वांगचुक को हाल ही में छठी अनुसूची के तहत क्षेत्र को शामिल करने की मांग को लेकर भूख हड़ताल के दौरान नजरबंद कर दिया गया था. प्रशासन ने उनसे एक बॉन्ड पर हस्ताक्षर करवाने की कोशिश की थी कि ‘वह लेह में हाल की घटनाओं पर कोई बयान/टिप्पणी नहीं करेंगे या सभाओं में भाग नहीं लेंगे’, जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया था.
बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 244 के तहत छठी अनुसूची आदिवासी आबादी की रक्षा करती है, साथ ही स्वायत्त विकास परिषदों, जो भूमि, सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि पर कानून बना सकती हैं, के माध्यम से समुदायों को स्वायत्तता प्रदान करती है. अभी तक असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में 10 स्वायत्त परिषदें मौजूद हैं.