केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (मनरेगा) के लाभार्थियों पर मज़दूरी का वित्तीय बोझ भी राज्य सरकारों द्वारा उठाया जाना चाहिए, ताकि उन्हें भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने के लिए और अधिक सक्रिय बनाया जा सके.
नई दिल्ली: केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह ने बृहस्पतिवार को कहा कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के लाभार्थियों की मजदूरी का वित्तीय बोझ भी राज्य सरकारों द्वारा उठाया जाना चाहिए, ताकि उन्हें भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने के लिए और अधिक सक्रिय बनाया जा सके.
इस बीच, नरेगा संघर्ष मोर्चा के बैनर के तहत काम करने वाले शिक्षाविदों और कार्यकर्ताओं ने मंत्रालय के नवीनतम आदेश पर चिंता व्यक्त की, जो मजदूरी के लिए आधार-आधारित भुगतान को अनिवार्य बनाता है. मंत्रालय के अपने आंकड़ों के अनुसार, यह 57 प्रतिशत सक्रिय श्रमिकों को बाहर कर देगा.
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान गिरिराज सिंह ने कहा कि मनरेगा को एक नियमित रोजगार योजना के रूप में नहीं माना जाना चाहिए, क्योंकि यह केवल उन लोगों के लिए एक तंत्र है, जिन्हें कहीं और रोजगार नहीं मिल सकता है.
दिल्ली के जंतर मंतर में मनरेगा श्रमिकों द्वारा सरकार से कार्य स्थलों पर मोबाइल ऐप के माध्यम से हाजिरी दर्ज करने के आदेश को वापस लेने की मांग 100 दिनों से चल रहे धरने के बारे में पूछे जाने पर मंत्री ने दोहराया कि सरकार पारदर्शिता से समझौता नहीं कर सकती है.
उन्होंने कहा, ‘मेरा मानना है कि हमें मनरेगा कानून में संशोधन करने के लिए संसद जाना चाहिए ताकि वेतन बिल का 100 प्रतिशत केंद्र द्वारा वहन करने के बजाय योगदान (पैटर्न) को 60-40 के अनुपात (केंद्र और राज्यों के बीच विभाजन) में बदला जा सके. जब राज्य आंशिक रूप से बोझ उठाएंगे, तो वे भ्रष्टाचार के संबंध में अधिक सतर्क होंगे.’
बता दें कि केंद्र ने मनरेगा के लिए 2023-24 के केंद्रीय बजट आवंटन में पिछले वर्ष के संशोधित अनुमानों की तुलना में 33 प्रतिशत की कटौती की है.
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत अब तक केंद्र मजदूरी का 100 प्रतिशत वहन करता है, जिसका भुगतान सीधे श्रमिकों के बैंक एकाउंट में किया जाता है और उन्हें अपना काम पूरा करने के 15 दिनों के भीतर मजदूरी ट्रांसफर कर दी जाती है.
हालांकि, बीते 30 जनवरी को मंत्रालय ने 1 फरवरी से प्रभावी वेतन भुगतान के तरीके में बदलाव का आदेश जारी किया है.
अब तक मनरेगा प्रणाली में मजदूरी भुगतान के दो तरीकों की अनुमति दी गई है – ‘बैंक एकाउंट आधारित’ या ‘आधार-आधारित’. पहला तरीका सीधा बैंक ट्रांसफर था है और दूसरा तरीका आधार को एक वित्तीय पते के रूप में उपयोग करता है और व्यक्ति के आधार से जुड़े एकाउंट में पैसे भेजता है.
अपने सर्कुलर में मंत्रालय ने तर्क दिया कि आधार-आधारित भुगतान में बदलाव केवल कार्यक्रम के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए किया जा रहा है.
नरेगा संघर्ष मोर्चा के बैनर तले एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कार्यकर्ता निखिल डे, योगेंद्र यादव और ज्यां द्रेज ने कहा कि यह कदम विनाशकारी है और इससे कार्यक्रम को गहरा झटका लगेगा.
ज्यां द्रेज ने कहा, ‘काम करने के लिए आधार-आधारित विकल्प के लिए, न केवल श्रमिक के जॉब कार्ड और बैंक एकाउंट को आधार से जोड़ा जाना चाहिए, बल्कि एकाउंट भी भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम से जुड़ा होना चाहिए. मैपिंग के रूप में जाना जाने वाला यह कनेक्शन बहुत बोझिल हो सकता है, क्योंकि इसके लिए कठोर केवाईसी (अपने ग्राहक को जानें) आवश्यकताओं को पूरा करने, आधार डेटाबेस और बैंक खाते के बीच संभावित विसंगतियों को हल करने की आवश्यकता होती है.’
निखिल डे ने कहा, ‘मंत्रालय के अपने रिकॉर्ड के अनुसार सरकार के लगातार दबाव के बावजूद इस प्रक्रिया की जटिल प्रकृति के कारण केवल 43 प्रतिशत सक्रिय मनरेगा श्रमिक वर्तमान में आधार-आधारित भुगतान का उपयोग करते हैं. इस आदेश से सरकार वास्तव में कह रही है कि 57 प्रतिशत श्रमिकों को भुगतान नहीं किया जा जा सकेगा.’
उन्होंने कहा कि मोबाइल-आधारित ऐप से उपस्थिति दर्ज करने के आदेश के साथ यह अतिरिक्त बाधा, जिसमें श्रमिकों को नेविगेट करने में परेशानी हो रही है, योजना के तहत काम की मांग को स्वत: कम कर देगा.
डे ने कहा कि विस्तृत कागजी कार्रवाई के कारण कर्मचारियों को नए नियम का पालन करने में कई हफ्तों से लेकर कई महीनों तक का समय लग सकता है.
योगेंद्र यादव ने कहा कि आधार-आधारित भुगतान और एक मोबाइल ऐप से उपस्थिति दर्ज करने को योजना के लिए केंद्रीय बजट के आवंटन में भारी कटौती के संदर्भ में देखा जाना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘हमें अब यह अनुमान लगाने की आवश्यकता नहीं है कि बजट में इतनी भारी कटौती क्यों की गई. सरकार अच्छी तरह से जानती थी कि वह क्या कर रही है. इतने सारे फिल्टर (नियम) जोड़कर, वह कृत्रिम रूप से मांग को कम और इस तरह से खर्च को भी कम करना चाहती है.’
मालूम हो कि मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में मनरेगा के तहत सबसे कम राशि का आवंटन किया गया है. 2023-24 बजट में मनरेगा के लिए आवंटन में आश्चर्यजनक रूप से भारी कमी करते हुए इसे 60,000 करोड़ रुपये किया गया. वित्त वर्ष 2023 के लिए संशोधित अनुमान 89,400 करोड़ रुपये था, जो 73,000 करोड़ रुपये के बजट अनुमान से अधिक था.