हिंडनबर्ग रिपोर्ट जारी होने के बाद कटघरे में आए अडानी समूह से संबंधित मामले की संयुक्त संसदीय समिति से जांच कराने की मांग करते हुए कांग्रेस ने पूछा कि टैक्स हेवन देशों से संचालित ऑफशोर शेल कंपनियों के ज़रिये भारत भेजे जा रहे काले धन का असली मालिक कौन है? क्या यह चीन और पाकिस्तान से आया पैसा है?
नई दिल्ली: अडानी-हिंडनबर्ग विवाद पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कांग्रेस ने शुक्रवार (17 फरवरी) को पूछा कि वह अडानी समूह के खिलाफ धोखाधड़ी के आरोपों की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की जांच का आदेश देने से क्यों डरते हैं और वह किसे बचाने की कोशिश कर रहे हैं.
द हिंदू के मुताबिक, कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने जयपुर में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि अडानी समूह के कारण छोटे निवेशकों ने 10.5 लाख करोड़ रुपये गंवा दिए और भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) जैसे सरकारी नियामक चुप हैं.
वल्लभ कांग्रेस द्वारा चलाई जा रही श्रृंखला ‘हम अडानी के हैं कौन’ के तहत जयपुर में थे.
मालूम हो कि अमेरिकी निवेश अनुसंधान फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने बीते माह अडानी समूह पर धोखाधड़ी के आरोप लगाए थे, जिसके बाद समूह की कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट आई. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि दो साल की जांच में पता चला है कि अडानी समूह दशकों से ‘स्टॉक हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी’ में शामिल रहा है. अडानी समूह ने आरोपों को झूठा करार देकर खारिज किया है.
कांग्रेस समेत विपक्षी दल आरोपों की जेपीसी जांच या सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग कर रहे हैं.
वल्लभ ने कहा, ‘कांग्रेस ने अडानी समूह से संबंधित मामलों पर संसद में सवाल पूछा, इसे सदन की कार्यवाही से हटा दिया गया. अडानी समूह को विदेशी शेल कंपनियों से प्राप्त काला धन किसका है? मोदी जी जेपीसी जांच का आदेश देने से क्यों डरते हैं? आप किसे बचाना चाहते हैं.’
उन्होंने आरोप लगाया, ‘छोटे निवेशकों ने अडानी समूह के कारण 10.5 लाख करोड़ रुपये गंवा दिए और सेबी, आरबीआई एवं वित्त विभाग चुप्पी साधे बैठे हैं.’
वल्लभ ने कहा कि उनकी पार्टी किसी व्यक्ति या पूंजीवाद के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह एकाधिकार और क्रोनी कैपिटलिज्म के खिलाफ है.
उन्होंने कहा, ‘हम किसी व्यक्ति के 609वें से दुनिया के दूसरे सबसे अमीर आदमी बनने के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन हम क्रोनी कैपिटलिज्म के खिलाफ हैं. देश के अन्य औद्योगिक समूहों को यह फॉर्मूला क्यों नहीं मिल रहा है? हम ‘अमृत काल’ के खिलाफ नहीं हैं, हम मित्रकाल के खिलाफ हैं.’
कांग्रेस नेता ने पूछा कि क्या यह एक संयोग है कि जब भी मोदी विदेश यात्रा करते हैं तो अडानी समूह किसी न किसी बड़ी परियोजना को अंजाम देता है.
वहीं, वरिष्ठ कांग्रेस नेता अजय माकन ने भी पूछा कि क्यों नरेंद्र मोदी सरकार अडानी-हिंडनबर्ग विवाद में जेपीसी का गठन करने से डर रही है? उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हवाई अड्डों और बंदरगाहों जैसे रणनीतिक क्षेत्रों को एक ही कंपनी द्वारा संभालने का मुद्दा देश की राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है.
उन्होंने कहा कि अडानी समूह के साथ भाजपा शासित केंद्र के जुड़ाव से क्रोनी कैपिटलिज्म और ‘सरकार द्वारा प्रायोजित निजी एकाधिकार’ के निर्माण का आभास होता है.
माकन ने पूछा, ‘कांग्रेस पार्टी मोदी सरकार से पूछना चाहती है कि वह इस मुद्दे पर जेपीसी बनाने से क्यों डरती है? अगर तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार (कांग्रेस) हर्षद मेहता घोटाले के लिए और अटल बिहारी वाजपेयी (भाजपा) सरकार केतन पारेख घोटाले के लिए जेपीसी बना सकती थीं, तो आप अडानी के मामले में जेपीसी क्यों गठित नहीं कर रहे हैं.’
हाल ही में एक साक्षात्कार में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के इस दावे के बारे में पूछे जाने पर कि कांग्रेस के दौर में 12 लाख करोड़ रुपये से अधिक के घोटाले हुए थे, माकन ने कहा कि भाजपा सरकार अपने 9 साल के शासन में इन मामलों में किसी को गिरफ्तार करने या भ्रष्टाचार के लिए दोषी साबित करने में विफल रही है.
उन्होंने कहा कि यदि वे कुछ कर नहीं सकते हैं तो उन्हें कुछ कहने का अधिकार भी नहीं है.
माकन ने कहा, ‘कांग्रेस मामले में जांच के लिए जेपीसी की मांग कर रही है. कम से कम हमें जांच के लिए वह मौका तो दें. आप हमें जांच से वंचित कर रहे हैं.’
उन्होंने कहा कि कांग्रेस इस मुद्दे की जेपीसी जांच के लिए सरकार पर दबाव जारी रखेगी क्योंकि वह ‘क्रोनी पूंजीपतियों को फंड करने के लिए सरकारी खजाने की खुली लूट’ को लेकर चिंतित है.
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘लोग जानना चाहते हैं कि कैसे एक संदिग्ध साख और टैक्स हेवन देशों में संचालित ऑफशोर शेल कंपनियों से कथित जुड़ाव रखने वाला समूह भारत की संपत्तियों पर एकाधिकार जमा रहा है, लेकिन सभी सरकारी एजेंसियां या तो परिदृश्य से गायब हैं या उस प्रक्रिया को सुविधाजनक बना रही हैं.’
माकन ने कहा कि जब भी सार्वजनिक संपत्ति का निजीकरण होता है तो दो बातों का ख्याल रखा जाता है- पहला कि ‘एक निविदा, खुली बोली’ और दूसरा कि कोई एकाधिकार नहीं होना चाहिए. इस सरकार ने अपने करीबी पूंजीपतियों की मदद के लिए इन दोनों चीजों को किनारे कर दिया है.
उन्होंने अडानी समूह को रणनीतिक क्षेत्रों के सौदे देने को राष्ट्र के लिए खतरा करार देते हुए कहा, ‘जो बात मुझे परेशान करती है वो यह है कि जिस कंपनी को विदेशों में स्थित संस्थाओं से 37,000 करोड़ रुपये और 1,23,000 करोड़ रुपये मिले हैं, उसे हवाई अड्डों और बंदरगाहों जैसे रणनीतिक क्षेत्रों को सौंप दिया गया है. फिर यह देश के लिए सबसे बड़ा खतरा है.’
वल्लभ की तरह ही माकन ने भी पूछा कि देश जानना चाहता है कि टैक्स हेवन देशों से संचालित ऑफशोर शेल कंपनियों के जरिये भारत में भेजे जा रहे काले धन का असली मालिक कौन है.
उन्होंने कहा, ‘अजीब बात यह है कि यह सरकार यह जांच करने को भी तैयार नहीं है कि यह पैसा कहां से आ रहा है, क्या यह चीन और पाकिस्तान से आया पैसा है.’
मालूम हो कि अमेरिकी निवेश अनुसंधान फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट सामने आने के बाद अडानी समूह ने बीते 26 जनवरी को कहा था कि वह अपनी प्रमुख कंपनी के शेयर बिक्री को नुकसान पहुंचाने के प्रयास के तहत ‘बिना सोचे-विचारे’ काम करने के लिए हिंडनबर्ग रिसर्च के खिलाफ ‘दंडात्मक कार्रवाई’ को लेकर कानूनी विकल्पों पर गौर कर रहा है.
इसके जवाब में हिंडनबर्ग रिसर्च ने कहा था कि वह अपनी रिपोर्ट पर पूरी तरह कायम है. कंपनी ने यह भी कहा था कि अगर अडानी समूह गंभीर है, तो उसे अमेरिका में भी मुकदमा दायर करना चाहिए, जहां हम काम करते हैं. हमारे पास कानूनी प्रक्रिया के दौरान मांगे जाने वाले दस्तावेजों की एक लंबी सूची है.
इसके बाद बीते 30 जनवरी को अडानी समूह ने हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोपों के जवाब में 413 पृष्ठ का ‘स्पष्टीकरण’ जारी किया था. अडानी समूह ने इन आरोपों के जवाब में कहा था कि यह हिंडनबर्ग द्वारा भारत पर सोच-समझकर किया गया हमला है. समूह ने कहा था कि ये आरोप और कुछ नहीं सिर्फ ‘झूठ’ हैं.
समूह ने कहा था, ‘यह केवल किसी विशिष्ट कंपनी पर एक अवांछित हमला नहीं है, बल्कि भारत, भारतीय संस्थाओं की स्वतंत्रता, अखंडता और गुणवत्ता, तथा भारत की विकास गाथा और महत्वाकांक्षाओं पर एक सुनियोजित हमला है.’
अडानी समूह के इस जवाब पर पलटवार करते हुए हिंडनबर्ग समूह की ओर से बीते 31 जनवरी को कहा गया था कि धोखाधड़ी को ‘राष्ट्रवाद’ या ‘कुछ बढ़ा-चढ़ाकर प्रतिक्रिया’ से ढका नहीं जा सकता.
हिंडनबर्ग रिसर्च ने प्रतिक्रिया में यह भी जोड़ा था कि धोखाधड़ी, धोखाधड़ी ही होती है चाहे इसे दुनिया के सबसे अमीर आदमी ने अंजाम क्यों न दिया हो.