बीबीसी-हिंडनबर्ग मामले को ऐसे दिखाया जा रहा है कि भारत पर विदेशी ताक़तें हमला कर रही हैं

बीबीसी-हिंडनबर्ग मामले को भारतीय मीडिया इस तरह पेश कर रहा है कि यह भारत के ट्विन टावरों पर किसी हमले से कम नहीं है. ये ट्विन टावर हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत के सबसे बड़े उद्योगपति गौतम अडानी. इन दोनों के ख़िलाफ़ लगाए गए आरोप हल्के नहीं हैं.

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(फोटो साभार: पीटीआई/फेसबुक)

बीबीसी-हिंडनबर्ग मामले को भारतीय मीडिया इस तरह पेश कर रहा है कि यह भारत के ट्विन टावरों पर किसी हमले से कम नहीं है. ये ट्विन टावर हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत के सबसे बड़े उद्योगपति गौतम अडानी. इन दोनों के ख़िलाफ़ लगाए गए आरोप हल्के नहीं हैं.

(फोटो साभार: पीटीआई/फेसबुक)

भारत पर विदेशी ताक़तें हमला कर रही हैं. ख़ास कर ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका. या फिर हमारी सरकार चाहती है कि हम ऐसा ही सोचें. क्यों? क्योंकि पुरानी औपनिवेशिक ताक़तें और नए साम्राज्यवादी हमारी दौलत और ख़ुशहाली से जल रहे हैं. हमें बताया जा रहा है कि हमले का निशाना हमारे युवा राष्ट्र की राजनीतिक और आर्थिक बुनियादों पर है.

छुपकर वार करने वाले ख़ुफ़िया एजेंट हैं, बीबीसी और हिंडनबर्ग रिसर्च नाम की एक छोटी-सी अमेरिकी कंपनी. बीबीसी ने जनवरी में दो हिस्सों में एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म प्रसारित की. जिसका नाम है ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’.

हिंडनबर्ग रिसर्च 38 वर्षीय नाथन एंडरसन की कंपनी है, जिसकी विशेषज्ञता ऐसी गतिविधियों में है, जिसे एक्टिविस्ट शॉर्ट-शेलिंग के नाम से जाना जाता है.

बीबीसी-हिंडनबर्ग मामले को भारतीय मीडिया इस तरह पेश कर रहा है कि यह भारत के ट्विन टावरों पर किसी हमले से कम नहीं है. ये ट्विन टावर हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत के सबसे बड़े उद्योगपति गौतम अडानी, जो अभी हाल तक दुनिया के तीसरे सबसे अमीर आदमी थे. इन दोनों के ख़िलाफ़ लगाए गए आरोप हल्के नहीं हैं.

बीबीसी इशारा करती है कि मोदी ने सामूहिक क़त्लेआम को उकसाया. वहीं, 24 जनवरी को प्रकाशित हिंडनबर्ग रिपोर्ट ने अडानी पर ‘कॉरपोरेट इतिहास की सबसे बड़ी जालसाज़ी’ करने का आरोप लगाया है (अडानी समूह ने इस आरोप का मजबूती से खंडन किया).

मोदी और अडानी की जान-पहचान दशकों पुरानी है. 2002 के मुसलमानों के सामूहिक क़त्लेआम के बाद से उन दोनों के लिए हालात सुधरने लगे थे.

गुजरात में यह क़त्लेआम तब हुआ, जब मुसलमानों को रेल के एक डिब्बे में आग लगाने का ज़िम्मेदार ठहराया गया, जिसमें 59 हिंदू तीर्थयात्री ज़िंदा जलकर मर गए थे. इस क़त्लेआम के कुछ ही महीनों पहले मोदी राज्य के मुख्यमंत्री नियुक्त किए गए थे.

उस वक़्त गुजरात के क़स्बों और गांवों में आक्रामक हिंदू भीड़ द्वारा ‘बदले में’ मुसलमानों के ख़ुलेआम क़त्ल और बलात्कारों पर भारत ख़ौफ़ से सहम गया था.

भारतीय उद्योग परिसंघ (कन्फेडरेशन ऑफ़ इंडियन इंडस्ट्री) के पुराने फ़ैशन के कुछ सदस्यों ने मोदी के प्रति अपनी नाख़ुशी सार्वजनिक रूप से ज़ाहिर की थी. इसी मौक़े पर गौतम अडानी नमूदार होते हैं.

गुजराती उद्योगपतियों के एक छोटे-से समूह के साथ, उन्होंने ‘रिसर्जेंट ग्रुप ऑफ़ गुजरात’ नाम से कारोबारियों का एक नया मंच बनाया. उन्होंने आलोचना करने वालों को ख़ारिज करते हुए मोदी का समर्थन किया, जिन्होंने ‘हिंदू हृदय सम्राट’ के रूप में, सही-सही कहें तो हिंदू वोट बैंक को एकजुट करने वाले एक नेता के रूप में, अपना नया राजनीतिक करिअर शुरू किया था.

2003 में उन्होंने वाइब्रेंट गुजरात नाम से निवेशकों का एक शिखर सम्मेलन आयोजित किया. इस तरह उस चीज़ का जन्म हुआ जिसे ‘विकास’ के गुजरात मॉडल के नाम से जाना जाता है: कॉरपोरेट दुनिया की भारी मदद से मजबूत होता हिंसक हिंदू राष्ट्रवाद.

गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में तीन कार्यकालों के बाद 2014 में मोदी भारत के प्रधानमंत्री चुने गए. दिल्ली में शपथ ग्रहण समारोह के लिए वे एक निजी जेट में सवार होकर आए, जिसके ऊपर बड़े अक्षरों में अडानी का नाम जगमगा रहा था.

मोदी के नौ बरसों के कार्यकाल में अडानी की दौलत 8 अरब डॉलर से बढ़कर 137 अरब डॉलर हो गई है. अकेले 2022 में उन्होंने 72 अरब डॉलर बनाए, जो दुनिया में उनके ठीक नीचे के नौ अरबपतियों की मिली-जुली दौलत से भी अधिक है.

अब अडानी समूह का एक दर्जन व्यापारिक बंदरगाहों पर नियंत्रण है, जहां से भारत में माल की कुल आवाजाही का 30 फ़ीसदी संचालित होता है. उनके हाथ में सात हवाई अड्डे हैं, जहां से भारत के कुल 23 फ़ीसदी हवाई मुसाफ़िर आते-जाते हैं.

भारत के कुल अनाज का 30 फ़ीसदी हिस्सा अडानी के नियंत्रण वाले गोदाम घरों (वेयर हाउस) में जमा है. वे भारत में निजी क्षेत्र में बिजली पैदा करने वाले सबसे बड़े बिजली घरों के मालिक हैं या उन्हें चलाते हैं. विकास का गुजरात मॉडल इस तरह लागू हुआ है और कहीं बड़े पैमाने पर लागू हुआ है.

लोग अब मज़ाक में कहते हैं, ‘पहले अडानी के हवाई जहाज़ में मोदी जाते थे, अब मोदी के हवाई जहाज़ में अडानी जाते हैं.’ और अब दोनों हवाई जहाज़ों के इंजन में ख़राबी आ गई है. ख़ुद को भारतीय झंडे में लपेट लेने से क्या वे इस संकट से बाहर निकल सकते हैं?

बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ का पहला भाग (जिसमें एक साक्षात्कार में कुछ पलों के लिए मैं आती हूं) 2002 के गुजरात जनसंहार के बारे में है – सिर्फ़ हत्याओं के ही बारे में नहीं, बल्कि यह कुछ पीड़ितों के 20 साल लंबे उस सफ़र के बारे में भी है, जिसे उन्होंने भारत की क़ानूनी व्यवस्था की भूलभुलैया में, अपने यक़ीन को सीने से लगाए, इंसाफ़ और राजनीतिक जवाबदेही की उम्मीद में तय किया है.

डॉक्यूमेंट्री में आंखों देखी गवाहियां शामिल हैं, जिनमें सबसे दहला देने वाली गवाही इम्तियाज़ पठान की है, जिन्होंने ‘गुलबर्ग सोसायटी जनसंहार’ में अपने परिवार के 10 लोगों को खो दिया था. गुलबर्ग सोसायटी में हुआ क़त्लेआम उन दिनों गुजरात में हुए इसी तरह के कई ख़ौफ़नाक क़त्लेआमों में से एक था.

पठान बताते हैं कि कैसे वे सब लोग कांग्रेस के एक पूर्व सांसद एहसान जाफ़री के घर में पनाह लिए हुए थे और बाहर भीड़ जमा हो रही थी. वे बताते हैं कि जाफ़री ने उम्मीद हारते हुए, मदद के लिए अंतिम बार नरेंद्र मोदी को फ़ोन किया और जब उन्हें इसका एहसास हुआ कि कोई मदद नहीं आएगी, तो वे अपने घर से बाहर निकले और खुद को भीड़ के हवाले कर दिया.

उन्हें उम्मीद थी कि वे भीड़ को इसके लिए मना लेंगे कि बचने के लिए उनकी पनाह में आए लोगों को बख़्श दिया जाए. जाफ़री को अंग-अंग काटकर मार डाला गया और उनकी देह को इस तरह जला दिया गया कि उनकी कोई पहचान बाक़ी नहीं रही. इसके बाद घंटों तक क़त्लेआम और तबाही जारी रही.

जब मामले की अदालती सुनवाई शुरू हुई, तो गुजरात सरकार ने इस बात से इन्कार किया कि कोई फ़ोन आया था, जबकि इस बात का ज़िक्र अकेले इम्तियाज़ पठान ने ही नहीं, बल्कि कई दूसरे गवाहों ने भी अपने बयानों में किया था. सरकार के इनकार को सच मान लिया गया.

बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री भी साफ़-साफ़ इसका ज़िक्र करती है. भारत सरकार डॉक्यूमेंट्री को चाहे जितना बदनाम करे, लेकिन असल में यह जनसंहार के बारे में भारतीय जनता पार्टी और भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के नज़रिये को पेश करने की हर कोशिश करती है.

24 जून 2022 को इस न्यायालय ने एहसान जाफ़री की बेवा ज़किया जाफ़री की याचिका को ख़ारिज कर दिया, जिसमें ज़किया ने आरोप लगाया था कि उनके पति के क़त्ल के पीछे एक बड़ी साजिश काम कर रही थी.

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि उनकी याचिका ‘प्रक्रिया का दुरुपयोग’ थी और सुझाव दिया कि इस मामले की क़ानूनी लड़ाई जारी रखने वाले लोगों पर मुक़दमा चलाया जाए. मोदी के समर्थकों ने इस फ़ैसले को मोदी की बेगुनाही पर मुहर की तरह लेते हुए इस पर जश्न मनाया.

डॉक्यूमेंट्री गृहमंत्री अमित शाह के साथ एक इंटरव्यू भी दिखाती है, जो गुजरात से आने वाले मोदी के एक और दोस्त हैं. शाह मोदी की तुलना भगवान शिव से करते हैं, जिन्होंने 19 वर्षों तक ‘विष पान करके गले में उतार’ लिया. सर्वोच्च न्यायालय की ‘क्लीन चिट’ के बाद मंत्री ने कहा था, ‘सत्य सोने की तरह चमकता हुआ बाहर आया है.’

बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री के जिस हिस्से पर भारत सरकार ने सबसे अधिक नाराज़गी दिखाई है, उसमें ब्रिटिश फ़ॉरेन ऑफ़िस द्वारा अप्रैल 2002 में तैयार की गई एक अंदरूनी रिपोर्ट को उजागर किया गया है, जिससे जनता अब तक वाकिफ़ नहीं थी.

फ़ैक्ट-फ़ाइंडिंग रिपोर्ट ने अनुमान लगाया था कि ‘कम से कम 2,000’ लोगों का क़त्ल किया गया था. इस रिपोर्ट में कहा गया कि सामूहिक क़त्लेआम की योजना पहले से ही बनाई गई थी, जिसमें ‘नस्ली सफ़ाए की सभी ख़ास निशानियां’ दिखाई देती हैं.

रिपोर्ट कहती है कि विश्वसनीय संपर्कों ने उन्हें बताया था कि पुलिस को चुपचाप खड़े रहने के आदेश दिए गए थे. रिपोर्ट बहुत सीधे-सीधे मोदी की तरफ़ उंगली उठाती है.

यह दृश्य सहमा देने वाला था, जिसमें एक पूर्व ब्रिटिश कूटनीतिज्ञ, जो फ़ैक्ट-फ़ाइंडिंग मिशन के एक जांचकर्ता थे, अभी भी इतने सतर्क हैं कि उन्होंने अनाम रहने का फैसला किया और कैमरे में बस उनकी पीठ दिखती है.

बीबीसी डॉक्यूमेंट्री का दूसरा भाग कम देखा गया, लेकिन यह कहीं अधिक डरावना है. यह प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल में मोदी द्वारा ख़तरनाक फूट और गहरी दरारों को बढ़ाने जाने के बारे में है.

ज़्यादातर भारतीयों के लिए यह हमारा रोज़मर्रा का अनुभव है; तलवारें लिए हुए भीड़; मुसलमानों के नस्ली सफ़ाए और मुसलमान औरतों के सामूहिक बलात्कार का आह्वान करते भगवाधारी धर्मात्मा, वह बेख़ौफ़ हौसला जिससे हिंदू सरेआम सड़कों पर मुसलमानों को पीट-पीट कर मार सकते हैं. ऐसी करतूतें करते हुए न सिर्फ़ वे अपना वीडियो बनाते हैं, बल्कि मोदी मंत्रिमंडल के वरिष्ठ मंत्री फूल-मालाओं से उनका स्वागत सत्कार करते हैं.

‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ डॉक्यूमेंट्री को सिर्फ़ ब्रिटिश दर्शकों के लिए ही प्रसारित किया गया और यह ब्रिटेन तक सीमित था, लेकिन इसको दर्शकों ने यूट्यूब पर अपलोड किया और ट्विटर पर इसके लिंक पोस्ट किए गए.

इंटरनेट सरगर्म हुआ. भारत में छात्रों को चेतावनियां मिलीं कि वे न इसे डाउनलोड करें और न देखें. जब उन्होंने कुछ विश्वविद्यालय कैंपसों में सामूहिक रूप से इसे देखने का ऐलान किया, तो उनकी बिजली काट दी गई.

दूसरे कैंपसों में उन्हें डॉक्यूमेंट्री देखने से रोकने के लिए पुलिस पूरे लाव-लश्कर के साथ पहुंच गई. सरकार ने यूट्यूब और ट्विटर को सभी लिंकों और अपलोडों को डिलीट करने के निर्देश दिए. मुक्त अभिव्यक्ति की पैरवीकार बनने वाली ये कंपनियां फ़ौरन मान गईं.

मेरे कुछ मुसलमान दोस्त उलझन में थे. ‘वे क्यों इस पर पाबंदी लगाना चाहते हैं. गुजरात क़त्लेआम ने तो हमेशा उनकी मदद की है और फिर यह एक चुनावी साल भी है.’

और तभी दूसरे टावर पर भी हमला हुआ.

करीब 400 पन्नों की हिंडनबर्ग रिपोर्ट उसी दिन प्रकाशित हुई, जिस दिन बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री का दूसरा भाग प्रसारित हुआ था. रिपोर्ट उन सवालों पर तो ग़ौर करती ही है, जिसे भारतीय पत्रकार पहले से उठाते रहे हैं, यह उनसे आगे भी जाती है.

यह आरोप लगाती है कि अडानी समूह ‘शेयरों की भारी धांधली और हिसाब को लेकर भारी फर्जीवाड़े की योजना’ में लिप्त रहा है, जिसने ऑफ़शोर शेल कंपनियों का इस्तेमाल करके, (शेयर बाज़ार में) सूचीबद्ध अपनी मुख्य कंपनियों के मूल्य को फ़र्ज़ी तरीक़े से बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया.

इससे इसके अध्यक्ष की कुल संपत्ति में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई. हिंडनबर्ग रिपोर्ट के मुताबिक़ अडानी की सूचीबद्ध कंपनियों में से सात को उनके वास्तविक मूल्य से 85 प्रतिशत अधिक मूल्य पर दिखाया गया.

ख़बरों के मुताबिक़, इन मूल्यों के आधार पर कंपनियों ने अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों से और देश के भारतीय स्टेट बैंक जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और भारतीय जीवन बीमा निगम से अरबों डॉलर उधार लिए, जहां करोड़ों आम भारतीय लोग अपनी जीवन भर की कमाई जमा करते हैं.

अडानी समूह ने 413 पन्नों में हिंडनबर्ग रिपोर्ट का जवाब दिया. इसने दावा किया है कि भारतीय अदालतों ने समूह को किसी अवैध काम में शामिल नहीं पाया है और कहा कि हिंडनबर्ग के आरोप दुर्भावनापूर्ण और आधारहीन थे तथा वे भारत पर हमले के समान थे.

निवेशकों को मनाने के लिए इतना काफ़ी नहीं था. हिंडनबर्ग के विश्लेषण के प्रकाशन के बाद बाज़ार में फैली भगदड़ में अडानी समूह को 110 अरब डॉलरों का नुक़सान हुआ.

क्रेडिट सुइस, सिटी ग्रुप और स्टैंडर्ड चार्टर्ड ने मार्जिन लोन्स के लिए कोलैट्रल के रूप में अडानी के बॉन्ड्स को क़बूल करना बंद कर दिया. फ़्रांसीसी कंपनी टोटलएनर्जीज़ ने अडानी समूह के साथ पर्यावरण के अनुकूल एक हाइड्रोजन उपक्रम के क़रारनामे पर फ़ैसला टाल दिया, जिस पर अभी दस्तख़त नहीं हुए थे. ख़बर है कि बांग्लादेश सरकार भी बिजली संबंधी क़रारनामे में बदलाव करना चाहती है.

लॉर्ड जो जॉनसन ने लंदन स्थित कंपनी एलारा कैपिटल के निदेशक के पद से इस्तीफ़ा दे दिया. यह उन कंपनियों में से एक है, जिनका ज़िक्र करते हुए हिंडनबर्ग रिपोर्ट ने अडानी समूह से उनका रिश्ता जोड़ा है. जो जॉनसन ब्रिटिश सरकार के एक मंत्री थे और वे पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के भाई हैं.

हिंडनबर्ग रिपोर्ट से पैदा हुए राजनीतिक तूफ़ान में वे विपक्षी पार्टियां एक साथ आईं जो आपस में लड़ती रहती हैं और उन्होंने एक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) द्वारा इसकी जांच कराने की मांग की.

सरकार ने अपने कान बंद कर लिए. उसमें भारतीय नियामक व्यवस्थाओं को लेकर अंतरराष्ट्रीय वित्तीय पूंजी के प्रबंधकों की संभावित चिंताओं के बारे में एक ख़तरनाक बेपरवाही दिखाई देती है.

संसद में जारी बजट सत्र में दो विपक्षी सांसद तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा और कांग्रेस के राहुल गांधी बोलने के लिए खड़े हुए. ये दोनों ही बरसों से अडानी समूह के बारे में सवाल करते रहे हैं.

महुआ मोइत्रा ने जो सवाल किए, उनमें से कुछ ये थे: गृह मंत्रालय ने ‘ए’ ग्रुप को बंदरगाहों और हवाई अड्डों के संचालन के लिए सुरक्षा अनुमति (क्लियरेंस) कैसे दे दी, जबकि यह अपने एक शेयरहोल्डर की पहचान को जाहिर करने से इनकार करती रही है.

समूह ने मॉरीशस स्थित छह फ़ंडों से फ़ॉरेन पोर्टफ़ोलियो इन्वेस्टमेंट में करीब 42,000 करोड़ रुपये (करीब 5 अरब डॉलर) जमा कर लिए, जबकि उन सभी के पते और कंपनी सचिव समान थे? किस आधार पर सार्वजनिक सेक्टर के स्टेट बैंक और भारतीय जीवन बीमा निगम ने समूह में अपना निवेश जारी रखा?

राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी के इजरायल, ऑस्ट्रेलिया और बांग्लादेश दौरों का ज़िक्र किया और पूछा, ‘और इनमें से कितने देशों से, जहां आपने दौरा किया था, अडानी जी को अनुबंध मिला?’

उन्होंने कुछ की सूची पेश की: इजरायल से एक रक्षा सौदा, ऑस्ट्रेलिया में एक कोयला खदान के लिए भारतीय स्टेट बैंक से एक अरब डॉलर का क़र्ज़, बांग्लादेश के लिए 1,600 मेगावाट बिजली परियोजना. आखिर में, और सबसे अहम रूप से, राहुल गांधी ने पूछा कि गुप्त चुनावी बॉन्डों में भाजपा को अडानी समूह से कितना धन हासिल हुआ है.

असली बात यही है. 2016 में भाजपा ने चुनावी बॉन्डों की योजना लागू की थी, जिसमें कॉरपोरेट कंपनियों को अपनी पहचान सार्वजनिक हुए बगैर राजनीतिक दलों को पैसे देने की इजाज़त मिल गई.

हां, गौतम अडानी दुनिया के सबसे अमीर आदमियों में से एक हैं, लेकिन अगर आप चुनावों के दौरान भाजपा की तड़क-भड़क को देखें, तो भाजपा न सिर्फ़ भारत की, बल्कि शायद दुनिया की भी सबसे अमीर राजनीतिक पार्टी है. ये दोनों पुराने दोस्त क्या अपना खाता कभी हमें दिखाएंगे? क्या उनके खाते अलग-अलग हैं भी?

बहरहाल महुआ मोइत्रा के सवालों को नज़रअंदाज़ कर दिया गया. राहुल गांधी के ज़्यादातर सवाल संसदीय रिकॉर्ड से ही हटा दिए गए.

प्रधानमंत्री मोदी का जवाब पूरे 90 मिनटों तक चला. उन्होंने वही किया जो वे ख़ूब करते हैं – उन्होंने ख़ुद को एक गर्वीले भारतीय के रूप में पेश किया, जो एक अंतरराष्ट्रीय साजिश का शिकार है, जो कभी सफल नहीं रहेगी, क्योंकि उन्होंने 1.4 अरब लोगों के भरोसे से बना सुरक्षा कवच पहन रखा है, जिसे विपक्ष कभी भेद नहीं पाएगा.

इस छवि से (जो राजनीति में अपने शेयरों का मूल्य बढ़ाकर बताने के बराबर है) उनकी खोखली बयानबाज़ी का हर पैराग्राफ़ सराबोर था, दूसरों का मखौल उड़ाते हुए, आक्रामक टिप्पणियों और व्यक्तिगत अपमानों से लबरेज़.

लगभग हरेक पंक्ति के स्वागत में भाजपाई बेंचों की तरफ़ से टेबल थपथपाए गए, साथ में ‘मोदी! मोदी! मोदी!’ का जाप चलता रहा. उन्होंने कहा कि कमल के ऊपर चाहे जितना भी कीचड़ फेंका जाए, यह खिल कर रहेगा.

उन्होंने एक बार भी अडानी का ज़िक्र नहीं किया. शायद उनका मानना हो कि यह कोई ऐसी बहस नहीं है, जिससे उनके मतदाताओं का कोई सरोकार होना चाहिए, क्योंकि उनमें से करोड़ों लोग बेरोज़गार हैं, वे बेहद गरीबी में बस गुज़ारे लायक राशन पर जीते हैं (जो उन्हें मोदी के फोटो वाले पैकेटों में मिलता है) और वे यह समझ भी नहीं पाएंगे कि 100 अरब डॉलर का मतलब क्या होता है.

ज़्यादातर भारतीय मीडिया ने मोदी के भाषण को शानदार अंदाज़ में पेश किया. क्या यह एक इत्तेफ़ाक़ था कि अगले कुछ दिनों में कई सारे राष्ट्रीय और क्षेत्रीय अख़बारों में उनकी एक बड़ी-सी तस्वीर के साथ पहले पन्ने पर विज्ञापन छापा, जिसमें निवेशकों के एक और शिखर सम्मेलन की घोषणा की गई थी. इस बार इसे उत्तर प्रदेश में होना है.

कई दिनों के बाद 14 फ़रवरी को गृह मंत्री ने एक इंटरव्यू में अडानी के मुद्दे पर कहा कि भाजपा के लिए ‘डरने या छुपाने के लिए कोई बात नहीं’ है.

एक बार फिर उन्होंने संयुक्त संसदीय समिति की संभावना पर कान बंद कर लिए और विपक्षी दलों को सलाह दी कि वे अदालत जाएं. अभी जब वे बोल ही रहे थे कि मुंबई और दिल्ली में पुलिस दफ़्तरों को घेरने लगी थी और टैक्स अधिकारियों ने छापे मारने शुरू कर दिए. नहीं, अडानी के दफ़्तरों को नहीं. बीबीसी के.

15 फ़रवरी को ख़बरों का पूरा माहौल ही बदल गया था और नव-साम्राज्यवादी हमले के बारे में रिपोर्टिंग भी. ‘गर्मजोशी से भरी और उत्पादक’ बैठकों के बाद प्रधानमंत्री मोदी, राष्ट्रपति जो बाइडन और राष्ट्रपति एमानुएल मैक्रों ने घोषणा की कि भारत 470 बोइंग और एयरबस हवाई जहाज़ ख़रीदेगा.

बाइडन ने कहा कि इस सौदे से 10 लाख से अधिक अमेरिकी नौकरियां पैदा होंगी. एयरबस में इंजन रोल्स रॉयस का होगा. ‘ब्रिटेन के उभरते हुए विमान निर्माण सेक्टर के लिए आसमान ही सीमा है,’ प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने कहा.

इस तरह खिलता है कमल, ख़ून और दौलत के दलदल में. और निश्चित रूप से सच्चाई सोने की तरह चमकती हुई बाहर आती है.

(अरुंधति रॉय का यह लेख मूल रूप से द गार्जियन में प्रकाशित हुआ था. इसका हिंदी अनुवाद रियाजुल हक ने किया है.)