इनकम टैक्स ‘सर्वे’ पर बीबीसी ने कहा- हर सवाल जो उससे पूछा जाएगा, उसका उचित जवाब मिलेगा

बीबीसी ने एक बयान जारी कर कहा है कि आयकर विभाग के सर्वे के दौरान कई घंटे तक उसके के पत्रकारों को काम नहीं करने दिया गया. कई पत्रकारों के साथ विभाग के कर्मचारियों और पुलिसकर्मियों ने दुर्व्यवहार भी किया.

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(फोटो साभार: फेसबुक)

बीबीसी ने एक बयान जारी कर कहा है कि आयकर विभाग के सर्वे के दौरान कई घंटे तक उसके के पत्रकारों को काम नहीं करने दिया गया. कई पत्रकारों के साथ विभाग के कर्मचारियों और पुलिसकर्मियों ने दुर्व्यवहार भी किया.

(फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: साल 2002 के गुजरात दंगों के संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका पर आधारित बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ के सामने आने के कुछ दिन बाद इस संस्थान के दिल्ली और मुंबई स्थित दफ्तरों पर इनकम टैक्स विभाग द्वारा ‘छापा’ मारा गया है. विभाग के अधिकारियों ने कहा था कि वे ‘सर्वे’ के लिए आए हैं.

इनकम टैक्स ने एक बयान जारी करके दावा किया है कि ‘एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मीडिया कंपनी के दफ्तरों’ में सर्वे के बाद टैक्स का भुगतान करने में अनियमितताएं पाई गई हैं.

इस घटनाक्रम के बाद बीबीसी की ओर से एक बयान जारी किया है. इसके अनुसार, केंद्रीय वित्त मंत्रालय के अधीन काम करने वाले सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेस (सीबीडीटी) की ओर से जारी एक पन्ने के बयान में बीबीसी का नाम कहीं नहीं लिखा गया है.

बीबीसी ने कहा है कि ऐसे किसी भी आधिकारिक संदेश का उचित उत्तर दिया जाएगा, जो उसे आयकर विभाग से प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त होगा.

आयकर विभाग के अधिकारियों ने तीन दिनों तक बीबीसी के दिल्ली-मुंबई स्थित दफ्तरों में दस्तावेजों की पड़ताल की थी और बीबीसी के कुछ अधिकारियों और कर्मचारियों से पूछताछ की थी.

आयकर विभाग ने बयान में कहा है कि ‘सर्वे’ अभियान इस तरीके से किया गया, ताकि लगातार चलने वाली मीडिया/चैनल की गतिविधि को सुगम बनाया जा सके.

बीबीसी की ओर से कहा गया,

हालांकि इस दौरान कई घंटे बीबीसी के पत्रकारों को काम नहीं करने दिया गया. कई पत्रकारों के साथ आयकर विभाग के कर्मचारियों और पुलिसकर्मियों ने दुर्व्यवहार भी किया.

पत्रकारों के कंप्यूटरों की छान-बीन की गई, उनके फोन रखवा दिए गए और उनसे उनके काम के तरीकों के बारे में जानकारी ली गई. साथ ही दिल्ली दफ्तर में कार्यरत पत्रकारों को इस सर्वे के बारे में कुछ भी लिखने से रोका गया.

सीनियर एडिटर्स के लगातार कहने के बाद जब काम शुरू करने दिया गया तब भी हिंदी और अंग्रेजी के पत्रकारों को काम करने से और देर तक रोका गया. इन दोनों भाषाओं के पत्रकारों को इस तरह तब काम करने दिया गया, जब वे प्रसारण समय के नजदीक पहुंच चुके थे.

इससे पहले 14 फरवरी को भारत में बीबीसी के दिल्ली और मुंबई के दफ्तरों में शुरू हुआ इनकम टैक्स विभाग का ‘सर्वे’ 16 फरवरी की रात करीब 10 बजे पूरा हुआ.

बीबीसी के प्रवक्ता ने कहा, ‘आयकर विभाग के अधिकारी हमारे दिल्ली और मुंबई के दफ्तरों से जा चुके हैं. हम आयकर विभाग के अधिकारियों के साथ सहयोग करते रहेंगे और आशा करते हैं कि यह मामला जितनी जल्दी संभव हो, सुलझ जाएगा.’

बीबीसी की ओर से जारी बयान में कहा गया है, ‘हमारा कामकाज सामान्य हो रहा है और हम अपने पाठकों, श्रोताओं और दर्शकों को निष्पक्ष समाचार देने के लिए प्रतिबद्ध हैं.’

बीबीसी ने कहा, ‘हम भरोसेमंद, निष्पक्ष, अंतरराष्ट्रीय और स्वतंत्र मीडिया हैं, हम अपने उन सहकर्मियों और पत्रकारों के साथ खड़े हैं जो लगातार आप तक बिना भय और लोभ-लाभ के समाचार पहुंचाते रहेंगे.’

मालूम हो कि बीबीसी की ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ डॉक्यूमेंट्री में बताया गया है कि ब्रिटेन सरकार द्वारा करवाई गई गुजरात दंगों की जांच (जो अब तक अप्रकाशित रही है) में नरेंद्र मोदी को सीधे तौर पर हिंसा के लिए जिम्मेदार पाया गया था.

साथ ही इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और देश के मुसलमानों के बीच तनाव की भी बात कही गई है. यह 2002 के फरवरी और मार्च महीनों में गुजरात में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा में उनकी भूमिका के संबंध में दावों की पड़ताल भी करती है, जिसमें एक हजार से अधिक लोगों की जान चली गई थी.

डॉक्यूमेंट्री का दूसरा एपिसोड, केंद्र में मोदी के सत्ता में आने के बाद – विशेष तौर पर 2019 में उनके दोबारा सत्ता में आने के बाद – मुसलमानों के खिलाफ हिंसा और उनकी सरकार द्वारा लाए गए भेदभावपूर्ण कानूनों की बात करता है. इसमें मोदी को ‘बेहद विभाजनकारी’ बताया गया है.

केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर और यूट्यूब को डॉक्यूमेंट्री के लिंक ब्लॉक करने का निर्देश दिया था, वहीं विदेश मंत्रालय ने डॉक्यूमेंट्री को ‘दुष्प्रचार का हिस्सा’ बताते हुए खारिज कर कहा था कि इसमें निष्पक्षता का अभाव है तथा यह एक औपनिवेशिक मानसिकता को दर्शाता है.

हालांकि बीबीसी अपनी डॉक्यूमेंट्री के साथ खड़ा रहा और उसका कहना था कि यह काफी शोध करने के बाद बनाई गई है, जिसमें महत्वपूर्ण मुद्दों को निष्पक्षता से उजागर करने की कोशिश की गई है. चैनल ने यह भी कहा कि उसने भारत सरकार से इस पर जवाब मांगा था, लेकिन सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया.

देश के विभिन्न राज्यों के कैंपसों में डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग को लेकर विवाद भी हुआ था.