ग्राउंड रिपोर्ट: मगहर में मरने वाले नरक नहीं जाते

बढ़ती धार्मिक कुरीति और कट्टरता के दौर में भी कबीर होते तो यही कहते कि ‘मोको कहां ढूढ़ें बंदे, मैं तो तेरे पास में. न मैं देवल, न मैं मस्जिद, न काबे कैलास में...'

/

बढ़ती धार्मिक कुरीति और कट्टरता के दौर में भी कबीर होते तो यही कहते कि ‘मोको कहां ढूढ़ें बंदे, मैं तो तेरे पास में. न मैं देवल, न मैं मस्जिद, न काबे कैलास में…’

maghar6
संत कबीर की समाधि और मज़ार स्थल (फोटो: कृष्णकांत)

संत कबीर नगर: क्या आप मगहर के बारे में जानते हैं? मगहर को पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल बनाना चाहते थे. मगहर में ऐसा क्या है जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर का पर्यटन स्थल बनाया जाना चाहिए?

मगहर वह जगह है जहां पर भक्त कवि कबीर दास का निधन हुआ था, जहां पर कबीर की मज़ार और समाधि अगल-बगल मौजूद है. समाधि पर हिंदू पूजा करते हैं और मज़ार पर मुसलमान ज़ियारत करते हैं. कबीर दास की मज़ार और समाधि राम जन्मभूमि और बाबरी मस्ज़िद के बरअक़्स इस मामले में अनूठी है कि उसके लिए हिंदू-मुसलमान आपस में नहीं लड़े.

मज़ार और मंदिर दोनों के बनने की कहानी दिलचस्प है. कबीर के देहांत के बारे में एक कहानी प्रचलित है कि जब कबीर ने शरीर त्याग किया तो उनके हिंदू और मुस्लिम शिष्यों में इस बात पर झगड़ा होने लगा कि उनकी अंतिम क्रिया वे करेंगे.

हिंदू कबीर के शरीर को जलाना चाहते थे, जबकि मुस्लिम उन्हें अपनी रीति से दफ़नाना चाहते थे. झगड़े के बीच जब शव पर से चादर हटाया गया तो शरीर की जगह कुछ फूल मिले. आधे फूल लेकर हिंदुओं ने एक समाधि बना ली और आधे फूल लेकर मुसलमानों ने मज़ार बना ली.

कबीर की समाधि और मज़ार की दीवार आपस में जुड़ी है. मंदिर में फूल चढ़ता है, घंटे बजते हैं, तो मज़ार में चादर चढ़ती है. संतकबीर नगर मुख्यालय से मगहर की तरफ चलने पर आमी नदी के किनारे एक पूरे क्षेत्र को पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित करने का प्रयास किया गया है.

magahar aami
आमी नदी (फोटो: कृष्णकांत)

सड़क पर एक गेट बनाया गया है जो कबीर की परिनिर्वाण स्थली पर आपका स्वागत करता है. मज़ार और मंदिर के पीछे की तरफ़ एक उद्यान है. उद्यान से सटी ज़मीन पर एक यात्री निवास और रसोई का निर्माण हो रहा है. इस जगह के दूसरी तरफ कबीर की साधना गुफा है.

मंदिर के पुजारी ने बताया कि इस गुफा में कबीर दास बैठकर ध्यान लगाते थे. पहले यह गुफा कच्ची थी और काफी गहरी थी, लेकिन बाद में उसमें पक्की सीढ़ियां बनवा दी गईं. अब यह कुछ ही फीट गहरी है. समाधि स्थल के बगल में आमी नदी बहती है जो ठीक दिल्ली की यमुना की तरह काली पड़ गई है. उसका पानी काफ़ी गंदा और बदबूदार है.

स्थानीय पत्रकार आफताब ने बताया, ‘अब आमी नदी में कोई जीव-जंतु नहीं बचे हैं, क्योंकि इसमें पेपर मिल का पानी गिराया जाता है. मिल की गंदगी से नदी संकट में और पतली सी धार बची है. अब यह नदी सूखने वाली है.’

हाल ही में चुनावी सभा करने पहुंचीं केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने क्षेत्र के लोगों को भरोसा दिलाया है कि आमी को जल्दी ही साफ किया जाएगा. लेकिन इस तरह के वादे पहले भी किए गए हैं.

उमा भारती को अभी सुप्रीम कोर्ट को यह जवाब देना है कि गंगा को बचाने के लिए उनके पास क्या प्लान है? उनकी सरकार करीब तीन साल का कार्यकाल पूरा करने वाली है और गंगा में गंदगी की मात्रा उसी गति से बढ़ रही है जैसे पहले थी.

आमी नदी के साथ कई किंवदंतियां हैं, जैसे कि इलाके में सूखा पड़ा था. कबीर के कहने पर आमी नदी अपनी धार मोड़कर उस इलाके में आईं और पानी की कमी पूरी हो गई.

सिद्धार्थनगर से निकल कर आमी नदी राप्ती में मिलती है. 2012 में मानवाधिकार आयोग औद्योगिक इकाइयों के कचरे के चलते आमी में प्रदूषण को लेकर राज्य और केंद्र सरकार को नोटिस भी जारी कर चुका है, लेकिन स्थिति जस की तस है.

समाधि स्थल का रख-रखाव ठीक ढंग का है. समाधि के चारों तरफ चहार दीवारी है जिससे लगे हुए कुछ कमरे बने हैं. समाधि स्थल का रख-रखाव काशी स्थित कबीर मठ के जिम्मे है. फिलहाल विचार दास इसके महंत हैं.

समाधि एक मंदिर के अंदर है, मंदिर की पुताई वगैरह करवा दी गई है. समाधि को चांदी की चादर से ढंक दिया गया है. आडंबर का विरोध करने वाले कबीर के समाधि मंदिर में एक बड़े आकार का घंटा भी टंगा है जो श्रद्धालुओं के आने के साथ गूंजता है.

समाधि के मुक़ाबले मज़ार की हालत खस्ता है. उसकी दीवारों से चूना झड़ रहा है. वहां रहने के लिए कोई जगह नहीं है. मुख्य मज़ार के अलावा मज़ार परिसर में कोई दूसरा निर्माण नहीं है. सामने की तरफ एक कमरानुमा बना है जो खंडहर में तब्दील हो गया है.

maghar
(फोटो: कृष्णकांत)

मज़ार और समाधि दोनों की हालत दो तरह की कैसे है, इसके जवाब में मज़ार की देखरेख करने वाले सैदा हुसैन अंसारी ने बताया कि ‘इसका कारण फ़िरक़ापरस्ती है. प्रशासन फ़िरक़ापरस्त करता है. पुरातत्व वाले हमसे कहते हैं कि आप बिना हमारी अनुमति के यहां पर कुछ भी नहीं कर सकते हैं, लेकिन मंदिर में समाधि पर चांदी जड़ी गई है. वहां रहने के लिए कमरे भी बने हैं, और मैं बाहर ज़मीन पर बैठा रहता हूं. धूप हो, बारिश हो, ठंड हो, मेरे रहने के लिए यहां पर एक कमरा तक नहीं है. जबकि मंदिर कूलर, एसी सब लगा है. यह प्रशासन से पूछिए कि वह ऐसा क्यों करता है?’

पूरे देश के लोग इस परिनिर्वाण स्थल पर आते हैं और अपनी-अपनी श्रद्धा के अनुसार कबीर की पूजा करते हैं. कबीर के परिनिर्वाण स्थल को अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल में बदलने की बात तो दूर है, अभी इस छोटे शहर में भी विकास का रथ नहीं पहुंचा है. संतकबीर नगर से होकर हाइवे गुज़रने का यह फायदा हुआ है कि लोग हाइवे के किनारे स्कूल, अस्पताल, रिजॉर्ट, मैरिज हॉल, मॉल, दुकानें आदि खोल रहे हैं.

कबीर काशी से मगहर कैसे आए होंगे, इस सवाल के जवाब में कबीर पर महत्वपूर्ण काम करने वाले प्रो. पुरुषोत्तम अग्रवाल ने बताया, ‘संत कवि कबीर दास के समय यह धारणा थी कि मगहर में जिसकी मृत्यु होती है, वह स्वर्ग नहीं जाता. इसके उलट काशी में जो शरीर त्याग करता है वह स्वर्ग जाता है. अपने समय की कुरीतियों और अंधविश्वासों पर तीखा प्रहार करने वाले कबीर को यह बात खटक गई. उन्होंने विद्रोह स्वरूप तय किया कि वे मगहर में ही शरीर त्याग करेंगे. क्योंकि अगर काशी में ही शरीर त्यागने से स्वर्ग मिलता है तो राम की भक्ति किस काम की है?’

एक आम धारणा के प्रति विद्रोह के तहत कबीर दास काशी से मगहर आ गए. उन्होंने लिखा-

‘क्या काशी क्या ऊसर मगहर, राम हृदय बस मोरा
जो कासी तन तजै कबीरा, रामे कौन निहोरा’

(काशी हो या फिर मगहर का ऊसर, मेरे लिए दोनों ही एक जैसे हैं क्योंकि मेरे हृदय में राम बसते हैं. अगर कबीर काशी में शरीर का त्याग करके मुक्ति प्राप्त कर ले तो इसमें राम का कौन सा अहसान है.)

मगहर पूर्वी उत्तर प्रदेश के खलीलाबाद का एक छोटा सा नगर है, जिसे तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने सितम्बर 1997 में बस्ती जिले के कुछ भागों को अलग करके संतकबीर नगर नाम दिया था.

maghar8

साथ ही मायावती ने समाधिस्थल के पास कबीर की एक कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया था. कबीर की पुण्यभूमि को उनका नाम तो मिल गया लेकिन सूखती बदबूदार काली पड़ चुकी आमी नदी और कबीर की मज़ार विकास का बाट जोह रही हैं. संतकबीर नगर के पर्यटन स्थल बनने की संभावना अब भी नि:शेष नहीं है, लेकिन यह कब होगा, कोई नहीं जानता.

कबीर दास के नाम पर देश भर में कई तरह के पंथ चल गए हैं जो अपने-अपने तरीके से कबीर को परिभाषित करते हैं. हालांकि, कबीर मंदिर और मस्ज़िद के कर्मकांडों से घोर विरोधी थे.

बढ़ती धार्मिक कुरीति और कट्टरता के दौर में भी कबीर होते तो यही कहते कि ‘मोको कहां ढूढ़ें बंदे, मैं तो तेरे पास में. न मैं देवल, न मैं मस्जिद, न काबे कैलास में…’