प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबंध में बीबीसी द्वारा जारी डॉक्यूमेंट्री के बाद इसके दिल्ली और मुंबई स्थित कार्यालयों में आयकर विभाग ने ‘सर्वे’ की कार्रवाई की थी, जिसके संबंध में ब्रिटेन की संसद में सवाल पूछे जाने पर देश की सरकार इसके राष्ट्रीय प्रसारक के बचाव में उतरते हुए भारत सरकार के समक्ष यह मुद्दा उठाने की बात कही.
नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी पर एक डॉक्यूमेंट्री जारी होने के बाद बीबीसी के भारतीय कार्यालयों में आयकर विभाग के ‘सर्वे’ के बारे में हाउस ऑफ कॉमन्स में पूछे जाने पर ब्रिटेन सरकार ने अपने राष्ट्रीय प्रसारक का बचाव किया है.
द हिंदू के अनुसार, ब्रिटेन के विदेश, राष्ट्रमंडल और विकास कार्यालय (एफसीडीओ) के संसदीय अवर सचिव टोरी सांसद डेविड रटली ने इस मुद्दे पर विपक्ष के सदस्यों के साथ-साथ अपनी पार्टी के सवालों का लगभग 20 मिनट तक जवाब दिया.
रटली ने कहा, ‘हम बीबीसी के लिए खड़े हैं, हम बीबीसी को फंड देते हैं, हमें लगता है कि बीबीसी वर्ल्ड सर्विस बेहद महत्वपूर्ण है.’
उन्होंने आगे कहा कि राष्ट्रीय प्रसारक के लिए संपादकीय स्वतंत्रता होना महत्वपूर्ण है और यूके में बीबीसी दोनों प्रमुख पार्टियों की आलोचना करने के लिए जाना जाता है.
उन्होंने कहा, ‘इसके पास वह स्वतंत्रता है जिसे हम बेहद महत्वपूर्ण मानते हैं और यह आजादी महत्वपूर्ण है. हम अपने सहयोगियों… भारत सरकार सहित दुनिया भर के हमारे दोस्तों को इसका महत्व बताने में सक्षम होना चाहते हैं.’
कई सांसदों ने भारत में हुई घटना पर ब्रिटेन सरकार से सवाल किया. उत्तरी आयरलैंड की डेमोक्रेटिक यूनियनिस्ट पार्टी (डीयूपी) के जिम शैनन ने कहा, ‘पूरी तरह स्पष्ट है कि यह देश के नेता के बारे में एक असुविधाजनक डॉक्यूमेंट्री के रिलीज के बाद डराने-धमकाने के लिए जानबूझकर किया गया कृत्य था.’
कंजर्वेटिव सांसद जूलियन लुईस ने ‘सर्वे’ की कार्रवाई को ‘बेहद चिंताजनक’ बताया.
सांसद ड्रू हेंड्री ने कहा, ‘एसएनपी (स्कॉटिश नेशनल पार्टी) नई दिल्ली और मुंबई में बीबीसी कार्यालयों पर इस भयावह हमले की पूरी तरह से निंदा करती है.’
लेबर सांसद फैबियन हैमिल्टन ने कहा कि सर्वे ‘बेहद चिंताजनक’ थे. साथ ही, उन्होंने पूछा कि बीबीसी को डराने-धमकाने से बचाने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘हम विशेष तौर पर उन खबरों को लेकर चिंतित हैं जो बताती हैं कि बीबीसी कर्मचारियों को रात भर अपने कार्यालयों में रहने के लिए मजबूर किया गया था और उन्हें लंबी पूछताछ का सामना करना पड़ा.’
उन्होंने कहा, ‘किसी भी लोकतंत्र में मीडिया के पास नतीजे से डरे बिना नेताओं की आलोचना और उनकी पड़ताल करने की क्षमता होनी चाहिए और यह इस स्थिति में स्पष्ट तौर पर लागू होता है.’
रटली ने बारीकियों में जाने के बिना कहा कि यह मुद्दा चर्चा के लिए भारत सरकार के समक्ष उठाया गया है.
लिबरल डेमोक्रेट सांसद जेमी स्टोन ने चर्चा के दौरान पूछा कि क्या ब्रिटेन भारत पर ‘दबाव डालने’ के लिए अमेरिका और अन्य लोकतंत्रों के साथ मुहिम में शामिल होने पर विचार करेगा और इसे ‘पूरी तरह से अस्वीकार्य रवैया’ कहेगा. रटली ने जवाब नहीं दिया, और केवल इतना कहा कि वह विशिष्ट आरोपों पर टिप्पणी नहीं कर सकते.
मालूम हो कि बीबीसी की ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ डॉक्यूमेंट्री में बताया गया है कि ब्रिटेन सरकार द्वारा करवाई गई गुजरात दंगों की जांच (जो अब तक अप्रकाशित रही है) में नरेंद्र मोदी को सीधे तौर पर हिंसा के लिए जिम्मेदार पाया गया था.
साथ ही इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और देश के मुसलमानों के बीच तनाव की भी बात कही गई है. यह 2002 के फरवरी और मार्च महीनों में गुजरात में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा में उनकी भूमिका के संबंध में दावों की पड़ताल भी करती है, जिसमें एक हजार से अधिक लोगों की जान चली गई थी.
डॉक्यूमेंट्री का दूसरा एपिसोड, केंद्र में मोदी के सत्ता में आने के बाद – विशेष तौर पर 2019 में उनके दोबारा सत्ता में आने के बाद – मुसलमानों के खिलाफ हिंसा और उनकी सरकार द्वारा लाए गए भेदभावपूर्ण कानूनों की बात करता है. इसमें मोदी को ‘बेहद विभाजनकारी’ बताया गया है.
केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर और यूट्यूब को डॉक्यूमेंट्री के लिंक ब्लॉक करने का निर्देश दिया था, वहीं विदेश मंत्रालय ने डॉक्यूमेंट्री को ‘दुष्प्रचार का हिस्सा’ बताते हुए खारिज कर कहा था कि इसमें निष्पक्षता का अभाव है तथा यह एक औपनिवेशिक मानसिकता को दर्शाता है.
हालांकि बीबीसी अपनी डॉक्यूमेंट्री के साथ खड़ा रहा और उसका कहना था कि यह काफी शोध करने के बाद बनाई गई है, जिसमें महत्वपूर्ण मुद्दों को निष्पक्षता से उजागर करने की कोशिश की गई है. चैनल ने यह भी कहा कि उसने भारत सरकार से इस पर जवाब मांगा था, लेकिन सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया.
देश के विभिन्न राज्यों के कैंपसों में डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग को लेकर विवाद भी हुआ था.
बीते दिनों इसी कड़ी में बीबीसी के दिल्ली और मुंबई स्थित कार्यालयों पर आयकर विभाग द्वारा सर्वे की कार्रवाई की गई थी. इस पर बीबीसी ने एक बयान जारी कर हर सवाल का उचित जवाब देने की बात कही थी.
इसके बाद आयकर विभाग द्वारा जारी एक बयान जारी में दावा किया गया था कि ‘एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मीडिया कंपनी के दफ्तरों’ में सर्वे के बाद टैक्स का भुगतान करने में अनियमितताएं पाई गई हैं. हालांकि इस बयान में बीबीसी का नाम नहीं दिया गया था.
इसके बाद जारी बयान में बीबीसी की ओर से कहा गया था कि आयकर विभाग से प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त किसी भी आधिकारिक संदेश का उचित उत्तर दिया जाएगा.
संस्थान ने यह भी कहा था कि ‘आयकर विभाग की कार्रवाई के दौरान कई घंटे बीबीसी के पत्रकारों को काम नहीं करने दिया गया. कई पत्रकारों के साथ आयकर विभाग के कर्मचारियों और पुलिसकर्मियों ने दुर्व्यवहार भी किया. पत्रकारों के कंप्यूटरों की छानबीन की गई, उनके फोन रखवा दिए गए और उनसे उनके काम के तरीकों के बारे में जानकारी ली गई. साथ ही दिल्ली दफ्तर में कार्यरत पत्रकारों को इस सर्वे के बारे में कुछ भी लिखने से रोका गया.
बीबीसी के अनुसार, सीनियर एडिटर्स के लगातार कहने के बाद जब काम शुरू करने दिया गया तब भी हिंदी और अंग्रेजी के पत्रकारों को काम करने से और देर तक रोका गया. इन दोनों भाषाओं के पत्रकारों को इस तरह तब काम करने दिया गया, जब वे प्रसारण समय के नजदीक पहुंच चुके थे.