विदेश मंत्री का बीबीसी द्वारा सिख विरोधी दंगों पर डॉक्यूमेंट्री न बनाने का दावा झूठा है

फैक्ट-चेक: नरेंद्र मोदी और गुजरात दंगों पर बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री पर हमला बोलते हुए विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि संस्थान ने 1984 के दिल्ली में हुए सिख विरोधी दंगों पर डॉक्यूमेंट्री क्यों नहीं बनाई. हालांकि इंटरनेट पर एक सामान्य सर्च बीबीसी द्वारा 1984 के नरसंहार और उससे जुड़ी कवरेज के कई प्रमाण दिखा देती है.

/
India's external affairs minister S. Jaishankar. In the background are screenshots of BBC pages hosting coverage and documentaries made on the 1984 anti-Sikh riots and their aftermath. Photo: Twitter/@DrSJaishankar

फैक्ट-चेक: नरेंद्र मोदी और गुजरात दंगों पर बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री पर हमला बोलते हुए विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि संस्थान ने 1984 के दिल्ली में हुए सिख विरोधी दंगों पर डॉक्यूमेंट्री क्यों नहीं बनाई. हालांकि इंटरनेट पर एक सामान्य सर्च बीबीसी द्वारा 1984 के नरसंहार और उससे जुड़ी कवरेज के कई प्रमाण दिखा देती है.

विदेश मंत्री एस. जयशंकर. बैकग्राउंड में 1984 के सिख विरोधी दंगों और उसके परिणामों पर बीबीसी की कवरेज. (फोटो साभार: Twitter/@DrSJaishankar)

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और 2002 के गुजरात दंगों को लेकर बीबीसी द्वारा हाल ही में जारी की गई डॉक्यूमेंट्री इंडिया: द मोदी क्वेश्चन के बारे में बात करते हुए विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ब्रिटिश सार्वजनिक प्रसारक पर राजनीतिक करने का आरोप लगाया और पूछा कि उसने 1984 के सिख विरोधी नरसंहार पर डॉक्यूमेंट्री क्यों नहीं बनाई.

2002 के गुजरात दंगों के समय जहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) राज्य की सत्ता में थी, तो वहीं 1984 का नरसंहार केंद्र में कांग्रेस की सरकार में हुआ था. यह आरोप लगाते हुए मंत्री ने यह दिखाने का प्रयास किया कि बीबीसी पक्षपाती है और कांग्रेस के पक्ष में झुका हुआ है. हालांकि, इंटरनेट पर एक सामान्य सर्च यह स्पष्ट कर देती है कि बीबीसी ने न सिर्फ 1984 की हिंसा को कवर किया था, बल्कि इस विषय पर बार-बार सामग्री जारी करता रहा.

2010 में चैनल ने एक डॉक्यूमेंट्री की अवधि वाले कार्यक्रम ‘1984: ए सिख स्टोरी‘ का प्रसारण किया था, जिसमें जून 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में सेना के जबरन घुसने और नवंबर 1984 में दिल्ली एवं अन्य जगहों पर आम सिख परिवारों के खिलाफ नरसंहारात्मक हिंसा पर ध्यान केंद्रित किया गया था.

एक भारतीय मूल की पत्रकार सोनिया देओल के निजी अनुभवों के आधार पर बीबीसी ने अमृतसर के मंदिर पर हमले और इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में 2,000 से अधिक सिखों की हत्या की पड़ताल की थी.

संयोगवश, 1984 पर बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री दिल्ली नरसंहार के 26 साल बाद आई थी- मोटे तौर पर देखें तो 2002 की हिंसा और मोदी पर आई डॉक्यूमेंट्री के बीच भी लगभग दो दशक का अंतर है- हालांकि उस समय के विदेश मंत्री ने किसी चैनल पर गड़े मुर्दे उखाड़ने का आरोप नहीं लगाया था.

मीडिया पर नजर रखने वालों ने जयशंकर के आरोपों को निंदनीय करार देते हुए कहा है कि वास्तव में भारत में बीबीसी के प्रशंसकों में 80 के दशक के मध्य में हुई इंदिरा गांधी की हत्या और उसके खूनी परिणाम की रिपोर्टिंग के बाद ही वृद्धि हुई थी.

उल्लेखनीय है कि 2013 में बीबीसी की विश्वसनीयता की स्वयं नरेंद्र मोदी ने भी प्रशंसा की थी और इसे देश के राष्ट्रीय प्रसारक दूरदर्शन से अधिक विश्वसनीय बताया था.

हालिया विवाद

बीबीसी की ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ डॉक्यूमेंट्री में बताया गया है कि ब्रिटेन सरकार द्वारा करवाई गई गुजरात दंगों की जांच (जो अब तक अप्रकाशित रही है) में नरेंद्र मोदी को सीधे तौर पर हिंसा के लिए जिम्मेदार पाया गया था.

साथ ही इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और देश के मुसलमानों के बीच तनाव की भी बात कही गई है. यह 2002 के फरवरी और मार्च महीनों में गुजरात में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा में उनकी भूमिका के संबंध में दावों की पड़ताल भी करती है, जिसमें एक हजार से अधिक लोगों की जान चली गई थी.

डॉक्यूमेंट्री का दूसरा एपिसोड, केंद्र में मोदी के सत्ता में आने के बाद – विशेष तौर पर 2019 में उनके दोबारा सत्ता में आने के बाद – मुसलमानों के खिलाफ हिंसा और उनकी सरकार द्वारा लाए गए भेदभावपूर्ण कानूनों की बात करता है. इसमें मोदी को ‘बेहद विभाजनकारी’ बताया गया है.

केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर और यूट्यूब को डॉक्यूमेंट्री के लिंक ब्लॉक करने का निर्देश दिया था, वहीं विदेश मंत्रालय ने डॉक्यूमेंट्री को ‘दुष्प्रचार का हिस्सा’ बताते हुए खारिज कर कहा था कि इसमें निष्पक्षता का अभाव है तथा यह एक औपनिवेशिक मानसिकता को दर्शाता है.

हालांकि बीबीसी अपनी डॉक्यूमेंट्री के साथ खड़ा रहा और उसका कहना था कि यह काफी शोध करने के बाद बनाई गई है, जिसमें महत्वपूर्ण मुद्दों को निष्पक्षता से उजागर करने की कोशिश की गई है. चैनल ने यह भी कहा कि उसने भारत सरकार से इस पर जवाब मांगा था, लेकिन सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया.

देश के विभिन्न राज्यों के कैंपसों में डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग को लेकर विवाद भी हुआ था.

बीते दिनों इसी कड़ी में बीबीसी के दिल्ली और मुंबई स्थित कार्यालयों पर आयकर विभाग द्वारा सर्वे की कार्रवाई की गई थी. इस पर बीबीसी ने एक बयान जारी कर हर सवाल का उचित जवाब देने की बात कही थी.

गौरतलब है कि मंगलवार को समाचार एजेंसी एएनआई के साथ एक साक्षात्कार में जयशंकर ने दावा किया कि गुजरात दंगों पर डॉक्यूमेंट्री का समय ‘आकस्मिक नहीं’ था और यह राजनीति से जुड़ा था.

उन्होंने कहा, ‘अगर आप कहते हैं कि मैं मानवतावादी हूं और मुझे उन लोगों के लिए इंसाफ चाहिए, जिनके साथ गलत हुआ, तो यह राजनीति करना है, उन लोगों द्वारा, जिनके पास राजनीति में उतरने का साहस नहीं है.

उन्होंने जोड़ा कि बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर नहीं थी बल्कि राजनीति के बारे में है. उन्होंने कहा, ‘एक कहावत है कि ‘वॉर बाई अदर मीन्स’ यानी अन्य तरीकों से युद्ध करना. यह पॉलिटिक्स बाई अदर मीन्स है.’

उन्होंने कहा कि बीबीसी ने 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुई सिख विरोधी हिंसा पर ध्यान नहीं दिया था. उन्होंने कहा, ‘आप एक डॉक्यूमेंट्री बनाना चाहते हैं, 1984 में दिल्ली में बहुत कुछ हुआ था. हमने उस पर डॉक्यूमेंट्री क्यों नहीं देखी?’

जयशंकर ने यह भी कहा कि बीबीसी ने 2002 में गुजरात दंगों का बारीकी से कवरेज नहीं किया था, वे भारत में आगामी चुनावों को प्रभावित करने के लिए ऐसा कर रहे हैं.

यह एक अजीब आरोप था क्योंकि 2023 की डॉक्यूमेंट्री में ऐसे बहुत सारे फुटेज हैं जिन्हें बीबीसी ने 2002 में ही शूट और प्रसारित किया था.

जयशंकर ने कहा, ‘आप संगीन हमला कर रहे हैं और कहते हैं कि यह सिर्फ सच की तलाश है, जिसे हमने 20 साल बाद बाहर लाने का फैसला किया है. क्या आपको इसका समय आकस्मिक लगता है? मुझे नहीं पता कि भारत में चुनावी मौसम शुरू हो गया है या नहीं, लेकिन निश्चित रूप से यह लंदन और न्यूयॉर्क में शुरू हो गया है.’

बीबीसी और 1984 

बीबीसी के बारे में जयशंकर का दावा कि दिल्ली में 1984 में जो हुआ, उसे संस्थान नजरअंदाज करता है और वास्तविकता से परे है. बीबीसी के दिल्ली ब्यूरो का नेतृत्व तब इसके सबसे प्रसिद्ध और सम्मानित पत्रकार मार्क टुली कर रहे थे, जिन्होंने सिख विरोधी हिंसा को कवर किया था.

वहीं, भारतीय स्वतंत्रता के बाद से बीबीसी पर दो बार पाबंदी लगाई गई थी, दोनों बार यह इंदिरा गांधी के कार्यकाल में हुआ था. 1970 में, भारत पर लुइस मैले की दो डॉक्यूमेंट्री फिल्मों के प्रसारण पर विवाद के बाद बीबीसी को दो साल के लिए देश से बाहर कर दिया गया था. 1975 में आपातकाल के दौरान टुली सहित बीबीसी को फिर से निष्कासित किया दिया गया था.

हालांकि, 1984 में जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी, तो पहली घोषणा भारत के सरकारी प्रसारक पर नहीं, बल्कि बीबीसी पर हुई थी. कलकत्ता में बीबीसी वर्ल्ड सर्विस के जरिये ही राजीव गांधी को अपनी मां की हत्या के बारे में जानकारी मिली थी.

टुली और उनके बीबीसी सहयोगी सतीश जैकब ने अपनी रिपोर्टिंग के आधार पर 1985 में ऑपरेशन ब्लू स्टार और उसके बाद की घटनाओं, जिसमें इंदिरा गांधी की हत्या और सिख विरोधी दंगे शामिल थे, पर प्रमुख पुस्तकों में से एक लिखी.

2014 में ऑपरेशन ब्लू स्टार की 30वीं वर्षगांठ पर टुली ने सैन्य पहल और इसके विनाशकारी परिणाम पर दो भागों वाली डॉक्यूमेंट्री ‘गनफायर ओवर द गोल्डन टेंपल‘ बनाई थी.

31 अक्टूबर 2014 को बीबीसी रेडियो ने एक और डॉक्यूमेंट्री असेसिनेशन: व्हेन देल्ही बर्न्ड (Assassination: When Delhi Burned) जारी की. यह भारतीय मूल के ब्रिटेन के दो नागरिकों द्वारा सिख विरोधी दंगा स्थल के दौरे पर आधारित थी, दंगों में वे बच गए थे. वारविक मेडिकल स्कूल के एक प्रोफेसर स्वर्ण सिंह ने बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री टीम के साथ 30 साल बाद तिलक विहार की यात्रा की थी और दंगों में कांग्रेस के नेताओं की भूमिका के बारे में बताया.

हालांकि ये डॉक्यूमेंट्री जरूर विशेष वर्षगांठ पर आईं, लेकिन 1984 की दुखद यादों को वर्षों से बीबीसी मंचों पर विस्तृत लेखों के साथ जीवित रखा गया है.

एक मौखिक इतिहास फीचर जो महत्वपूर्ण वैश्विक घटनाओं के चश्मदीद गवाहों को रिकॉर्ड करता है, ने इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख समुदाय को निशाना बनाने और मौंतों पर देश भर में भारतीयों के बयानों को सूचीबद्ध किया है.

बीबीसी वेबसाइट पर इंदरबीर सिंह दुग्गल ने बताया, ‘मेरे पिता और मेरे चाचा को अपने बाल काटने पड़े ताकि कोई उन्हें सिख के रूप में पहचान न सके. मेरे भाई और मुझे लड़कियों की तरह कपड़े पहनने के लिए मजबूर किया गया था और सिख बच्चों के रूप में अपनी पहचान छिपाने के लिए लड़कियों की तरह अपने बालों को बांधना पड़ा था.’

1984 पर विदेश मंत्रालय खुद किसी बात पर कायम नहीं है

जबकि जयशंकर ने अब 1984 हिंसा पर डॉक्यूमेंट्री न बनाने के लिए बीबीसी की निंदा की है, तो यहां ध्यान दिया जा सकता है कि विदेश मंत्रालय ने 2017 में कनाडा के ओंटारियो प्रांत की विधानसभा में एक प्रस्ताव पर आपत्ति जताई थी जिसमें 1984 के सिखों के कत्लेआम को एक ‘नरसंहार’ के रूप में वर्णित किया गया था. जयशंकर 2017 में विदेश सचिव थे.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने प्रस्ताव को ‘गुमराह’ करने वाला करार दिया था और इसे ‘भारत, इसके संविधान, समाज, स्वभाव, कानून के शासन एवं न्याय प्रक्रिया की सीमित समझ’ के आधार पर तैयार किया हुआ बताया था. ऐसा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा हत्याओं को एक नरसंहार के रूप में संदर्भित करने के बावजूद है.

2002 के गुजरात दंगों पर साल दर साल बीबीसी ने निरंतर कवरेज की है, जो जयशंकर के दावों के विपरीत है. उदाहरण के लिए, 2002 के दंगों की दसवीं वर्षगांठ पर बीबीसी की एक पत्रकार ने हिंसा पर रिपोर्टिंग की अपनी यादों के बारे में लिखा था.

इसी तरह 2018 में बीबीसी हिंदी ने 1983 में कांग्रेस शासित असम में हुए ‘नेल्ली जनसंहार‘ पर भी काफी-कुछ लिखा था.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)