1963 में राज्य का दर्जा पाने वाले नगालैंड में अब तक चौदह विधानसभा चुनाव हुए हैं, लेकिन आज तक कोई भी महिला विधायक नहीं बनी है. आगामी विधानसभा चुनाव में चार महिला प्रत्याशी मैदान में हैं.
नई दिल्ली: ‘नगा लोगों को अपना यह नजरिया बदलने की जरूरत है कि नगा महिलाएं फैसले लेने वाली इकाइयों का हिस्सा नहीं बन सकती हैं. महिलाएं बराबर की भागीदार हैं और उन्हें भी हर अवसर मिलना चाहिए.’
नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो बीते दस फरवरी को खोनोमा और कोहिमा में आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर उनके दल नेशनलिस्ट प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के लिए प्रचार कर रहे थे, जब उन्होंने उक्त बयान दिया.
उनका बयान इस तथ्य को देखते हुए महत्वपूर्ण है कि 1963 में राज्य का दर्जा पाने वाले इस उत्तर-पूर्वी राज्य में चौदह विधानसभा चुनाव हुए हैं, लेकिन आज तक कोई भी महिला विधायक नहीं बनी है.
Concluded successful campaign for today at 3-Dimapur III A/C for Mrs. @Hekani Jakhalu. We need to ensure that women are in positions of leadership, decision making and policy development at the highest level. I urge the constituents to make it happen by voting for her to the NLA. pic.twitter.com/64xFgE3zdr
— Neiphiu Rio (@Neiphiu_Rio) February 18, 2023
राज्य विधानसभा में 60 सीटें हैं, जिनके लिए अगले हफ्ते 27 फरवरी को मतदान होना है. मतगणना दो मार्च को होगी. इस बार चार महिला प्रत्याशी इस चुनावी मैदान में हैं. विपक्ष रहित सरकार चला रही एनडीपीपी और भाजपा के बीच चुनाव पूर्व गठबंधन हो चुका है.
रियो ने यह भी कहा कि एनडीपीपी के घोषणापत्र में लैंगिक समानता (Gender Equality) एक महत्वपूर्ण मसला है, इसीलिए 40 सीटों पर चुनाव लड़ रही सत्ताधारी पार्टी ने इस बार दो सीटों पर महिलाओं- पश्चिमी अंगामी से सालहुटुआनो क्रूस और दीमापुर-III से हेकनी जाखालु – को टिकट दिया है.
एनडीपीपी की इन दोनों प्रत्याशियों के अलावा कांग्रेस ने टेनिंग सीट पर रोज़ी थॉमसन और भाजपा ने अटोइजू सीट से काहुली सेमा को खड़ा किया है.
भाजपा सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा है, जो इस बार बीस सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं. पार्टी ने अपने घोषणापत्र में पद्मश्री से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता और नगा मदर्स एसोसिएशन (एनएमए) की संस्थापकों में से एक नीदोनुओ अंगामी के नाम पर महिला कल्याण योजना लाने का वादा किया है, जिसके तहत बेटी के जन्म पर 50,000 रुपये का बॉन्ड देने की बात कही गई है.
इसके अलावा पार्टी में केजी से लेकर स्नातकोत्तर तक सभी छात्राओं को निशुल्क गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मुहैया करवाने और मेधावी कॉलेज छात्राओं को फ्री स्कूटर देने की बात भी कही है.
प्रदेश में 184 उम्मीदवार चुनावी रण में उतरे हैं, जिसके हिसाब से महिला उम्मीदवारों का प्रतिशत दो फीसदी है. 2018 के विधानसभा चुनाव में 193 उम्मीदवारों में से पांच (तीन फीसदी) महिलाएं थीं.
एक रिपोर्ट के अनुसार, आज तक राज्य में केवल 20 महिलाओं ने विधानसभा चुनाव लड़ा है, जिनमें 2018 के चुनाव में सर्वाधिक पांच महिला प्रत्याशी लड़ी थीं, हालांकि, इन उम्मीदवारों में से तीन को कुल मतों का छठा हिस्सा भी नहीं मिला.
उल्लेखनीय है कि बीते साल भाजपा की एस. फांगनोन कोन्याक नगालैंड से राज्यसभा पहुंचने वाली पहली महिला बनी थीं. कोन्याक दूसरी नगा महिला सांसद भी हैं. उनसे पहले राज्य से केवल एक महिला- रानो एम. शैज़ा सांसद बनी थीं, जो 1977 में लोकसभा के लिए चुनी गई थीं.
क्या है वजह
नगालैंड का समाज लैंगिक नजरिये से समावेशी कहा जाता है लेकिन चुनावी राजनीति ने महिलाओं का विरोध होता आया है. इसका एक उदाहरण साल 2017 में देखने को मिला, जब सरकार ने शहरी निकाय चुनावों में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने का निर्णय लिया.
इसके बाद प्रदेश की आदिवासी इकाइयों ने इनके शीर्ष नगा जनजातीय संगठन नगा होहो के बैनर तले कड़ा विरोध दर्ज करवाया था. इसे लेकर राज्य में हिंसक प्रदर्शन हुए थे, जिसमें दो लोगों की जान भी चली गई.
उनका कहना था कि यह फैसला अनुच्छेद 371 (ए) में निहित नगा प्रथागत कानूनों के खिलाफ था. यह अनुच्छेद राज्य को विशेष दर्जा देता है और जीवन के पारंपरिक तरीके की रक्षा करता है. यह विरोध इतना बढ़ गया था कि तत्कालीन मुख्यमंत्री टीआर जेलियांग को इस्तीफ़ा देना पड़ा था.
अप्रैल 2022 में राज्य सरकार ने फिर कहा था कि यह 33% आरक्षण लागू करने को तैयार है, हालांकि शहरी निकाय चुनाव अब तक नहीं हुए हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट बताती है कि विधायक बनने की राह में महिलाओं की सबसे बड़ी चुनौती राजनीतिक दलों द्वारा उन्हें टिकट न देना है.
एनएमए राज्य का प्रभावशाली नागरिक संगठन है. इसकी सलाहकार और नगालैंड विश्वविद्यालय में अंग्रेजी की प्रोफेसर रोज़मेरी जुविचु ने अख़बार से बातचीत में कहा, ‘ऐसा नहीं है कि महिलाओं ने कोशिश नहीं की है, लेकिन मूल समस्या यह है कि मुख्य राजनीतिक दलों ने बरसों से महिला उम्मीदवारों का समर्थन नहीं किया है और न ही उन्हें नामांकित ही किया गया … ज्यादातर महिलाएं जो मैदान में उतरी हैं, वे या तो निर्दलीय रही हैं या पार्टियों द्वारा आखिरी समय में किया गया कोई एडजस्टमेंट या उन्हें बिना गंभीरता के टिकट दिया गया… सवाल हमेशा ‘जिताने की क्षमता’ का रहा है, जिसे पुरुषों ने परिभाषित किया, हमने नहीं.’
उन्होंने कहा कि इसी चलन को देखते हुए एनएमए ने राजनीति से दूरी बरतने के अपने नियम को किनारे रखते हुए इस बार के चुनावों से पहले राजनीतिक दलों के समक्ष इस मुद्दे को उठाने की सोची.
बता दें कि इस साल जनवरी में एनएमए ने सभी पार्टियों को चिट्ठी लिखते हुए विधानसभा चुनावों में महिला उम्मीदवारों को टिकट देने की अपील की थी.
जुविचु ने कहा, ‘हम जानते थे कि महिलाएं टिकट मांग रही थीं और हमें लगा कि इस बार सभी दलों को अपने घोषणापत्र में जो कुछ भी कहा है, उन्हें उसके साथ खड़ा होना चाहिए. हर चुनाव में वे महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं, लेकिन आप महिलाओं के बगैर महिलाओं को सशक्त कैसे बनाएंगे? हमने सभी दलों के नेताओं को लिखा और हम इसे मिली प्रतिक्रिया से खुश हैं. चारों महिलाएं सशक्त प्रत्याशी हैं.’
एनएमए की संस्थापकों में से एक नीदोनुओ अंगामी कहती हैं कि इन चारों महिलाओं के चुनाव में उतरने को ‘सकारात्मक बदलाव’ के तौर पर देखा जाना चाहिए.
उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा, ‘मुझे उम्मीद है कि उनमें से कुछ जीतेंगी. नगालैंड में महिलाएं पहले से ही सशक्त हैं, लेकिन चीजें धीमी गति से आगे बढ़ रही हैं. अब, मुझे आशा है कि स्थिति बदलेगी. यह संख्या के बारे में नहीं बल्कि गुणवत्ता के बारे में होना चाहिए. अगर अच्छे उम्मीदवार (भले ही किसी जेंडर के हों) चुने जाते हैं, तो इससे बहुत फर्क पड़ेगा.’
वोट देने में आगे रही हैं महिलाएं
मोआमेनला आमेर नगालैंड विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग में प्रोफेसर हैं, जिन्होंने चुनाव आयोग के 1969 से 2013 तक के डेटा के आधार पर एक अध्ययन किया है, जो बताता है कि प्रदेश में महिलाएं वोट देने में पुरुषों से आगे हैं. अध्ययन के अनुसार, दस विधानसभा चुनावों में से आठ में महिला मतदाताओं की संख्या पुरुष वोटर्स के मुकाबले कहीं अधिक थी.
नगालैंड में लगभग आधी रजिस्टर्ड मतदाता (49.79 प्रतिशत) महिलाएं हैं. आमेर ने अपने अध्ययन में लिखा है, ‘इससे पता चलता है कि पुरुष नेता महिलाओं के वोटों से जीत रहे हैं. यह तथ्य बताता है कि अगर महिला मतदाता महिला उम्मीदवारों को वोट दें, तो उन्हें राजनीतिक कार्यालयों तक पहुंचाया जा सकता है.’
उन्होंने यह भी जोड़ा है, ‘हालांकि मतदान में महिलाओं की बड़ी भागीदारी के साथ प्रत्याशी और निर्वाचित प्रतिनिधियों के तौर पर महिलाओं की संख्या में बढ़ोतरी नहीं हुई है. चुनावी सफलता महिलाओं से दूर ही रही है.’
दीमापुर-III से एनडीपीपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहीं हेकनी जाखालु भी राज्य में महिला प्रत्याशियों के प्रति रहे रूखे रवैये से वाकिफ हैं.
द हिंदू से बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘नगालैंड में समाज बहुत पितृसत्तात्मक रहा है लेकिन अब नजरिया बदल रहा है. यह बदलाव उस समय और ऊर्जा में नजर आ रहा है, जो मेरी पार्टी मुझ पर और पश्चिमी अंगामी सीट से खड़ी हुईं मेरी साथी उम्मीदवार सालहुटुआनो क्रूस पर खर्च कर रही है.’
उन्होंने जोड़ा, ‘नगालैंड में महिलाओं को यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया जाता है कि वे राजनीति में पुरुषों का मुकाबला नहीं कर सकतीं. हम दिखाना चाहते हैं कि बाधाओं को पार किया जा सकता है और महिलाएं जनप्रतिनिधियों के रूप में काम कर सकती हैं.’