कर्नाटक हिजाब प्रतिबंध: छात्राओं ने सुप्रीम कोर्ट से हिजाब पहनकर परीक्षा देने की अनुमति मांगी

फरवरी 2022 में कर्नाटक सरकार ने स्कूलों और कॉलेजों में समानता, अखंडता और लोक व्यवस्था को बाधित करने वाले कपड़े पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी. फैसले को बरक़रार रखते हुए मार्च 2022 में कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा था कि हिजाब पहनना इस्लाम धर्म में आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है.

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(फाइल फोटो: पीटीआई)

फरवरी 2022 में कर्नाटक सरकार ने स्कूलों और कॉलेजों में समानता, अखंडता और लोक व्यवस्था को बाधित करने वाले कपड़े पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी. फैसले को बरक़रार रखते हुए मार्च 2022 में कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा था कि हिजाब पहनना इस्लाम धर्म में आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है.

(फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली:कर्नाटक में कक्षाओं में हिजाब पर प्रतिबंध लगने के बाद मुस्लिम छात्राओं ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, ताकि वे परीक्षा में शामिल हो सकें.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने बुधवार (22 फरवरी) को कहा कि वह कर्नाटक की कुछ मुस्लिम छात्राओं द्वारा सरकारी कॉलेजों में अपनी परीक्षा देने की अनुमति देने के संबंध में दाखिल याचिका पर विचार करेंगे, जहां हिजाब पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.

छात्राओं ने बताया है कि राज्य के प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज में हिजाब पर प्रतिबंध के बाद निजी कॉलेजों में स्थानांतरित हो गई थीं.

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील शादान फरासत ने कहा कि वे पहले ही एक साल गंवा चुकी हैं और उन्होंने याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने की मांग की है.

अदालत ने जानना चाहा कि उन्हें परीक्षा में बैठने की अनुमति क्यों नहीं दी जा रही है, इस पर वकील ने कहा कि ऐसा इसलिए है क्योंकि वे हिजाब पहनती हैं और इसलिए उन्हें परीक्षा हॉल के अंदर नहीं जाने दिया जा रहा है.

इस पर सीजेआई ने कहा, ‘हम मामले को संज्ञान में लेंगे.’

कर्नाटक में नौ मार्च से परीक्षाएं शुरू हो रही हैं.

गौरतलब है कि अक्टूबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध हटाने से इनकार करने वाले कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर एक खंडित फैसला सुनाया था और इस मामले को प्रधान न्यायाधीश के पास भेज दिया था, ताकि एक वृहद पीठ का गठन किया जा सके.

यानी अब इस मामले की सुनवाई तीन न्यायाधीशों की पीठ करेगी. मास्टर ऑफ रोस्टर होने के नाते सीजेआई इस मामले की सुनवाई करने वाली पीठ का फैसला करेंगे.

खंडित आदेश देने वाली पीठ में शामिल जस्टिस हेमंत गुप्ता (अब सेवानिवृत्त) ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील को खारिज कर दिया था, जबकि जस्टिस सुधांशु धूलिया ने इसकी अनुमति दी थी.

जस्टिस गुप्ता ने कहा था कि यह केवल एकरूपता को बढ़ावा देने और एक धर्मनिरपेक्ष वातावरण को प्रोत्साहित करने के लिए था. वहीं, जस्टिस धूलिया ने राज्य और हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर कक्षाओं में हिजाब पहनने के अधिकार को ‘पसंद का मामला’ और ‘मौलिक अधिकार’ कहा था.

उल्लेखनीय है कि हिजाब को लेकर यह विवाद उडुपी जिले के एक सरकारी प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज में सबसे पहले तब शुरू हुआ था, जब छह लड़कियां दिसंबर 2021 में हिजाब पहनकर कक्षा में आईं और उन्हें कॉलेज में प्रवेश से रोक दिया गया.

उनके हिजाब पहनने के जवाब में कॉलेज में हिंदू विद्यार्थी भगवा गमछा पहनकर आने लगे और धीरे-धीरे यह विवाद राज्य के अन्य हिस्सों में भी फैल गया, जिससे कई स्थानों पर शिक्षण संस्थानों में तनाव का माहौल पैदा हो गया था.

फरवरी 2022 में कर्नाटक सरकार ने स्कूलों और कॉलेजों में समानता, अखंडता और लोक व्यवस्था को बाधित करने वाले कपड़े पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी. छात्राओं ने हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर करके कक्षा के भीतर हिजाब पहनने का अधिकार दिए जाने का अनुरोध किया था.

मामले की सुनवाई करते हुए 15 मार्च 2022 को कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा था कि हिजाब पहनना इस्लाम धर्म में आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है.

उसने कक्षाओं में हिजाब पहनने की अनुमति देने संबंधी मुस्लिम छात्राओं की खाचिकाएं खारिज कर दी थीं और राज्य में शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध बरकरार रखा था. उसी दिन इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी.