हाशिये के समुदायों के छात्रों द्वारा आत्महत्या की घटनाएं आम हो रही हैं: सीजेआई चंद्रचूड़

बीते दिनों आईआईटी बॉम्बे में एक दलित छात्र द्वारा आत्महत्या किए जाने की घटना का ज़िक्र करते हुए देश के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हमारे संस्थानों को छात्रों के बीच प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने तक सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि जीवन के प्रति उनके दृष्टिकोण को भी आकार देना चाहिए.

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सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़. (फोटो: पीटीआई)

बीते दिनों आईआईटी बॉम्बे में एक दलित छात्र द्वारा आत्महत्या किए जाने की घटना का ज़िक्र करते हुए देश के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हमारे संस्थानों को छात्रों के बीच प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने तक सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि जीवन के प्रति उनके दृष्टिकोण को भी आकार देना चाहिए.

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़. (फाइल फोटो: पीटीआई)

हैदराबाद: भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हाशिये पर रहने वाले समुदायों के छात्रों द्वारा आत्महत्या की घटनाएं आम हो रही हैं, ये संख्या सिर्फ एक आंकड़ा भर नहीं हैं, कभी-कभी ये सदियों के संघर्ष की कहानियां बयां करती हैं.

द हिंदू के मुताबिक, शनिवार को हैदराबाद के नालसार यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ के 19वें वार्षिक दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए सीजेआई ने कहा, ‘हमें यह भी समझना चाहिए कि अलग-अलग छात्रों को अलग-अलग चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. हाल ही में मैंने आईआईटी बॉम्बे में एक दलित छात्र द्वारा आत्महत्या के बारे में पढ़ा, इसने मुझे पिछले साल ओडिशा के नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में एक आदिवासी छात्र द्वारा की गई आत्महत्या की याद दिला दी.’

उन्होंने कहा, ‘हमारे संस्थानों को खुद को छात्रों के बीच प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने तक सीमित नहीं रखना चाहिए बल्कि जीवन के प्रति उनके दृष्टिकोण को भी आकार देना चाहिए जहां सहानुभूति एक महत्वपूर्ण घटक है.’

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, उन्होंने छात्रों द्वारा आत्महत्या की घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए पीड़ितों के शोक संतप्त परिजनों के प्रति संवेदनाएं व्यक्त कीं. उन्होंने कहा कि वह सोच रहे हैं कि हमारे संस्थान कहां गलत हो रहे हैं कि छात्र अपनी जान लेने को मजबूर हैं.

गुजरात के रहने वाले प्रथम वर्ष के छात्र दर्शन सोलंकी ने कथित तौर पर 12 फरवरी को आईआईटी बॉम्बे में आत्महत्या कर ली थी. अनुसूचित जाति से आने वाले उनके परिवार का कहना था कि जातिगत भेदभाव ने उसे आत्महत्या के लिए प्रेरित किया.

सीजेआई ने कहा, ‘इन उदाहरणों में हाशिये के समुदायों से आत्महत्या की घटनाएं आम हो रही हैं. ये संख्या केवल आंकड़ा भर नहीं हैं. वे कभी-कभी सदियों के संघर्ष की कहानियां होती हैं. मेरा मानना है कि अगर हम इस मुद्दे का समाधान करना चाहते हैं तो पहला कदम समस्या को स्वीकार करना और पहचानना है.’

द हिंदू के अनुसार उन्होंने कहा, ‘शिक्षण संस्थानों में सहानुभूति की कमी का छात्रों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. सहानुभूति का पोषण कुलीनता और बहिष्कार की संस्कृति को समाप्त कर सकता है. यह छोटे कदमों से शुरू करके किया जा सकता है.’

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘शिक्षण संस्थानों में जो चीजें रोकी जानी चाहिए, वे हैं: प्रवेश अंकों के आधार पर छात्रावासों का आवंटन जो जाति आधारित अलगाव पैदा करता है, सामाजिक श्रेणियों के साथ अंकों की सार्वजनिक सूची बनाना, दलित और आदिवासी छात्रों को नीचा दिखाने के लिए सार्वजनिक रूप से उनके अंक पूछना, उनकी अंग्रेजी और शारीरिक वेशभूषा का मजाक बनाना, दुर्व्यवहार की घटनाओं पर कार्रवाई नहीं करना, उनकी फेलोशिप को कम करना या बंद कर देना और मजाक के माध्यम से रूढ़िवाद का सामान्यीकरण करना.’

राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों (एनएलयू) की अवधारणा के बारे में विस्तार से बताते हुए उन्होंने कहा कि एनएलयू के साथ प्रयोग गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर केंद्रित सुलभ संस्थानों का निर्माण करना था, न कि कुलीन संस्थानों का निर्माण करना. हालांकि, एनएलयू समाज के एक बड़े वर्ग के लिए सुलभ होने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. एनएलयू के प्रवेश परीक्षा पैटर्न के बारे में चिंताएं उठाई जा रही हैं, जो अंग्रेजी से अच्छी तरह परिचित नहीं होने वाले छात्रों के लिए एक बाधा के रूप में कार्य करता है.

उन्होंने कहा कि इसके साथ ही आर्थिक रुकावटें भी गंभीर हैं, वित्तीय पहुंच सुनिश्चित करने के लिए विधि विश्वविद्यालयों और सरकारों को मिलकर काम करने की जरूरत है. एनएलयू को कानूनी शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी होना चाहिए, जो अन्य छोटे कॉलेजों को अकादमिक रूप से विकसित करने में मदद कर सकता है.