छत्तीसगढ़ के राजनंदगांव में 1937 में जन्मे विनोद कुमार शुक्ल को उनकी विशिष्ट लेखन शैली के लिए पहचाना जाता है. पुरस्कार समारोह 2 मार्च को न्यूयॉर्क में आयोजित किया जाएगा.
नई दिल्ली: हिंदी कथाकार, उपन्यासकार और कवि विनोद कुमार शुक्ला को अंतरराष्ट्रीय साहित्य में उपलब्धि के लिए 2023 का पेन/नाबोकोव पुरस्कार (PEN/Nabokov Award) के लिए चुना गया है. वे पहले भारतीय एशियाई मूल के लेखक हैं, जिन्हें इस सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित किया जा रहा है.
यह सम्मान अंतरराष्ट्रीय साहित्य में पहचान बनाने वाले उन साहित्यकारों को दिया जाता है, जो अपनी परंपराओं, आधुनिकता, वर्तमान और इतिहास को एक नई अंतरदृष्टि से देखते हैं.
Hindi writer Vinod Kumar Shukla to receive 2023 PEN/Nabokov Award for achievement in international literature https://t.co/XOTHaH4L8h via @timesofindia #PENLitAwards
— PEN America (@PENamerica) February 28, 2023
पुरस्कार समारोह 2 मार्च को न्यूयॉर्क में आयोजित किया जाएगा. इस पुरस्कार के रूप में उन्हें 50 हजार डॉलर की राशि प्रदान की जाएगी, जो भारतीय मुद्रा में 41 लाख रुपये से ज्यादा की राशि होगी.
रिपोर्ट के अनुसार, नाटककार एरिका डिकर्सन-डेस्पेंज़ा ने थियेटर अवार्ड के लिए 2023 पेन/लॉरा पेल्स इंटरनेशनल फाउंडेशन सम्मान जीता. इससे पहले यह घोषणा की गई थी कि टीना फे 2023 पेन/माइक निकोल्स राइटिंग फॉर परफॉरमेंस अवॉर्ड प्राप्त करेंगी.
सम्मान के लिए चुने जाने के बाद दैनिक भास्कर से बातचीत में विनोद कुमार शुक्ल ने कहा, ‘धन्यवाद, लेकिन मैं तो इस पुरस्कार के बारे में जानता ही नहीं था. मैंने कभी भी पुरस्कार के बारे में सोचकर नहीं लिखा. मैं तो बस लिखता था और हो गया. मैंने कभी नहीं सोचा था कि छत्तीसगढ़ के रहने वाले की हिंदी को ऐसा सम्मान मिलेगा. मेरी हिंदी बदली हुई थी. यह छत्तीसगढ़ियापन लिए हुए है.’
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एक ट्वीट कर उन्हें बधाई दी है.
उन्होंने लिखा, ‘कवि, कहानीकार व उपन्यासकार छत्तीसगढ़ के गौरव विनोद कुमार शुक्ल को पेन अमेरिका द्वारा पेन/नाबोकोव पुरस्कार 2023 से सम्मानित करने की घोषणा न केवल छत्तीसगढ़ के लिए बल्कि देश के लिए गर्व का विषय है. यह हिंदी के लिए भी बड़ी उपलब्धि है. विनोद जी और पूरे छत्तीसगढ़ को बधाई.’
कवि, कहानीकार व उपन्यासकार छत्तीसगढ़ के गौरव श्री विनोद कुमार शुक्ल जी को PEN अमेरिका द्वारा “PEN/नाबोकोव पुरस्कार 2023” से सम्मानित करने की घोषणा न केवल छत्तीसगढ़ के लिए बल्कि देश के लिए गर्व का विषय है।
यह हिन्दी के लिए भी बड़ी उपलब्धि है।
विनोद जी और पूरे छत्तीसगढ़ को बधाई। pic.twitter.com/jEnXXYfTFF
— Bhupesh Baghel (@bhupeshbaghel) February 28, 2023
अंतरराष्ट्रीय साहित्य में पेन/नाबोकोव अवॉर्ड फॉर अचीवमेंट, जिसे आमतौर पर पेन/नाबोकोव पुरस्कार के रूप में जाना जाता है, पेन अमेरिका द्वारा द्विवार्षिक रूप से लेखकों, मुख्य रूप से उपन्यासकारों को प्रदान किया जाता है.
यह पुरस्कार अमेरिकी ओपेरा सिंगर और अनुवादक दिमित्री नाबोकोव द्वारा स्थापित व्लादिमीर नाबोकोव फाउंडेशन द्वारा वित्तपोषित है. इसे सबसे प्रतिष्ठित पेन पुरस्कारों में से एक कहा जाता है.
87 साल के विनोद कुमार शुक्ला के प्रमुख उपन्यासों में नौकर की कमीज़ (1979), खिलेगा तो देखेंगे (1996), दीवार में एक खिड़की रहती थी (1997), हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़ (2011), यासि रासा त (2017), एक चुप्पी जगह (2018) आदि शामिल हैं.
इसके अलावा लगभग जयहिंद (1971), वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहिनकर विचार की तरह (1981), सब कुछ होना बचा रहेगा (1992), अतिरिक्त नहीं (2000), कविता से लंबी कविता (2001), आकाश धरती को खटखटाता है (2006), कभी के बाद अभी (2012) आदि उनके कुछ प्रमुख कविता संग्रह हैं.
साहित्य अकादमी पुरस्कार के अलावा उन्हें गजानन माधव मुक्तिबोध फेलोशिप (मध्य प्रदेश शासन), रज़ा पुरस्कार (मध्य प्रदेश कला परिषद), राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान (मध्य प्रदेश शासन), हिंदी गौरव सम्मान (उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, उत्तर प्रदेश शासन) जैसे पुरस्कार मिल चुके हैं.
द प्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार, तत्कालीन मध्य प्रदेश और वर्तमान छत्तीसगढ़ के राजनंदगांव में 1937 में जन्मे विनोद कुमार शुक्ल को उनकी विशिष्ट लेखन शैली के लिए पहचाना जाता है.
उनकी शैली को अक्सर ‘जादुई यथार्थवाद’ के करीब माना जाता है, यानी जो ‘कल्पनाशीलता’ के साथ भी ‘यथार्थ’ को धारण करने वाला है. खास बात यह है कि शुक्ल की भाषा और शैली अंतरराष्ट्रीय लेखन या वैश्विक साहित्यिक आंदोलनों से प्रभावित नहीं हुई.
नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, उनकी कविता और उनके लेखन में भारतीय मध्य वर्ग की विडंबनाओं का सरल भाषा में वर्णन है. उनके पहले उपन्यास ‘नौकर की कमीज़’ ने दशकों पहले एक नए तरह के गद्य के स्वाद से परिचित कराया था.
‘नौकर की कमीज़’ पर प्रख्यात फिल्मकार मणि कौल ने इसी नाम से एक यादगार कला फिल्म भी बनाई थी. उनके पूरे कथा साहित्य में साधारण मनुष्य की मटमैली दिनचर्या धूप-छांव की तरह लहराती रहती है. वह भारतीय मध्यवर्ग के मनुष्य का जैसे महाकाव्य लिख रहे हों. उनके गद्य और पद्य दोनों में यह बात नजर आती है.