सुप्रीम कोर्ट ने अडानी समूह के संबंध में अमेरिकी वित्तीय शोध कंपनी हिंडनबर्ग की रिपोर्ट से जुड़े मसलों की जांच के लिए सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व जज जस्टिस अभय मनोहर सप्रे की अध्यक्षता में समिति बनाई है. इसमें बैंकर केवी कामथ और ओपी भट, इंफोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकणी, सेवानिवृत्त जज जेपी देवधर और अधिवक्ता सोमशेखर सुंदरसन शामिल होंगे.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने अडानी समूह पर अमेरिकी वित्तीय शोध कंपनी हिंडनबर्ग की रिपोर्ट से उत्पन्न ‘मुद्दों की जांच’ करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया है. रिपोर्ट को ‘सीलबंद कवर’ में शीर्ष अदालत में प्रस्तुत किया जाना है.
सेवानिवृत्त न्यायाधीश अभय मनोहर सप्रे की अध्यक्षता वाली समिति में अनुभवी बैंकर केवी कामथ और ओपी भट, इंफोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकणी, सेवानिवृत्त न्यायाधीश जेपी देवधर और अधिवक्ता सोमशेखर सुंदरसन शामिल होंगे.
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि बाजार नियामक सेबी अपनी चल रही जांच को दो महीने में पूरा करे और स्थिति रिपोर्ट दाखिल करे.
विशेषज्ञों की समिति ढांचे को मजबूत करने के उपाय सुझाएगी, अडानी विवाद की जांच करेगी और वैधानिक ढांचे को मजबूत करने के उपाय सुझाएगी.
यह आदेश हिंडनबर्ग रिपोर्ट में अडानी समूह पर लगाए गए गंभीर आरोपों से संबंधित याचिकाओं के जवाब में आया है.
बिजनेस लाइन के मुताबिक, समिति ‘निवेशकों की सुरक्षा के लिए मौजूदा नियामक ढांचे, निवेशक जागरूकता को मजबूत करने, अडानी समूह द्वारा कानून के उल्लंघन, यदि कोई हो, पर गौर करेगी.’
यह आदेश तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने पारित किया, जिसमें मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला शामिल थे. सुप्रीम कोर्ट ने समिति से अपना काम ‘शीघ्र’ पूरा करने का भी अनुरोध किया.
द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, शीर्ष अदालत के समक्ष इस मुद्दे पर चार जनहित याचिकाएं लंबित हैं, एक-एक अधिवक्ता एमएल शर्मा और विशाल तिवारी की, मध्य प्रदेश कांग्रेस की एक नेता जया ठाकुर और एक अन्य व्यक्ति मनीष कुमार की. इनमें हिंडनबर्ग-अडानी रिपोर्ट पर जांच की मांग की गई है.
बता दें कि समिति के अध्यक्ष जस्टिस अभय मोहन सप्रे 2019 में सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त हुए थे. उन्होंने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढ़ा के कार्यकाल के दौरान 2014 से उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में कार्य किया था.
असम में गौहाटी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किए जाने के एक साल बाद उन्हें कॉलेजियम द्वारा शीर्ष अदालत में पदोन्नत किया गया था.
इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.