‘दक्षिणपंथी समूह’ की आपत्ति के बाद सामाजिक मुद्दों पर बनी दो फिल्में फिल्म समारोह से हटाई गईं

ओडिशा में कटक के रेनशॉ विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित कुछ फिल्मों को लेकर एक कथित दक्षिणपंथी संगठन द्वारा शिकायत दर्ज ​कराई गई थी. सत्यजीत रे की फिल्म पाथेर पांचाली को लेकर भी आपत्ति जताई गई थी. इसके बाद क्वीर और सामाजिक/आध्यात्मिक विषयों से संबंधित दो फिल्मों को हटा दिया गया, जिससे आयोजन देर से शुरू हुआ.

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(फोटो साभार: ट्विटर/@ayy_parija)

ओडिशा में कटक के रेनशॉ विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित कुछ फिल्मों को लेकर एक कथित दक्षिणपंथी संगठन द्वारा शिकायत दर्ज ​कराई गई थी. सत्यजीत रे की फिल्म पाथेर पांचाली को लेकर भी आपत्ति जताई गई थी. इसके बाद क्वीर और सामाजिक/आध्यात्मिक विषयों से संबंधित दो फिल्मों को हटा दिया गया, जिससे आयोजन देर से शुरू हुआ.

(फोटो साभार: ट्विटर/@ayy_parija)

नई दिल्ली: ओडिशा में कटक के रेनशॉ विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा आयोजित एक फिल्म समारोह को पहले रद्द कर दिया गया, हालांकि बाद में कुछ बदलावों के साथ आयोजन की अनुमति दे दी गई.

इन बदलावों के तहत आयोजन से क्वीर (Queer) और सामाजिक/आध्यात्मिक विषयों से संबंधित दो फिल्मों (गे इंडिया मैट्रिमोनी और हद अनहद) को हटा दिया गया है. कथित दक्षिणपंथी संबद्धता वाले छात्रों के एक समूह द्वारा आपत्ति जताए जाने के बाद यह कदम उठाया गया है.

इतना ही नहीं महोत्सव में शामिल सत्यजीत रे की फिल्म ‘पाथेर पांचाली’ पर भी इसके नाम में ‘पांचाली’ शब्द होने के कारण आपत्ति जताई गई थी. दरअसल ‘पांचाली’ को महाभारत की द्रौपदी से जोड़कर देखा जा रहा था. हालांकि बाद में इसे आयोजन में शामिल कर लिया गया.

विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी धर्मब्रत मोहंती ने कहा, ‘कुछ छात्र दो फिल्मों – ‘हद अनहद’ और ‘गे इंडिया मैट्रिमोनी’ की स्क्रीनिंग के खिलाफ थे. हम कोई परेशानी नहीं चाहते थे और उन्हें सूची से हटा दिया गया.

विश्वविद्यालय की फिल्म सोसाइटी साल 2018 में स्थापित की गई थी और यह अपना पहला फिल्म महोत्सव 2 से 4 मार्च तक आयोजित करने वाला था.

इस महोत्सव में सत्यजीत रे पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित किया गया था और इसमें उनकी फिल्में पाथेर पांचाली, गणशत्रु, चारुलता और अन्य शामिल थीं. इसके अलावा महोत्सव को जाधवपुर विश्वविद्यालय के फिल्म विद्वान और निर्देशक मोइनक बिस्वास और प्रसिद्ध फोटोग्राफर पाब्लो बार्थोलोम्यू को संबोधित करना था.

पत्रकारिता और जनसंचार की पोस्टग्रेजुएट द्वितीय वर्ष की छात्रा और फिल्म सोसाइटी की प्रमुख शुभा नायक ने बताया कि फरवरी के मध्य में विश्वविद्यालय की सांस्कृतिक समिति, जिसमें छात्र और शिक्षक शामिल थे, और कुलपति संजय नायक ने इस आयोजन को हरी झंडी दे दी थी.

बीते बृहस्पतिवार (2 मार्च) को सुबह 10 बजे जब फिल्म सोसाइटी के स्वयंसेवक व शिक्षक कैंपस हॉल में पहुंचे तो उन्हें बताया गया कि यह जगह आयोजन के लिए उपलब्ध नहीं है.

शुभा ने कहा कि इसके बाद वे स्पष्टीकरण मांगने के लिए कुलपति के कार्यालय गए. शुभा ने बताया, ‘उन्होंने (कुलपति) ने कहा कि यह मैं नहीं हूं जिसने आयोजन को रोका है. किसी और को इससे समस्या है.’

द वायर कुलपति से संपर्क नहीं कर सका है और यह पुष्टि नहीं कर सकता है कि क्या वास्तव में उन्होंने ऐसा कहा था.

जैसे ही छात्र परिसर में विरोध में बैठे उन्हें पता चला कि वाणिज्य से पीएचडी कर रहे चिन्मय साहू ने स्थानीय मालगोडाउन पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई है कि महोत्सव में प्रदर्शित की जाने वाली कुछ फिल्में ‘विवादास्पद’ है.

सांस्कृतिक समिति की अध्यक्ष प्रोफेसर उर्मिश्री बेदामत्ता का कहना है कि समिति ने 1 मार्च को शिकायतकर्ता छात्र से मुलाकात की थी. समिति ने ‘गे इंडिया मैट्रिमोनी’ और ‘हद अनहद’ जैसी फिल्मों को रद्द करने जैसी कुछ मांगों को स्वीकार कर लिया था.

साल 2020 में बंगाली भाषा में बनी गे इंडिया मैट्रिमोनी में समान अधिकारों पर आधारित गंभीर सवालों को एक मजेदार रूप में वर्णित किया गया है. इसकी निर्देशक देबलीना हैं. वहीं हद अनहद ​को 2009 में शबनम विरमानी द्वारा हिंदी में बनाया गया था. यह भारत-पाकिस्तान सीमा के दोनों ओर आध्यात्मिकता से निपटती है.

शुभा ने कहा कि डीन ऑफ स्टूडेंट्स वेलफेयर, अलका नंदा परिदा, जो सांस्कृतिक समिति की सदस्य भी हैं, ने छात्रों को सूचित किया कि सत्यजीत रे की फिल्मों के साथ शिकायतकर्ता छात्र की समस्याएं विशेष रूप से अजीब थीं.

शुभा ने कहा, ‘जाहिरा तौर पर शिकायतकर्ता ने सत्यजीत रे की पाथेर पांचाली में द्रौपदी के अपमान पर आपत्ति जताई थी. फिल्म को बिना देखे उन्होंने सोचा कि इसमें ‘पांचली’ का मतलब द्रौपदी है.’

शुभा के अनुसार, ‘हालांकि बंगाली में ‘पांचाली’ उच्चारण में ‘पनाचली’ (Pnachali) के करीब है और इसका अर्थ है ‘कथा गीत’ होता है. इसका महाभारत से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है.’

सांस्कृतिक समिति की अध्यक्ष प्रोफेसर उर्मिश्री बेदामत्ता ने शिकायतकर्ता चिन्मय साहू या उनकी राजनीतिक संबद्धता पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

हालांकि इस संबंध में किए गए कुछ ट्वीट्स में दावा किया गया है कि फिल्म महोत्सव के खिलाफ अभियान का नेतृत्व आरएसएस की छात्र शाखा एबीवीपी कर रही है.

शुभा का कहना है कि ‘हरि ओम’ नामक एक समूह है, जिसमें पूर्व छात्र और वर्तमान छात्र शामिल हैं. यह परिसर में सक्रिय है और फिल्म महोत्सव के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व कर रहा है. यह अलग भगवा झुकाव वाला एक समूह है, लेकिन बड़े दक्षिणपंथी हिंदुत्व समूहों से इसका संबंध स्पष्ट नहीं है.

शुभा कहती हैं, ‘लेकिन साहू इस संगठन का हिस्सा नहीं हैं और ऐसा माना जाता है कि उन्होंने व्यक्तिगत स्तर पर काम किया है.’

शुभा ने कहा कि हरि ओम के सदस्य पिछले कुछ समय से प्रदर्शित होने वाली फिल्मों के खिलाफ सोशल मीडिया पोस्ट प्रसारित कर रहे थे.

द वायर से बातचीत में ‘गे इंडिया मैट्रिमोनी’ की देबलीना मजूमदार ने कहा, ‘अगर आप हरि ओम नामक संगठन द्वारा सोशल मीडिया पर प्रसारित फॉरवर्ड को देखें, तो उन्होंने वास्तव में मेरी फिल्म के बारे में सबसे अधिक लिखा है. यह स्पष्ट है कि उन्होंने इसे नहीं देखा है, क्योंकि सेंसर बोर्ड ने भी फिल्म को प्रमाणित करते हुए कहा था कि यह नाबालिगों के लिए अनुचित है, क्योंकि इसमें समलैंगिकता है. मुझे ‘ए’ सर्टिफिकेट मिला है.’

उन्होंने कहा, ‘आप देखिए, हमें नए सिरे से इतिहास सीखना होगा. हम केवल ‘द कश्मीर फाइल्स’ देख सकते हैं (ऐसी फिल्म जिसकी प्रोपेगेंडा और मुस्लिम विरोधी के रूप में आलोचना की जाती है, लेकिन सत्तारूढ़ बीजेपी द्वारा इसका समर्थन किया जाता है) या विवेक अग्निहोत्री जो भी बनाते हैं.’

उनकी फिल्म को आयोजन से हटाने के संबंध में उन्होंने कहा, ‘अंतिम समय में हमारी फिल्म को सूची से बाहर करने के फैसले का मुझे कोई कारण नजर नहीं आता. ‘गे इंडिया मैट्रीमोनी’ को केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड से आवश्यक अनुमति मिली हुई है. हम ओडिशा के राज्यपाल से संपर्क करने के विकल्प पर विचार कर रहे हैं, जो रेनशॉ विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी हैं.’

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