ईसाई समुदाय के ख़िलाफ़ हिंसा और भेदभाव की घटनाओं के संदर्भ में कॉन्स्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप के बैनर तले पूर्व सिविल सेवकों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह किया है कि वे ईसाई समुदाय के लोगों को आश्वस्त करें कि उनके साथ कार्यपालिका और कानून समान और निष्पक्ष व्यवहार करेंगे.
नई दिल्ली: सिविल सेवकों के एक समूह ने हाल के दिनों में ‘ईसाइयों के खिलाफ स्पष्ट भेदभाव की बढ़ती घटनाओं’ के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है, जिसमें उनसे आग्रह किया गया है कि वे ईसाई समुदाय के लोगों को आश्वस्त करें कि उनके साथ कार्यपालिका और कानून समान और निष्पक्ष व्यवहार करेंगे.
कॉन्स्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप (सीसीजी) के बैनर तले लिखे गए खुले पत्र (ओपन लैटर) पर 93 पूर्व सिविल सेवकों ने हस्ताक्षर किए हैं और कहा है कि हालांकि ईसाई समुदाय के खिलाफ प्रमुख आरोप जबरन धर्मांतरण के हैं, लेकिन 1951 की जनगणना के बाद से आबादी में उनकी हिस्सेदारी कमोबेश 2.3 फीसदी रही है.
उन्होंने कहा कि इस आरोप के कारण समुदाय पर मौखिक, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक हमले हो रहे हैं, जिनमें समुदाय के व्यक्तियों के खिलाफ और संस्थानों के खिलाफ हमले शामिल हैं.
पत्र में आगे कहा गया है, ‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन अपरिहार्य तथ्य यह है कि हमारे बीच ऐसे तत्व हैं जो महसूस करते होंगे कि दूसरों का अपमान करने से वे खुद आगे बढ़ते हैं.’
शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों और सामाजिक सुधार में ईसाइयों के योगदान को ध्यान में रखते हुए पूर्व सिविल सेवकों ने कहा कि भारत ‘पहली शताब्दी से ही ईसाई धर्म का घर रहा है, उन कई देशों मे इसकी शुरुआत से पहले से जो आज मुख्यत: ईसाई हैं.’
उन्होंने कहा, ‘फिर भी आज ईसाई, वास्तव में सभी अल्पसंख्यकों को अपने ही देश में अजनबी महसूस कराया जा रहा है और अपने स्वयं के धर्म का पालन करने के लिए उन्हें कसूरवार ठहराया जा रहा है, क्योंकि कुछ चरमपंथी बिना दंड की परवाह किए काम कर रहे हैं और उन्हें राजनीति एवं कानून प्रवर्तकों का समर्थन प्राप्त है.’
पत्र के अनुसार, ‘हम आज आपको यह पत्र इसलिए लिख रहे हैं, क्योंकि देश में आपकी सरकार, आपकी पार्टी, इससे जुड़े संगठनों और जनता के बीच के शरारती तत्वों द्वारा भाषणों और आपराधिक कार्रवाइयों के माध्यम से देश में अल्पसंख्यक समूहों के लगातार हो रहे उत्पीड़न से हम बहुत व्यथित हैं.’
उन्होंने कहा, ‘हम सभी अल्पसंख्यकों के खिलाफ घृणा अपराधों और भाषणों के बारे में चिंतित हैं, हम आज आपको एक छोटे धार्मिक अल्पसंख्यक ईसाइयों के खिलाफ लगातार बढ़ते घृणित शब्दों के इस्तेमाल और कार्यों के बारे में लिख रहे हैं.’
इनके अनुसार, ‘हमारा संविधान स्पष्ट रूप से कहता है कि सभी नागरिक, चाहे वे किसी भी धर्म के हों, समान हैं और समान अधिकार रखते हैं, लेकिन हम हाल के दिनों में ईसाइयों के खिलाफ एकमुश्त भेदभाव की बढ़ती घटनाओं के खिलाफ आपका विरोध करने के लिए मजबूर हैं.’
पत्र में कहा गया है, ‘ईसाइयों के खिलाफ प्रमुख आरोप जबरन धर्मांतरण का है और इस आरोप के कारण उन पर (समुदाय के व्यक्तियों और संस्थाओं) मौखिक, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक हमले किए गए हैं. यह एक दुर्भाग्यपूर्ण लेकिन अपरिहार्य तथ्य है कि हमारे बीच ऐसे तत्व हैं, जो यह महसूस कर सकते हैं कि दूसरों का अपमान करने से खुद को बढ़त मिलती है.’
उन्होंने कहा, ‘हाल के वर्षों में ईसाई समुदाय शारीरिक हिंसा का शिकार हुआ है. यह परेशान करने वाली बात है कि देश के विभिन्न हिस्सों में ईसाइयों के खिलाफ हिंसा जारी है और हाल के वर्षों में बढ़ी है. फादर स्टेन स्वामी की कोई गलती नहीं थी, सिवाय इसके कि वे झारखंड के आदिवासियों, दलितों और अन्य वंचित लोगों के साथ मिलकर काम कर रहे थे. वस्तुत: उनकी मृत्यु के लिए कहीं न कहीं सरकार जिम्मेदार है.’
यह भी गया है कि आदिवासी और दलित ईसाइयों के गिरजाघरों और घरों को नष्ट कर दिया गया है, कब्रिस्तानों में तोड़फोड़ की गई है, शैक्षणिक और स्वास्थ्य संस्थानों पर हमला किया गया है और प्रार्थना सभाओं को आतंकित किया गया है.
इसके मुताबिक, ‘ये हमले मुख्य रूप से छत्तीसगढ़, असम, यूपी, मध्य प्रदेश, ओडिशा, कर्नाटक, गुजरात और महाराष्ट्र में हुए हैं. यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम के अनुसार, ईसाइयों पर हमले 2020 में 279 से बढ़कर 2021 में 505 और 2022 में (अक्टूबर तक) 511 हो गए थे.’
उन्होंने कहा कि भाजपा, केंद्र सरकार और राज्य सरकार के शीर्ष नेताओं के सिर्फ एक शब्द से हिंसा को ‘तुरंत रोका’ जा सकता है.
उन्होंने लिखा, ‘पूर्व सिविल सेवकों के रूप में हम यह भी जानते हैं कि चुप्पी केवल अधिक हिंसा को जन्म देगी. सभी भारतीयों की तरह अब ईसाइयों को भी कार्यपालिका द्वारा और कानून के समक्ष समान और निष्पक्ष व्यवहार के प्रति आश्वस्त किए जाने की जरूरत है. यह जरूरी है कि प्रधानमंत्री जी आप उन्हें यह आश्वासन दें.’
बीते कुछ समय की घटनाओं पर बात करें तो हाल ही में दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में ‘जय श्री राम’ का नारा लगाती भीड़ ने ईसाई संगठन के स्टॉल पर तोड़फोड़ की.
इससे पहले बीते जनवरी माह में मेघालय के प्रमुख ईसाई संगठनों ने ‘देश में ईसाई समुदाय को निशाना बनाने के बढ़ते मामलों’ पर चिंता व्यक्त करते हुए इस संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘गहरी चुप्पी’ पर अफसोस जताया था.
यह चिंताएं छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में हाल ही में एक चर्च में की गई तोड़फोड़ और असम पुलिस द्वारा राज्य के जिलों को चर्चों की संख्या और धर्मांतरण पर डेटा जुटाने के लिए जारी किए गए 16 दिसंबर 2022 के पत्र समेत अन्य कारणों से ईसाई संगठनों द्वारा उठाई गई थीं.
शिलॉन्ग स्थित खासी जयंतिया क्रिश्चियन लीडर्स फोरम (केजेसीएलएफ) ने एक बयान में कहा था, ‘देश के विभिन्न हिस्सों में लंबे समय से ईसाइयों के खिलाफ अत्याचार पर प्रधानमंत्री की चुप्पी गौर करने लायक है.’
फोरम ने विशेष तौर पर छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में 2 जनवरी 2023 को विश्व दीप्ति क्रिश्चियन स्कूल परिसर के अंदर एक चर्च पर हुए हमले का मुद्दा उठाया था. उक्त हमले में जिला पुलिस अधीक्षक समेत कई लोगों को चोटें आई थीं.
इस संबंध में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दो स्थानीय नेता सहित कई लोगों को गिरफ्तार किया गया था.
बीते फरवरी माह में बाबा रामदेव ने एक वायरल वीडियो में मुसलमानों और ईसाइयों के खिलाफ टिप्पणी करते सुना जा सकता था. राजस्थान के बाड़मेर में एक सभा के दौरान रामदेव ने दावा किया था कि दोनों समुदायों को ‘धर्मांतरण’ का ‘जुनून’ है.
रामदेव को यह कहते हुए सुना जा सकता था कि मुसलमानों का मानना है कि नमाज ‘हिंदू लड़कियों के अपहरण और आतंकवाद’ सहित सभी पापों को धो देती है.
ईसाई धर्म के बारे में उन्होंने कहा था, ‘ईसाई धर्म क्या कहता है? चर्च में जाओ, मोमबत्ती जलानी हो, जलाओ और ईसा मसीह के सामने खड़े हो जाओ, सारे पाप नष्ट हो जाएंगे.’
ईसाई समुदाय को लेकर एक घटना मध्य प्रदेश के विदिशा शहर में 2021 में देखी गई थी, जब एक स्कूल पर जबरन धर्मांतरण का आरोप लगाकर बजरंग दल एवं विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं ने हमला बोल दिया था.
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