कर्नाटक में बीते दिनों लोकायुक्त पुलिस ने रिश्वतखोरी के एक मामले में भाजपा विधायक के. मदल विरुपक्षप्पा के कार्यालय से 2.02 करोड़ रुपये और उनके बेटे वी. प्रशांत मदल के आवास से 6.10 करोड़ रुपये की बेहिसाब नकदी बरामद की है. इस संबंध में प्रशांत को गिरफ़्तार किया गया है, जबकि उनके पिता को अग्रिम ज़मानत मिल गई है.
नई दिल्ली: बेंगलुरु की एक सिविल कोर्ट ने कर्नाटक से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक के. मदल विरुपक्षप्पा और उनके बेटे वी. प्रशांत मदल मीडिया के खिलाफ किसी भी ‘अपमानजनक राय’ को प्रसारित या प्रकाशित करने से रोक दिया है.
अदालत का यह आदेश भाजपा विधायक के कार्यालय और उनके बेटे के आवास से लोकायुक्त पुलिस द्वारा बड़ी मात्रा में नकदी बरामद करने के कुछ दिन बाद आया है. यह लोकायुक्त द्वारा चलाए जा रहे रिश्वतखोरी के एक मामले से संबंधित है.
छापे के दौरान लोकायुक्त पुलिस ने कथित तौर पर विधायक के केएसडीएल कार्यालय से 2.02 करोड़ रुपये नकद और प्रशांत के आवास से 6.10 करोड़ रुपये बरामद किए. प्रशांत इससे पहले अब निष्क्रिय हो चुके भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) में तैनात थे.
जस्टिस बालगोपालकृष्णा ने भी मीडिया को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि लोकायुक्त पुलिस के छापे के दौरान विधायक और उनके बेटे से अधिकारियों द्वारा नकदी जब्त करना उन्हें दोषी घोषित करने और उन्हें ‘भ्रष्ट’ के रूप में चित्रित करने का आधार नहीं हो सकता है.
उन्होंने यह भी कहा कि आरोपियों को अपने मामले का बचाव करने का अवसर दिया जाना चाहिए, अन्यथा यह उनके ‘चरित्र हत्या’ करने जैसा होगा.
लाइवलॉ की रिपोर्ट के अनुसार, न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा, प्रतिवादियों को मामले की सुनवाई की अगली तारीख तक समाचार चैनलों, मीडिया में आरोपियों के खिलाफ किसी भी मानहानिपूर्ण राय को प्रसारित या प्रकाशित करने और किसी भी तरह से कोई भी पैनल चर्चा आयोजित करने से अस्थायी रूप से रोका जाता है.
मामले में प्रतिवादी समाचार संगठन द टाइम्स ऑफ इंडिया, बैंगलोर मिरर, डेक्कन हेराल्ड, द इंडियन एक्सप्रेस, द हिंदू, एनडीटीवी 24×7 और आज तक हैं.
भ्रष्टाचार का आरोप लगाने वाली शिकायत के आधार पर बीते चार मार्च को चन्नागिरी से भाजपा विधायक के. मदल विरुपक्षप्पा के यहां छापा मारा गया था. अधिकारियों के अनुसार, उनके कार्यालय और उनके बेटे के घर से लगभग 8 करोड़ रुपये की भारी मात्रा में नकदी जब्त की गई थी.
भाजपा विधायक सार्वजनिक उपक्रम कर्नाटक साबुन और डिटर्जेंट लिमिटेड (केएसडीएल) के अध्यक्ष भी थे, लेकिन इस कार्रवाई के बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.
अधिकारियों ने यह भी कहा कि उन्होंने विधायक के बेटे को केएसडीएल से टेंडर के बदले 40 लाख रुपये की रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़ा था.
विधायक के बेटे और कर्नाटक प्रशासनिक सेवा (केएएस) अधिकारी वी. प्रशांत मदल, जो बैंगलोर जल आपूर्ति और सीवरेज बोर्ड (बीडब्ल्यूएसएसबी) में चीफ एकाउंटेंट के रूप में तैनात थे, को गिरफ्तार कर लिया गया है.
इस संबंध में दर्ज एफआईआर में विधायक को पहले आरोपी और उनके बेटे को दूसरे आरोपी के रूप में नामजद किया गया है.
एफआईआर बेंगलुरु के केमिक्सिल कॉरपोरेशन में पार्टनर श्रेयस कश्यप की शिकायत के आधार पर दर्ज की गई है, जिन्होंने आरोप लगाया था कि प्रशांत मदल ने कर्नाटक साबुन और डिटर्जेंट लिमिटेड में टेंडर के लिए रिश्वत के रूप में 81 लाख रुपये की मांग की थी.
इसके बाद बीते 2 मार्च की शाम को विधायक के बेटे प्रशांत मदल को उनके पिता के केएसडीएल कार्यालय से गिरफ्तार किया गया था, जब वह कथित तौर पर ‘पहली किस्त’ के रूप में 40 लाख रुपये ले रहे थे.
जहां विधायक को कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा अग्रिम अंतरिम जमानत दी गई है, वहीं उनके बेटे को रिश्वत लेने के आरोप में 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है.
सिविल कोर्ट का ताजा आदेश विधायक और उनके बेटे द्वारा राहत के लिए अदालत जाने के जवाब में आया, जिसमें दावा किया गया था कि मीडिया संगठन उनके खिलाफ ‘झूठे और अपमानजनक आरोप’ लगा रहे हैं.
विधायक ने अदालत में याचिका दायर की कि उनके और उनके बेटे के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों से संबंधित पूरे प्रकरण प्रतिद्वंद्वी दलों की करतूत है, जो उनकी छवि को धूमिल करने की साजिश कर रहे हैं, क्योंकि उनकी पार्टी राज्य में आगामी चुनावों से पहले उन्हें एक बड़ी जिम्मेदारी सौंपना चाहती है.
उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी दलों पर उनके और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ ‘झूठी खबरें चलाने’ का आरोप लगाया है.
अदालत ने कहा, ‘इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सहित विभिन्न मीडिया द्वारा लगाए गए जो भी आरोप निराधार हैं और सच्चाई की पुष्टि किए बिना हैं, अगर उनका प्रसारण जारी रखा जाता है, तो यह वादी के चरित्र हनन के अलावा और कुछ नहीं है और वादी को अपनी स्थिति स्पष्ट करने का अवसर दिए बिना भी है.’
इस बात को रेखांकित करते हुए कि मामले पर मीडिया रिपोर्टिंग के कारण वादी की गरिमा से समझौता किया जा रहा है, जज ने कहा कि ‘गरिमा के साथ जीना भी एक संवैधानिक अधिकार है’.
लाइवलॉ के मुताबिक, न्यायाधीश ने मीडिया पर निशाना साधते हुए कहा, ‘बेशक अगर सच्चाई है तो मीडिया के लोग भी प्रकाशन कर सकते हैं. यह सत्यापन के अधीन होगा कि इसमें सच्चाई है या नहीं और उनके पास सामग्री होनी चाहिए. केवल, व्यक्तियों द्वारा दिए गए बयान के आधार पर प्रतिवादी अन्य लोगों की मदद करने के लिए अपनी मनमर्जी और पसंद के अनुसार समाचार प्रसारित नहीं करेंगे. मीडिया को दिए गए संवैधानिक अधिकार का उनके द्वारा दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए.’
न्यायाधीश ने यह भी कहा कि मीडिया इस मुद्दे पर ‘केवल समाज की सद्भावना को नुकसान पहुंचाने के इरादे से प्रसारित या प्रकाशित कर रहा था और सच्चाई का पता लगाए बिना उनके कृत्य में कोई सच्चाई नहीं है’.