अहमदाबाद के रहने दर्शन सोलंकी की बीते 12 फरवरी को आईआईटी बॉम्बे परिसर के एक छात्रावास की इमारत की सातवीं मंज़िल से कथित तौर पर छलांग लगाने से मौत हो गई थी. उनके परिवार ने कैंपस में जातिगत भेदभाव का आरोप लगाया था. वहीं आईआईटी-बॉम्बे द्वारा गठित समिति ने अपनी रिपोर्ट में इससे इनकार किया है.
नई दिल्ली: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बॉम्बे (आईआईटी बॉम्बे) द्वारा जारी की गई अंतरिम रिपोर्ट में कहा गया है कि 18 वर्षीय दलित छात्र दर्शन सोलंकी की मौत जातिगत भेदभाव के कारण नहीं हुई थी.
इस रिपोर्ट में परिसर के एक छात्र संगठन अंबेडकर पेरियार फुले स्टडी सर्कल (एपीपीएससी) द्वारा खारिज कर दिया गया है.
अहमदाबाद के रहने दर्शन सोलंकी की बीते 12 फरवरी को आईआईटी बॉम्बे परिसर के एक छात्रावास की इमारत की सातवीं मंजिल से कथित तौर पर छलांग लगाने से मौत हो गई थी. वह बी.टेक (केमिकल) के पहले वर्ष के छात्र थे.
उनके परिवार ने आरोप लगाया था कि जातिगत भेदभाव ने उन्हें आत्महत्या के लिए प्रेरित किया था.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, बीते 2 मार्च को सौंपी गई एक अंतरिम रिपोर्ट में आईआईटी-बॉम्बे द्वारा गठित 12 सदस्यीय समिति ने मौत की परिस्थितियों की जांच कर कहा कि ‘जाति-आधारित भेदभाव का कोई विशिष्ट सबूत नहीं मिला है’.
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, दलित, बहुजन और आदिवासी छात्रों के अधिकारों के लिए लड़ने वाल एपीपीएससी ने कहा कि रिपोर्ट ‘न्याय से इनकार की भयावह याद दिलाती है’, जैसा कि अनिकेत अंभोरे और साल 2014 में एक अन्य दलित छात्र द्वारा आईआई-बॉम्बे में आत्महत्या के मामले में हुआ था.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, बीते 6 मार्च को सभी संकाय सदस्यों को भेजे गए एक ईमेल में आईआईटी-बॉम्बे के मानविकी और सामाजिक विज्ञान विभाग की प्रोफेसर शर्मिला ने कहा कि समिति ने ‘इस परिसर में अकादमिक चिंता के घातक प्रसार के लिए प्रणालीगत कारणों पर विचार नहीं किया’.
रिपोर्ट को ‘बेहद निराशाजनक’ बताते हुए उन्होंने कहा, ‘एक बार फिर हम पाते हैं कि आत्महत्या – इसके कारण और जिम्मेदारियां – पूरी तरह से व्यक्तिगत हैं.’
2014 में बी.टेक अंतिम वर्ष के छात्र अनिकेत अंभोरे की आत्महत्या को याद करते हुए (जिनके माता-पिता ने परिसर में जाति-आधारित भेदभाव का आरोप लगाया था, जिसे एक आंतरिक समिति ने खारिज कर दिया था) शर्मिला ने ईमेल में कहा, ‘उस रिपोर्ट की तरह यह रिपोर्ट भी इस धारणा के तहत आगे बढ़ती है कि अगर इस तरह के कृत्य और आत्महत्या के बीच कोई प्रत्यक्ष प्रेरक नहीं पाया जा सकता है, तो जातिगत भेदभाव और छात्र आत्महत्याओं के बीच कोई संबंध मौजूद नहीं है. भले ही हमारे परिसर ने उच्च शिक्षा के भीतर दलित छात्रों की आत्महत्या के भयानक राष्ट्रीय आंकड़ों में ‘योगदान’ दिया है, आश्चर्यजनक रूप से यह रिपोर्ट आईआईटी-बॉम्बे को जातिवाद मुक्त परिसर के रूप में चित्रित करती है.’
रिपोर्ट के निष्कर्षों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि सोलंकी को भाषा की बाधाओं का सामना करना पड़ा था और जब उन्होंने ‘कंप्यूटर और अन्य विषयों’ के बारे में संदेह व्यक्त किया था, तो उनकी हंसी उड़ाई गई. शर्मिला ने कहा कि समिति के लिए ये सभी स्थानिक भेदभाव के पुख्ता सबूत नहीं हैं.
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, छात्रों ने बताया कि रसायन विज्ञान विभाग के प्रोफेसर नंद किशोर की अध्यक्षता वाली 12 सदस्यीय समिति न तो निष्पक्ष थी और न ही किसी बाहरी सदस्य को नियुक्त करके जांच में ‘कोई उल्लेखनीय क्षमता’ दिखाई दी.
छात्र संगठन एपीपीएससी ने कहा कि रिपोर्ट ने समिति के ‘उथले और सतही रवैये’ को दिखाया तथा ‘संस्थान की कमियों को ढकने’ के लिए ‘जल्दबाजी में रिपोर्ट’ तैयार की गई.
छात्र संगठन ने अंतरिम रिपोर्ट को ‘एक वैज्ञानिक संस्थान’ का सबसे अवैज्ञानिक दस्तावेज’ कहा.
इसके मुताबिक, समिति के पास संदर्भ की कोई सार्वजनिक शर्तें नहीं थीं. न ही यह प्रकट किया गया था कि यह किस प्रकार बयानों को दर्ज करता है, उनका मूल्यांकन कैसे किया गया और उनकी वैधता तथा विश्वसनीयता कैसे मापी गई.
संगठन की ओर से आगे कहा गया कि समिति में कोई बाहरी सदस्य नहीं था, अनुसूचित जाति/जनजाति के सदस्यों का प्रतिनिधित्व 50 प्रतिशत से कम था. इसमें शामिल छात्रों को यह नहीं बताया गया कि उन्हें असहमति का अधिकार है. किसी भी विषय विशेषज्ञ से सलाह नहीं ली गई. यहां तक कि मृतक दलित छात्र की बहन के बयान पर ध्यान नहीं दिया गया और संस्थान में निहित भेदभाव पर भी विचार नहीं किया गया.
छात्रों ने समिति की रिपोर्ट में कई विरोधाभासों की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह पहले कहती है कि कोई भेदभाव नहीं था, फिर मृतक छात्र की बहन के भेदभाव को उजागर करने वाले बयान को पेश करती है. इसी तरह छात्रों ने बताया कि समिति ने कहा कि मृतक छात्र की पढ़ाई में रुचि नहीं थी और यह भी रिकॉर्ड किया गया कि उन्होंने कुछ विषयों में रुचि दिखाई थी.
छात्र संगठन ने कहा, ‘क्या यह जांच करना समिति का काम नहीं है कि कोई व्यक्ति कैंपस में अलग-थलग क्यों महसूस कर रहा था?’
एपीपीएससी के बयान में कहा गया है कि समिति ने सबूत दिखाते हुए रिकॉर्ड किया था कि कंप्यूटर अच्छी तरह से न जानने के लिए दलित छात्र दर्शन सोलंकी का मजाक उड़ाए जाने के संदर्भ में वह क्या महसूस कर रहे थे.
इसमें कहा गया है कि समिति ने यह भी दर्ज किया कि वह ‘अपनी जाति की पहचान के प्रति संवेदनशील’ थे, लेकिन समिति ने यह पूछताछ नहीं की कि वह ऐसा क्यों महसूस कर रहे थे.
छात्र संगठन ने आगे कहा, ‘विशिष्ट उदाहरणों’ की कमी का हवाला देते हुए समिति द्वारा इन साक्ष्यों को ‘हटा दिया गया’.
छात्र संगठन ने दर्शन सोलंकी पर अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति सेल या छात्र कल्याण केंद्र से सहायता नहीं मांगने का ‘दोष’ लगाने वाली समिति को लेकर कहा, ‘यह सामान्य ज्ञान है कि ये सपोर्ट सिस्टम नाम मात्र के लिए मौजूद हैं. एसटी/एससी सेल के पास अभी तक वैध जनादेश नहीं है और छात्र कल्याण केंद्र के हेड काउंसलर जातिवादी होने के लिए बदनाम रहे हैं.’